Monday, September 21, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 30

प्रोफेसर ने सूटकेस में हाथ डालकर दो तीन परखनलियां निकालीं । फिर विभिन्न प्रकार की लेबेल लगी हुई शीशियाँ निकालीं। इन शीशियों में अलग अलग रंगों के द्रव भरे हुए दिखाई दे रहे थे।
‘‘ये तुम क्या कर रहे हो प्रोफेसर?’’ रामसिंह ने अचकचा कर पूछा।

‘‘हालांकि असिस्टेंट को यह पूछने का अधिकार नहीं है। फिर भी मैं बता दे रहा हूं कि मैं प्लेटिनम की पहचान हेतु सल्फूरिक एसिड का निर्माण आरम्भ कर रहा हूं। लो इसे पकड़ो।’’ उसने परखनली एक चिमटी में कसकर रामसिंह की ओर बढ़ा दी।
अब वह एक एक शीशी को अपनी आखों के पास लाकर गौर से देखने लगा। फिर एक शीशी खोलकर उसका द्रव परखनली में थोड़ा सा टपका दिया। उसके बाद एक दूसरी शीशी का भी द्रव उसमें मिला दिया।

‘‘मुझे तो डर लग रहा है। कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाये।’’ रामसिंह बोला।
‘‘डर की कोई बात नहीं, अभी हमारा एसिड तैयार हो जायेगा।’’ प्रोफेसर ने तीसरी शीशी खोलते हुए कहा।

जैसे ही उसने उसका द्रव परखनली में डाला, उसमें से तेज़ धुयाँ उठा। वह धुवां रामसिंह के मुंह के पास पहुंचने की देर थी कि एक जोरदार खांसी और छींक ने उसके हाथ से परखनली गिरा दी।
‘‘ये--खों खों क्या बना डाला खों खों प्रोफेसर खों खों ---!’’ रामंसंह खांसते हुए मुकिल से बोल पा रहा था।
‘‘वेरी गुड। मैंने एक और वस्तु बनाने में सफलता प्राप्त कर ली।’’ प्रोफेसर रामसिंह की हालत से बेपरवाह चहकता हुआ बोला।

‘‘क्या?’’ उसी प्रकार खांसते हुए रामसिंह ने पूछा।
‘‘खांसी की अचूक दवा मैंने खोज निकाली है।’’
‘‘ये दवा खांसी बन्द करने की है या खांसी लाने की?’’ रामसिंह ने पूछा।
‘‘तुम अभी तक विज्ञान के मूल सिद्धान्त को नहीं समझ पाये। किसी रोग की दवा वही वस्तु बनती है जिससे स्वयं वह रोग उत्पन्न हो जाये। इस प्रकार चूंकि अभी बनाई दवा से तुम्हें खांसी आ गयी इसलिए अवश्य यह खांसी की अचूक दवा है।’’

‘‘इसका मतलब हुआ कि चूंकि आग से हम जल जाते हैं इसलिए अगर कोई आग से जल जाये तो भट्‌टी में छलांग लगा दे। तुरंत ठीक हो जायेगा।’’
‘‘बिल्कुल। कोयला होने के बाद तो यदि उसे एड्‌स भी होगा तो वह भी तुरंत ठीक हो जायेगा।’’
‘‘यार प्रोफेसर, यह एड्‌स क्या बला है?’’

1 comment:

Arshia Ali said...

गजब की फंतासी है। सिलसिला चलाते रहें।
( Treasurer-S. T. )