शमशेर सिंह की रही सही हिम्मत भी जवाब दे गयी। और वह हनुमान चालीसा का पाठ करते हुए तेजी से पीछे मुड़कर भागा। जंगली भैंसे ने जब अपने प्रतिद्वन्दी को मैदान छोड़कर भागते देखा तो उसे ताव आ गया और सींगें दिखाता हुआ तेजी से उसकी ओर दौड़ा। शमशेर सिंह ने इस समय दौड़ में सौ मीटर के वर्तमान ओलम्पिक चैम्पियन को भी मात कर दिया था अत: भैंसे को उसे पकड़ पाने में सफलता नहीं मिल पा रही थी। किन्तु वह भी पीछे रह जाने को अपनी तौहीन मानकर लगातार शमशेर सिंह को दौड़ाए जा रहा था।
शमशेर सिंह के बायें हाथ में सूटकेस मौजूद था। घबराहट में उसे यह ध्यान नहीं रह गया था कि उसने हाथ में कुछ पकड़ रखा है। वरना वह उसे वहीं फेंक देता।
काफी देर तक यह भाग दौड़ चलती रही। पीछे मुड़कर देखने के चक्कर में शमशेर सिंह एक पेड़ से टकराते टकराते बचा। और उसी के बाद उसके मस्तिक में एक आईडिया आया। वह तेजी से एक मोटे तने वाले पेड़ की ओर भागा और उसके सामने आकर खड़ा हो गया। जैसे ही भैंसा पास आया वह तेजी से एक ओर हट गया। भैंसा अपनी झोंक में पेड़ से जा टकराया और कुछ देर के लिए चकरा कर रह गया। शमशेर सिंह ने एक छलांग लगायी और झाड़ियों में घुसता चला गया। इससे पहले कि भैंसा अपने चकराते सर को सभाल पाता, वह उसकी पहुंच से दूर निकल चुका था।
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‘‘हम लोगों को उसकी प्रतीक्षा करते करते काफी देर हो गयी है। लेकिन अभी तक उसका कोई अता पता नहीं चला।’’ रामसिंह बोला।
‘‘लगता है वह प्लेटिनम की खोज में इतना खो गया कि हम लोगों को भूल गया।’’ प्रोफेसर ने अपना मत दिया।
‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि उसे प्लेटिनम मिल गया हो और वह उसे लेकर चंपत हो गया हो?’’ रामसिंह ने आशंका प्रकट की।
‘‘ऐसा नहीं हो सकता। क्योंकि प्लेटिनम की असली पहचान तो मेरे पास है। बिना मेरी सहायता के प्लेटिनम की खोज हो ही नहीं सकती।’’ प्रोफेसर ने इत्मिनान दिलाया।
‘‘कौन सी ऐसी पहचान है प्लेटिनम की जो केवल तुम जानते हो?’’ रामसिंह ने पूछा।
‘‘किताबों में लिखा है कि प्लेटिनम पर सल्फूरिक एसिड का असर नहीं होता। किन्तु यह पहचान मैं तुम्हें तब बतांगा जब तुम पूरी तरह वैज्ञानिक बन जाओगे।’’ प्रोफेसर ने अपनी टोपी सही की और रामसिंह के हाथ से लेंस लेकर आसपास की झाड़ियों का निरीक्षण करने लगा।
‘‘तो तुहारे पास इस जंगल में सल्फूरिक एसिड कहां से आयेगा?’’
‘‘वह किसलिए?’’ प्रोफेसर ने चौंक कर पूछा।
‘‘प्लेटिनम की पहचान के लिए।’’
‘‘सल्फूरिक एसिड तो मैं अभी बना सकता हूं। बल्कि मैं सोचता हूं कि बना ही डालूं।’’ प्रोफेसर अपना सूटकेस खोलने लगा। जब सूटकेस खुला तो रामसिंह की आखें फैल गयीं। क्योंकि उसमें प्रोफेसर की प्रयोगशाला का सारा सामान भरा हुआ था।
1 comment:
बात कुछ किनारे लगती लग रही है !
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