Saturday, July 4, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 3

शमशेर सिंह इंटरव्यू की तैयारी में पूरी तरह व्यस्त था। उसने ज़ंग लगे संदूक से पुराना नीले रंग का कोट और लाल रंग की टाई निकाली और हाथों से उनकी सिलवटें मिटाने लगा। फिर उसे कुछ ध्यान आया और एक कोने से उसने बिजली की प्रेस निकाल ली जिसका रंग धूल और गर्द के कारण बदल चुका था।

शमशेर सिंह इस समय पूरी तरह हड़बड़ाया हुआ था। और तैयारी के बीच बीच में मेज पर रखी नोट बुक से दो तीन लाईनें भी पढ़ता जा रहा था। प्रेस निकाल कर एक बार फिर वह मेज के पास पहुंचा और पन्ने उलटकर दो तीन शब्द पढ़े। फिर उसने प्रेस का प्लग साकेट में लगाने का इरादा किया।

‘‘ये तो बहुत गंदी हो रही है। पहले इसे साफ कर लूं ।’’ वह बड़बड़ाया और पास में रखा कपड़ा उठाकर उसे पोंछने लगा। दो तीन बार हाथ मारने के बाद उसे कुछ ध्यान आया और वह सफाई करना छोड़कर हाथ में पकड़े कपड़े को देखने लगा। ये वही टाई थी जो उसने अभी अभी संदूक से पहनने के लिए निकाली थी। उसने टाई रखकर अपने माथे पर एक हाथ मारा और धूल से सनी पाँचों उंगलियों ने उसके माथे पर तिलक लगा दिया। लेकिन उसे इसका होश कहाँ था। उसने टाई की गर्द झाड़ी और प्रेस का प्लग साकेट में लगा दिया। दूसरे ही पल उसे एक जोरदार झटका लगा और वह प्रेस सहित उछलकर पलंग पर जा पहुंचा.

‘‘ओह! मैं तो भूल ही गया था कि साकेट टूटा हुआ है। अब इसे ठीक कराना ही पड़ेगा।’’ वह एक बार फिर उठा और सावधानी से प्लग साकेट में लगा दिया। नोट बुक की दो तीन लाईने पढ़ने के बाद उसने कोट फैलाया और उसे प्रेस करने लगा। प्रेस चलाने के साथ साथ कोट पर एक सफेद लकीर बनती चली गयी जो प्रेस की तली पर जमी धूल की थी। शमशेर सिंह ने प्रेस अलग रखी और कोट झाड़ने लगा। फिर प्रेस करने का इरादा छोड़कर वह कोट पहनने लगा।

तभी उसे कुछ ध्यान आया और वह नीचे देखने लगा। उसने अपने सर पर एक हाथ मारा और कोट उतारने लगा। क्योंकि उस समय उसने केवल अण्डरवियर और बनियान पहन रखी थी। कोट उतारने के बाद उसने इधर उधर दृष्टि दौड़ाई किन्तु शर्ट कहीं दिखाई नहीं पड़ी
वह सोचने लगा कि शर्ट कहां हो सकती है।

‘ओह! अब ध्यान आया कि शर्ट कहां हो सकती है।’’ उसकी आँखें चमकीं और वह तुरंत बाहर भागा। एक पड़ोसी के घर पर पहुंचकर उसने दरवाजा खटखटाया।

3 comments:

अभिषेक मिश्र said...

Interview ki taiyari mein aksar aisa hi hota hai. :-)

admin said...

Rochak

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Arvind Mishra said...

धन्य हैं महा प्रभु चैतन्य !