सरदार के साथ बगल में दो अंगरक्षक चल रहे थे, जो उसके सामने बौने प्रतीत हो रहे थे। पीछे तीन चार व्यक्ति और थे जो उसके दरबारी थे।
आने के साथ ही सरदार ने देवता पुत्रों को प्रणाम किया और फिर अपने दरबारियों को आदेश दिया, ‘‘हार पहनाकर देवता पुत्रों का अभिवादन करो।’’
सरदार के पीछे से एक दरबारी आगे आकर प्रोफेसर की ओर बढ़ा और पास पहुंचकर उसने प्रोफेसर के गले में एक हार डाल दिया।
इसी के साथ प्रोफेसर चिहुंक कर खड़ा हो गया क्योंकि इस हार में फूलों की बजाय मरी हुई छिपकलियां पिरोई गयी थीं।
इससे पहले कि रामसिंह कुछ समझ पाता, उसे भी इस प्रकार के एक हार से सम्मानित कर दिया गया। वह सकपका कर अपने गले में पड़े हार को देखने लगा। डर, घिन इत्यादि विभिन्न प्रकार के भावों ने उसके चेहरे को हास्यास्पद बना दिया था। अब न तो उससे हार पहने बन रहा था न उतारते। फिर किसी तरह उसने अपने को संयत किया और पास में उछलते हुए प्रोफेसर से बोला, ‘‘घबराओ मत। ये छिपकलियां मरी हुई हैं।’’
‘‘ओह, फिर तो ठीक है। मैंने समझा जिन्दा हैं।’’ प्रोफेसर ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा।
‘‘आज रात को देवता पुत्रों के आगमन की प्रसन्नता में एक उत्सव का आयोजन होगा।’’ सरदार ने घोषणा की और सारे जंगलियों ने हर्षित होकर नारा लगाया।
‘‘इस अवसर पर हम अपने पड़ोसी कबीले के सरदार का पुतला जलायेंगे जिन्होंने हमारा काफी नुकसान किया है। हमारी बस्ती के कई लोगों को वे अब तक खा चुके हैं।’’ सरदार की इस बात पर एक बार फिर बस्तीवासियों ने हर्षध्वनि की।
‘‘देवता पुत्रों के लिए भोजन का प्रबंध करो। इन्हें कोई कष्ट नहीं होना चाहिए। ये काम मारीडूंगा, मैं तुम्हें सौंपता हूं’’ अपने पीछे खड़े एक व्यक्ति को उसने संबोधित किया। उसने झुककर स्वीकृति में सर हिलाया। आदेश देने के बाद सरदार ने देवता पुत्रों के सामने सर झुकाया और फिर बाहर निकल गया। उसके साथ साथ बाकी जंगली भी बाहर निकल गये।
अब वहां केवल मारीडूंगा अपने दो तीन साथियों के साथ रह गया था। उसने प्रोफेसर और रामसिंह को संबोधित किया, ‘‘देवता पुत्रों, हम आपकी सेवा करके आपको प्रसन्न कर देंगे। उसके बाद आप झींगा बेलू कबीले को अवश्य शाप दीजिएगा। उन्होंने हमारे कई आदमियों को पकड़कर खा लिया है।’’
प्रोफेसर ने इस प्रकार सर हिलाया मानो वह मारीडूंगा की बात समझ गया है।
उसी समय दूर कहीं ढम ढम की आवाज सुनाई देने लगी । प्रोफेसर और रामसिंह चौंक कर उस आवाज को सुनने लगे। मारीडूंगा भी कान खड़े करके उस ध्वनि को सुनने लगा।
‘‘लगता है झींगा बेलू कबीले में कोई उत्सव हो रहा है।’’ वह बड़बड़ाया।
‘‘यह आवाज कैसी है प्रोफेसर?’’ रामसिंह ने पूछा।
‘‘मुझे तो यह किसी ढोलक की आवाज लगती है।’’ प्रोफेसर बोला।
‘‘तो क्या किसी का विवाह हो रहा है?’’
‘‘नहीं। बल्कि जंगली कोई उत्सव मना रहे हैं। मैंने किताबों में पढ़ा है कि उत्सव मनाते समय जंगली ढोल अवश्य बजाते हैं।’’
2 comments:
बहुत बढ़िया रोचक ..आदिवासी ढोल जरुर पीटते है....
साइंस फिक्शन पर बढ़िया लेख है...पढ़कर अच्छा लगा
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