अन्त में प्रोफेसर और रामसिंह जंगलियों के साथ उनकी बस्ती में पहुंच गये। बस्ती में घुसते ही वहां के निवासियों ने उन्हें घेर लिया। इनमें स्त्रियां, बच्चे और पुरुष सभी थे। ये लोग विस्मय से प्रोफेसर और रामसिंह को देख रहे थे। जबकि प्रोफेसर और रामसिंह उस बस्ती को देखकर विस्मित थे। उन्हें आशा नहीं थी कि इस बीहड़ जंगल में इस प्रकार की घनी बस्ती आबाद होगी।
इस बस्ती के वासियों का पहनावा ठीक वैसा ही था जैसा शमशेर सिंह को पकड़ने वाले जंगलियों की बस्ती का था।
‘‘कौन हैं ये लोग?’’ एक बूढ़े ने आगे बढ़कर पूछा।
‘‘ये लोग देवता पुत्र हैं। इनका हमसे परिचय कराने के लिए देवता स्वयं इन्हें लेकर आये हैं।’’ ‘देवता पुत्रों’ के साथ आये एक जंगली ने उत्तर दिया।
‘‘नमस्कार देवता पुत्रों।’’ बूढ़ा अपने सीने पर हाथ रखकर आगे की ओर झुक गया। अन्य व्यक्तियों ने उसका अनुसरण किया।
‘‘ये लोग हमारा अभिवादन कर रहे हैं।’’ रामसिंह बोला।
‘‘जीते रहो।’’ प्रोफेसर ने हाथ उठाकर जंगलियों को आर्शीवाद दिया।
‘‘सरदार को सन्देश दो कि हम देवता पुत्रों को मंदिर ले जा रहे हैं। वहीं आकर वे इनका आर्शीवाद ले लें।’’ प्रोफेसर और रामसिंह को लेकर आये जंगलियों के प्रधान ने बस्ती के एक जंगली को संबोधित किया। वह जंगली तुरन्त पीछे की ओर मुड़ गया।
एक बार फिर इन लोगों ने आगे बढ़ना आरम्भ कर दिया। अब इनके पीछे पीछे बस्ती वासी भी आकर लगने लगे थे। इस प्रकार यह काफिला धीरे धीरे बढ़ता जा रहा था।
रामसिंह ने पीछे मुड़कर देखा और प्रोफेसर को संबोधित करते हुए बोला, ‘‘प्रोफेसर, हमारे पीछे तो भीड़ बढ़ती जा रही है।’’
‘‘हाँ । पहली बार मुझे लग रहा है कि हमारे देश में महान वैज्ञानिकों का भी आदर करने वाले लोग हैं। वरना अभी तक तो लोग मुझे जानते भी नहीं थे।’’
‘‘प्रोफेसर, तुम एक बात भूल रहे हो।’’
‘‘क्या?’’ चौंक कर पूछा प्रोफेसर ने।
‘‘इस वक्त हम अपने देश में नहीं बल्कि अफ्रीका में हैं।’’
‘‘अरे हां। तभी तो मैं कहूं लोग मुझे इतनी इज्जत क्यों दे रहे हैं। अब मैं वापस जाकर बताऊंगा कि मैंने हजारों लोगों को एक साथ आटोग्राफ दिया था।’’ प्रोफेसर ने अकड़ कर कहा।
‘‘मुझे तो नहीं लगता कि ये जंगली तुम्हें कोई वैज्ञानिक समझ रहे हैं। मेरा विचार है कि कोई और बात है।’’
‘‘भला और क्या बात हो सकती है। इन्हें मालूम है कि मैं एक महान वैज्ञानिक हूं जिसने अब तक चार सौ उन्नीस आविष्कार किये हैं। और तुम एक महान वैज्ञानिक के असिस्टेंट हो।’’
‘‘मैं सोच रहा हूं कि ऐसा तो नहीं कि हमारी बिरयानी बनाने के बाद इन जंगलियों में लंगर खोलकर बाट दी जाये। मुझे शत प्रतिशत विश्वास है कि ये जंगली आदमखोर हैं’’ रामसिंह अभी भी शंकाग्रस्त था।
‘‘तुम हमेशा उल्टा सोचते रहते हो। मैं एक दिन तुम्हारा आपरेशन करके देखूंगा कि कहीं उसमें उल्टा दिमाग तो नहीं फिट है।’’
‘‘ओह! ये हम लोग कहां आ गये।’’ रामसिंह ने चौंक कर कहा।
No comments:
Post a Comment