‘‘तुम ऐसा करो प्रोफेसर कि मुर्गे पकड़ने पर एक रिसर्च कर डालो।’’ रामसिंह ने सुझाव दिया।
‘‘रिसर्च तो बाद में होती रहेगी। पहले हमें कुछ मुर्गे हर हाल में पकड़ना हैं। वरना जंगलियों के सामने हमारी इंसल्ट हो जायेगी कि देवता होकर हम एक भी मुर्गा नहीं पकड़ पाये।’’
मुर्गा अभी भी दूर खड़ा हुआ टुकुर टुकुर उनकी ओर देख रहा था।
‘‘तो फिर किसी दूसरे मुर्गे पर कोशिश करते हैं। यह तो बहुत चालाक है।’’ रामसिंह ने कहा।
‘‘मैं तो अब इसी को पकड़ कर रहूंगा। मुझे भी जिद हो गयी है।’’ प्रोफेसर ने कहा और मुर्गे की ओर बढ़ा। फिर कुछ सोच कर रुक गया।
‘‘मैं तुम्हें अब तरकीब से पकड़ूंगा।’’ वह मुर्गे की ओर देखकर बड़बड़ाया फिर रामसिंह से संबोधित हुआ, ‘‘रामसिंह तुम अपनी शर्ट उतारो।’’
‘‘क ---क्यों?’’ रामसिंह ने घबरा कर पूछा।
‘‘मैं उधर झाड़ियों में जाकर मुर्र्गी की आवाज निकालता हूं। मेरी आवाज सुनकर मुर्गा उधर आकर्षित होगा। जैसे ही वह झाड़ियों में घुसे, तुम अपनी शर्ट उसपर डालकर पकड़ लेना।’’
‘‘ठीक है।’’ रामसिंह अपनी शर्ट उतारने लगा जबकि प्रोफेसर पास की एक झाड़ी में घुस गया।
थोड़ी देर बाद झाड़ियों से आवाज आयी, ‘‘पक ---पक---पक---पोकाक --पक --पक।’’ यह प्रोफेसर था जो अपने मुंह से आवाजें निकाल रहा था।
मुर्गे ने भी अपने कान खड़े करके ये आवाजें सुनीं किन्तु फिर वह उस झाड़ी में घुसने की बजाय दूसरी झाड़ी में घुस गया।
‘‘यह तो दूसरी झाड़ी में घुस गया कमबख्त। अब मैं क्या करूं।’’ रामसिंह बड़बड़ाया। फिर वह अपनी शर्ट लेकर आगे बढ़ा और उस झाड़ी के पास पहुंच कर इस ताक में लग गया कि कब मुर्गा बाहर निकले और कब वह उसपर हमला कर दे।
तभी उसे एक स्थान पर झाड़ी हिलती दिखाई दी। उसने आव देखा न ताव और झट से अपनी शर्ट उसपर डाल दी। दूसरे ही पल वह दोनों हाथों से अपनी शर्ट दबाये हुए चीख रहा था, ‘‘पकड़ लिया, मैंने पकड़ लिया।’’
‘‘क्या मुर्गा पकड़ा गया?’’ प्रोफेसर जल्दी से झाड़ियों से निकलकर बाहर आया।
‘‘हां । मैंने उसे दबा रखा है।’’
‘‘तो फिर जल्दी से उसे रस्सियों से बाँध दो वरना वह फिर भाग जायेगा।’’
रामसिंह ने मुर्गे को पूरी तरह ढंके हुए अपनी शर्ट झाड़ी से बाहर निकाली जबकि प्रोफेसर अपनी जेब से पतली लताओं से बनी डोर निकालने लगा।
‘‘अब तुम मुर्गे पर से अपनी शर्ट थोड़ी सी हटा दो ताकि मैं उसे बाँध सकूं।’’ प्रोफेसर ने कहा और रामसिंह धीरे धीरे अपनी शर्ट उठाने लगा।
जैसे ही उसने शर्ट थोड़ी सी हटाई, नीचे से एक गिलहरी फुदकती हुई भाग निकली।
‘‘हाँय। मुर्गा गिलहरी में कैसे परिवर्तित हो गया।’’ प्रोफेसर ने अचरज से कहा।
तभी उन्हें पीछे से मुर्गे के बाँग देने की आवाज आयी। दोनों ने मुड़कर देखा तो मुर्गा दूर खड़ा उनकी ओर देखकर बाँग दे रहा था। दोनों सर पकड़कर वहीं बैठ गये।
1 comment:
Sach me mazedar hai ye episode bhi..
Jai Hind...
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