Sunday, September 27, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 33

‘‘वह तो कोई सूखा पत्ता है। मेरा विचार है कि वह केले का पता है।’’
‘‘वह केले का पत्ता नहीं बल्कि एक ताड़ पत्र है। मैंने किताबों में पढ़ा है कि प्राचीन समय में इन ताड़ पत्रों पर बड़े बड़े ग्रन्थ लिखे जाते थे।’’

‘‘तो इसमें विशेष बात क्या है? क्या उस ताड़ पत्र पर तुम भी कोई ग्रन्थ लिखने की सोच रहे हो?’’
‘‘ऐसी कोई बात नहीं। आजकल तो इस कार्य के लिए कम्प्यूटर इस्तेमाल हो रहे हैं। उसमें आसानी से इधर उधर का मैटर कट पेस्ट भी हो जाता है। मैं वास्तव में उस ताड़ पत्र पर प्राचीन लिपि के चिन्ह देख रहा हूं।’’ प्रोफेसर दो कदम उधर की ओर बढ़ा।

‘‘कैसा चिन्ह? कैसी लिपि?’’ रामसिंह अभी भी कुछ नहीं समझा था।
‘‘यह शत प्रतिशत हड़प्पा के समय की भाषा है। जो उस समय के किसी विद्वान ने ताड़ पत्र पर अंकित की है।’’
‘‘यह तुम कैसे कह सकते हो?’’

‘‘मैंने एक किताब में उस भाषा का नमूना देखा था। इस ताड़ पत्र पर भी मुझे वही नमूना दिखाई दे रहा है।’’
‘‘तो क्या उस जमाने में लोग अपनी भाषा के नमूने बनाया करते थे? लेकिन उन्हें क्या पता कि सैंकड़ों वर्ष बाद लोग उनके बनाये नमूने की खोज करेंगे?’’ रामसिंह ने आश्चर्य से कहा।

‘‘नमूने बनाये नहीं जाते थे मूर्ख बल्कि स्वयं बन जाते थे। जिस प्रकार आजकल एक सीधा सादा व्यक्ति मूर्खता का नमूना बन जाता है। अब मुझे यह खोज करनी है कि इस नमूने को किसने बनाया है।’’
‘‘मुझे मालूम है।’’ रामसिंह की बात पर प्रोफेसर चौंक कर उसकी ओर देखने लगा।
‘‘तुम्हें कैसे मालूम हुआ? क्या तुम हड़प्पा की सभ्यता के समय जीवित थे?’’
‘‘हड़प्पा की ऐसी की तैसी। मैं तो केवल इतना जानता हूं कि जो प्रतिलिपि तुम ताड़ के पत्र पर देख रहे हो वह उस कीड़े के कारण है जो ताड़पत्र के डंठल से चिपका हुआ है।’’

‘‘क्या बक रहे हो? भला एक कीड़ा इतनी जटिल भाषा कैसे लिख सकता है?’’ प्रोफेसर ने रामसिंह को घूरा।
‘‘मैं सच कह रहा हूं। पास आकर देखो।’’ रामसिंह ने उंगली से संकेत किया, ‘‘इस हरे कीड़े ने पत्ते को खा खाकर लकीरें बना दी हैं जो तुम्हें भाषा प्रतीत हो रही हैं।’’

प्रोफेसर को भी अब वह कीड़ा दिखाई पड़ गया। वह कुछ क्षण अपने सर को खुजलाता रहा फिर बोला, ‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि असली वैज्ञानिक मैं हूं या तुम।’’
‘‘अब तुम किसी नयी खोज के बारे में सोचो। किन्तु इससे पहले हमें ये पता लगाना है कि हम कहा आ गये?’’ रामसिंह चौंकते हुए बोला।

‘‘अभी तक शमशेर सिंह नहीं मिला। पता नहीं कहां गायब हो गया।’’ प्रोफेसर भी मानो अपने विचारों की दुनिया से वापस आ गया।
‘‘यही तो मैं भी कहने जा रहा था कि हम रास्ता भटक गये हैं। ये वो रास्ता नहीं है जहां से हम आगे बढ़े थे।’’

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