Wednesday, September 23, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 31

‘‘मैंने किताबों में पढ़ा है कि कुछ लोगों पास धन अधिक इकट्‌ठा हो गया था तो वह सड़ने लगा। उसी सड़न से यह बीमारी पैदा हो गयी। जिसने धीरे धीरे पूरी दुनिया को अपने लपेटे में ले लिया।’’
‘‘मैं कुछ समझा नहीं’’
‘‘समझा तो मैं भी नहीं। लेकिन चूंकि किताबों में लिखा है इसलिए मान लिया। ’’ प्रोफेसर का ध्यान उसी समय नीचे भूमि पर गया जहां रामसिंह के हाथ से गिरी परखनली के टुकड़े पड़े थे।

‘‘ये क्या किया तुमने? मेरी बनाई दवा गिरा दी।’’ उसने तेजी से कहा।
‘‘तो क्या हुआ? तुम दूसरी बना लेना।’’
‘‘मर गये। मुझे तो यह भी याद नहीं कि मैंने क्या क्या मिलाकर उसे बनाया था।’’ प्रोफेसर ने अपने सर पर हाथ मारते हुए कहा, ‘‘अब मुझे नये सिरे से इसका फार्मूला तलाश करना पड़ेगा।’’

‘‘फार्मूला बाद में तलाश करते रहना। पहले शमशेर सिंह को तलाश करो। पता नहीं कहां रह गया।’’ रामसिंह को चिन्ता होने लगी थी।
‘‘हां। हमें यहा उसकी प्रतीक्षा करते काफी देर हो गयी । अब तक तो आ जाना चाहिए था।’’ प्रोफेसर ने भी चौंक कर कहा।
‘‘चलो वापस चलकर देखते हैं।’’ रामसिंह बोला और वे वापस उसी रास्ते पर मुड़ गये जिधर से आये थे।
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हालांकि जंगली भैंसा काफी पीछे छूट चुका था किन्तु शमशेर सिंह अभी भी बेतहाशा भागा जा रहा था। उसे यही लग रहा था कि भैंसा अभी भी उसके पीछे आ रहा है।

फिर भूमि पर फैली एक लता ने उसके पांव पकड़कर उसे मुंह के बल गिरने पर मजबूर कर दिया। वहीं पड़े पड़े उसने मुड़कर देखा कि शायद भैंसा उसपर छलांग लगाने जा रहा है किन्तु पीछे सन्नाटा देखकर उसने कम्पन करते फफड़ों के बीच एक चैन की सास ली। इस समय उसके दिल की धडकनों की यह दशा थी कि यदि किसी डायनमो को उसके दिल से अटैच कर दिया जाता तो यू-पी- के उस गाँव को भी बिजली मिल जाती जहां के लोग राह चलती सुंदरियों को ताककर अपना काम चलाया करते हैं। उसका शरीर पसीने का मेघ बना हुआ था।

थोड़ी देर बेसुध पड़े रहने के बाद जब उसके शरीर और मस्तिष्क के बीच सम्बन्ध स्थापित हुआ तो उसके मन के संचार साधनों ने उसे आसपास के वातावरण के निरीक्षण का आदेश पारित किया।

और जब उसने खड़े होकर आसपास दृष्टि दौड़ायी तो यह देखकर उसके होश उड़ गये कि इस समय वह वह घने जंगल के किसी अनजान स्थान पर पहुंच चुका है जिसके न तो प्रवेश का पता है और न ही निकास का।

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