Monday, July 6, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 5

जैसे ही उसने पहला कदम दरवाजे के बाहर रखा, एक काली बिल्ली तेजी से दौड़ती हुई आयी, उसके सामने पल भर को ठिठकी और फिर उछल कर दूर निकल गयी। गली के कुछ आवारा कुत्ते उसका पीछा कर रहे थे।

‘‘अरे बाप रे! ये क्या हो गया। अब तो मेरा इंटरव्यू जरूर गड़बड़ होगा।’
शमशेर सिंह के स्वर में घबराहट थी। वह वापस घर के अंदर पलट आया और घड़े से एक गिलास पानी निकालकर पीने लगा। पानी पीने के बाद उसकी घबराहट में कुछ कमी हुई और वह फिर से कमर कसकर तैयार हो गया।

सड़क पर आकर उसने आटो के लिए इधर उधर दृष्टि दौड़ाई। कुछ आटो उसकी ओर आते दिखाई दिये।
पहला आटो जब पास आया तो उसने हाथ देकर रुकने का संकेत किया। किन्तु वह पास से गुजरता चला गया। ठसाठस भरे होने के कारण उसमें शमशेर सिंह के भारी भरकम शरीर के समाने की कोई जगह न थी।

शमशेर सिंह ने बुरा सा मुंह बनाया और अगले आटो को रुकने का संकेत देने लगा। किन्तु सरदार जी भी शायद उससे खार खाकर ड्राइविंग करने बैठे थे। अत: उनकी टेम्पो भी शमशेर सिंह के पास से गुजरती चली गयी।

झुृझलाहट में एक थप्पड़ शमशेर सिंह ने अपने गाल पर मारा और तीसरे आटो की प्रतीक्षा करने लगा। जो दूर से आती हुई किसी महाराजा की सवारी लग रही थी। शमशेर सिंह ने उसे हाथ दिया और उसकी गति धीमी होने लगी। क्योंकि उसमें एक सवारी की जगह खाली थी।

जैसे ही वह पास आया शमशेर सिंह तेजी से उसकी ओर बढ़ा। किन्तु एक साहब उससे भी अधिक फुर्तीले सिद्ध हुए और सीट घेरकर इस प्रकार उसकी ओर देखने लगे मानो उन्होंने अमेरिका पर विजय प्राप्त कर ली हो। आटो उन्हें लेकर आगे बढ़ गया।

‘‘हे भगवान, मुझे इतनी शक्ति दे कि मैं धीरज रख सकूं।’’ शमशेर सिंह ने मुंह आकाश की ओर करके विनती की। उसी समय एक आटो उसके पास आकर रुकी। वह भी शमशेर सिंह की तरह जरूरतमन्द थी। क्योंकि उसमें अच्छी खासी जगह खाली थी।
शमशेर सिंह ने आव देखा न ताव और झट से अंदर घुस गया। उसके बैठते ही आटो चल दिया।

कुछ क्षणों तक शमशेर सिंह ठण्डी साँसें लेकर अपना होश ठिकाने लगाता रहा फिर आँखें खोलकर जब उसने आसपास के लोगों को देखा तो सब उसे घूर घूरकर और मुस्कुराकर देख रहे थे। वह चकराकर कनखियों से अपना निरीक्ष्ण करने लगा। किन्तु उसे कोई ऐसी कमी अपने में न दिखाई पड़ी जो लोगों के उपहास का कारण बन सकती। वह निश्चिंत होकर स्वयं भी लोगों को देख देखकर मुस्कुराने लगा।

कुछ देर बाद उसने ड्राईवर को संबोधित किया, ‘‘मिरेकिल होटल के सामने आटो रोक देना।’’
‘‘यह आटो उधर से नहीं जायेगा।’’ आटो वाले ने इत्मिनान से उत्तर दिया और शमशेर सिंह उछल पछ़ा।
‘‘क--क्यों? लेकिन रूट तो वही है।’’
‘‘हा? रूट तो वही है। लेकिन आज उधर दलित पार्टी की रैली होने के कारण रास्ता बन्द है। इसलिए आटो थोड़ा घूमकर जायेगा।’’

4 comments:

Unknown said...

yah bhi khoob rahi !

Arvind Mishra said...

इसे पटकथा में ही डाईरेक्ट क्यों नहीं तब्दील कर देते जीशान भाई -दुबारा मेहनत बचेगी ! लिखी तो यह पटकथा स्टाईल में है बस फार्मेट में ला दीजिये !

seema gupta said...

आज ही पडी सारी कडियाँ बेहद रोचक ...आगे का इन्तजार..

regards

zeashan haider zaidi said...

Arvind Ji, Isi bahane type ho jayegi. Phir to kisi bhi format men ban jayegi