Monday, May 11, 2009

मजबूर आसमां Part - 3

‘ईट-एन-ज्वाय’ कंपनी की भारतीय ब्रांच अशोक नायर के कण्टोल में सफलता का ग्राफ काफी ऊंचा दिखा रही थी। और इसके लिए कंपनी उसे अनेकों सर्टिफिकेट्‌स से नवाज़ चुकी थी।
इस समय वही अशोक नायर इं-विशाल के साथ देश के सबसे बड़े आटा प्लांट के अंदर मौजूद था।
‘‘बस्ती को आटे की सप्लाई इसी प्लांट से हुई थी। आप चेक कर सकते हैं, यहां आपको कोई गड़बड़ नहीं दिखेगी।’’
‘‘हमारी लैब की केमिकल रिपोर्ट से साफ जाहिर है कि बस्ती में बांटे गये आटे के पैकेट्‌स में उस खतरनाक केमिकल की मिलावट थी। अगर वह आटा इसी प्लांट से गया था तो मुझे इसे सील करना पड़ेगा।’’
‘‘हो सकता है कंपनी की दुश्मनी में किसी बाहरी व्यक्ति ने वह केमिकल मिला दिया हो।’’ पास में खड़ा हुआ एक युवक बोल उठा। इं-विशाल ने उसकी तरफ देखा। गोरा चिट्‌टा वह व्यक्ति विदेशी मालूम हो रहा था।
‘‘आपकी तारीफ?’’
नायर जल्दी से बोल उठा,‘‘ये मि-खालिद हैं। यह प्लांट इन्ही की देख रेख में चलता है।’’
‘‘मुझे आप ही की जरूरत है। मेरे साथ चलिए। मैं इस प्लांट का निरीक्षण करना चाहता हूं।’’
‘‘आईए!’’ खालिद ने जवाब दिया।
दोनों ने एक तरफ से चलना आरम्भ किया। काफी बड़ा प्लांट था यह। जिसमें
हर तरफ लगी विशाल मशीनें अपना काम कर रही थीं।
‘‘‘ईट-एन-ज्वाय’ का चेयरमैन कौन है?’’ अचानक इं-विशाल ने पूछा।
‘‘मि-ब्लू जीन।’’
‘‘ये कैसा नाम। ये असली नाम तो नहीं हो सकता।’’
‘‘ये नकली ही नाम है। न तो उनका कोई असली नाम जानता है और न ही आज तक उन्हें किसी ने देखा है।’’
‘‘फिर कंपनी का काम काज कैसे चलता है?’’
‘‘हर साल उनकी तरफ से एक पत्र कंपनी के सी-ई-ओ- को मिलता है। जिसमें कंपनी चलाने के लिए जरूरी दिशा निर्देश व टार्गेट होता है। बाकी पूरे साल उन्हें कोई मतलब नहीं होता।’’
‘‘अजीब बात है।’’
खालिद ने देखा इं-विशाल एक मशीन को गौर से देख रहा है जो गेहूं को पीसकर आटे में परिवर्तित कर रही थी।
‘‘यहा गेहूं के दाने तो कुछ ज्यादा ही बड़े नजर आ रहे हैं। ये पैदा कहा होते हैं?’’
‘‘अफगानिस्तान के एक विशेष भाग में। जहा इनकी खेती बायोटेक तरीके से होती है। गेहूं के ये दाने बड़े भी होते हैं और इनसे आटा भी बहुत ज्यादा निकलता है। एक किलो आटे को बनाने के लिए केवल दस दाने काफी होते हैं।’’
‘‘बहुत खूब।’’
‘‘इसीलिए हमारी कंपनी दुनिया की रोटी की डिमांड का तीस प्रतिशत अकेले सप्लाई कर रही है। आप खुद देख सकते हैं।’’ खालिद आगे बढ़ा और वहां रखे एक कटोरे में गेहूं भरकर इं-विशाल के सामने लाया। इं-विशाल उन्हें हाथों से टटोलने लगा।
‘‘इनका वजन भी अच्छा खासा है।’’
एकाएक उसका हाथ किसी सख्त चीज से टकराया। उसने निकालकर देखा। ये एक छोटा सा बैज था। खालिद की भी नजर उसपर पड़ी।
‘‘ये तो नायर साहब का बैज है। जिसे कल से वो काफी परेशान होकर ढ़ूंढ रहे हैं। लाईये, मैं उन्हें दे दूंगा।’’
इं-विशाल ने बैज खालिद की तरफ बढ़ाया। उसी समय बैज पर उंगलियों का दबाव पड़ने से एक खटका सा हुआ और वह दो भागों में खुल गया।
‘‘इसके अंदर क्या है?’’ दोनों ने देखा, अंदर एक छोटा सा प्लास्टिक कार्ड रखा हुआ था।
‘'शायद यह मि-नायर का इलेक्टानिक आईडेन्टिटी कार्ड है, जो उन्हें कंपनी की तरफ से दिया गया है।’’ इंस्पेक्टर ने अनुमान लगाया।
‘‘हमारी कंपनी का कार्ड हरे रंग का होता है। जबकि यह लाल है।’’
‘‘फिर तो इस बारे में मि-नायर ही बता पायेंगे।’’ इंस्पेक्टर गौर से कार्ड को देखने लगा।
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‘‘इस बैज के बारे में आप काफी परेशान थे मि-नायर।’’ इं-विशाल ने बैज अशोक नायर के सामने लहराया और नायर चौंक कर उसे देखने लगा।
‘‘य---ये आपको कहा कैसे मिला?’’ नायर ने उसे लेने के लिए जल्दी से हाथ बढ़ाया। इं-विशाल ने बैज उसे दे दिया। नायर ने उसे लेकर जेब में डाल लिया।
‘‘उसे चेक तो कर लें नायर साहब। उसके अंदर लाल कार्ड मौजूद है भी या नहीं।’’
‘‘क्या मतलब?’’ इस बार नायर के स्वर में परेशानी भी झलकने लगी थी।
‘‘मतलब ये कि लाल कार्ड बैज के अंदर नहीं है। दरअसल उसे हमारे कम्प्यूटर ने पूरी तरह पढ़ लिया है। उसके अनुसार बस्ती में हुए नरसंहार का जिम्मेदार तुम्हें मय सुबूत ठहराया जा सकता है।’’
नायर का पूरा चेहरा पसीने से भीग चुका था।
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अगली किस्त में कहानी का ट्विस्टिंग एंड.

3 comments:

Arvind Mishra said...

द इंड का इंतज़ार है !

अभिषेक मिश्र said...

कहानी में ट्विस्ट तो आ ही चुका है.

seema gupta said...

कहानी रोचक है आगे ....

regards