‘‘फिर कौन सा रास्ता है?’’
‘‘मुझे लगता है कि हमारे चारों ओर का जंगल कुछ अधिक घना हो गया है। शायद हम रास्ता भूलकर घने जंगल के अंदर पहुच चुके हैं।’’
‘‘फिकर न करो। घने जंगल के अन्दर खनिज मिलने की संभावना अधिक होती है। इसलिए यहां अवश्य हमें प्लेटिनम मिलेगा।’’
‘‘प्लेटिनम की खोज बाद में होती रहेगी। पहले हमें शमशेर सिंह का पता लगाना चाहिए।’’ रामसिंह चारों ओर देखते हुए बोला।
‘‘तुम ठीक कहते हो। चलो उस टीले पर चढ़कर देखते हैं।’’ प्रोफेसर ने एक ओर संकेत किया। वे उधर की ओर बढ़ने लगे। और थोड़ी देर बाद वे उस टीले के पास पहुंच चुके थे।
‘‘अजीब टीला है यह। एकदम गोल। कछुए की पीठ की तरह।’’ रामसिंह ने ऊपर की ओर चढ़ने का प्रयत्न किया किन्तु फिसल गया।
‘‘हा। और चिकना भी बहुत है। लगता है जैसे संगमरमर का बना हो।’’ प्रोफेसर ने अपनी राय प्रकट की।
‘‘मुझे तो लगता है जैसे हम किसी हाथी की पीठ पर चढ़ रहे हों।’’ इस बार रामसिंह को थोड़ा ऊपर चढ़ने में सफलता मिल गयी। थोड़ा प्रयत्न करने के बाद वे लोग चोटी पर चढ़ने में कामयाब हो गये।
‘‘अब इधर उधर दृष्टि दौड़ाओ। यहा से हमें शमशेर सिंह दिखाई पड़ सकता है।’’
फिर वे लोग खड़े होकर आसपास निरीक्षण करने लगे। अचानक रामसिंह बैठ गया और अपना सर थामकर बोला, ‘‘प्रोफेसर मुझे तो चक्कर आने लगा। लगता है जैसे टीला हिल रहा हो।’’
‘‘मुझे भी पूरा टीला हिलता हुआ महसूस हो रहा है। कहीं भूकम्प तो नहीं आ गया।’’ प्रोफेसर भी घबराकर बोला।
‘‘य--ये टीला तो हिलने के साथ साथ चल भी रहा है। ’’ रामसिंह चीख कर बोला।
‘‘ये टीला नहीं बल्कि किसी जानवर की पीठ है। वह देखो सामने उसका मुंह।’’ प्रोफेसर ने आगे की ओर संकेत किया और भय तथा आश्चर्य के कारण उनके मुंह खुले रह गये।
अजीब प्रकार का जानवर था यह। लगता था कछुए की एनलार्ज कापी बना दी गयी हो। उसका सर ठीक किसी कछुए की तरह लगता यदि गर्दन पर लम्बे लम्बे हरे रंग के बाल न होते। इन्हीं बालों ने उसकी छतरी नुमा पीठ को टीला होने का भ्रम दिया था और उसके सर को छुपा दिया था। वह जानवर जो कि अभी तक सो रहा था, पीठ पर होने वाली हलचल ने उसे जगा दिया था। अब वह आगे की ओर गति कर रहा था। बल्कि रेंग रहा था। क्योंकि उसकी चाल बहुत धीमी थी।
2 comments:
कहानी अच्छी है अगली कडी का इन्तज़ार रहेगा आभार्
चलती रहे कहानी।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Post a Comment