उनके सामने अब एक बड़ा सा झोंपड़ा आ गया था। जो बांसों का बना था। ये लोग सामने के द्वार से अन्दर प्रविष्ट हो गये। अन्दर घास फूस की बनी छत से लगभग बीस पच्चीस गोभियां लटक रही थीं। सामने एक चबूतरे पर मिट्टी की बनी कोई मूर्ति रखी थी। दोनों ने गौर से उसे देखा। यह उसी जानवर की गर्दन तक की आकृति थी।
‘‘अब मुझे पूरा विश्वास हो गया कि ये लोग उस जानवर की पूजा करते हैं। देखो उन्होंने उसकी मूर्ति को फूलों का हार पहना रखा है।’’ प्रोफेसर ने ध्यान से मूर्ति का निरीक्षण किया।
‘‘हां। और फूल भी गोभी के हैं। लगता है इनके पास और कोई फूल नहीं पैदा होता।’’
‘‘इतनी बड़ी मूर्ति के लिए केवल गोभी के फूलों की माला फिट बैठ सकती है। बाकी फूल तो छोटे पड़ जायेंगे।’’ प्रोफेसर ने समझाया।
जंगली इन लोगों को लेकर मूर्ति से पांच छह कदम दायीं ओर चले। यहां एक सिंहासननुमा पत्थर रखा हुआ था। जंगलियों ने दोनों को उसपर बैठने का संकेत किया और वे लोग ठाठ से उसपर जाकर बैठ गये।
‘‘इस सम्मान के लिए धन्यवाद । अब पेट पूजा का भी प्रबंध कर दो। क्योंकि इस भाग दौड़ में काफी भूख लग गयी है।’ प्रोफेसर ने पलथी मारते हुए अपने पेट पर हाथ फेरा।
‘‘चिन्ता मत करो। अभी पेट पूजा का भी प्रबंध होगा। किन्तु हमारी नहीं बल्कि इन लोगों की। मेरा विचार है कि इस सिंहासन पर बलि के बकरे बिठाये जाते हैं। कुछ देर बाद हम लोग पतीलों में पक रहे होंगे और उसके बाद एक शानदार दावत ये जंगली उड़ायेंगे।’’ रामसिंह ने एक बार फिर प्रोफेसर का खंडन कर दिया।
‘‘ओह, तुम बार बार मेरे उछलते हुए नर्वस को ब्रेक डाउन कर देते हो।’’ प्रोफेसर ने अपने दिल पर हाथ रखकर कहा।
उधर जंगलियों के कमाण्डर ने उन्हें संबोधित किया, ‘‘अभी हमारे सरदार पधार रहे हैं जो आप लोगों का स्वागत करेंगे।’’
इन लोगों की समझ में कमाण्डर की बात बिल्कुल नहीं आयी अत: वे केवल सर हिलाकर रह गये।
थोड़ी देर तक वहाँ सन्नाटा छाया रहा। सारे जंगली द्वार की ओर दृष्टि गड़ाये सरदार के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। फिर एक जोरदार शोर उठा।
‘‘सरदार आ गये।’’ इसी के साथ मन्दिर के अन्दर सरदार ने प्रवेश किया। दोनों ने आश्चर्य से उसे देखा क्योंकि उसका कद किसी भी प्रकार साढ़े सात फिट से कम न था। साथ ही वह किसी यूकिलिप्टस की तरह दुबला पतला था। उसके शरीर पर पेड़ की छाल के बने वस्त्र इस तरह लटक रहे थे मानो हैंगर पर किसी ने सूखने के लिए कपड़ा लटकाया हो उसके सर पर लकड़ी का एक मुकुट रखा हुआ था जिसमें दोनों ओर दो छोटी छोटी गोभियां लटक रही थीं।
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