ऑपरेशन शुरू हो गया. महर्षि वीराचार्य ने मेरे मस्तिष्क को मेरे शरीर से निकालकर धातुई शरीर में स्थानांतरित कर दिया. उन्होंने उसका सम्बन्ध ऊर्जा पहुंचाने वाली मशीन से कर दिया था. किंतु यहीं पर गड़बड़ हो गई.इससे पहले की महर्षि मेरे शरीर का सम्बन्ध पूरी तरह मेरे धातुई शरीर से कर पाते, दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया. किंतु उससे पहले वे ऊर्जा पहुंचाने वाली मशीन को चालू कर चुके थे. इस प्रकार अब मैं केवल देख और सोच सकता था. इसके अतिरिक्त अन्य कार्यों में किसी मूर्ति की तरह ही जड़ हो चुका था.
हमारे प्रयोग के बारे में जानने वालों ने यही समझा कि मैं और महर्षि वीराचार्य पूरी तरह मृत हो चुके हैं. अतः उन्होंने हम दोनों के शरीर भूमि में दफना दिए. और उसके बाद मेरी प्रयोगशाला को पत्थर से बंद कर दिया. इस प्रकार अब मैं प्रयोगशाला में अकेला बेजान मूर्ति की तरह खड़ा था. सोच सोचकर और एक ही दिशा में लगातार देखकर बोर होने के लिए. क्योंकि मैं अपनी पुतलियाँ भी नहीं हिला सकता था.
किंतु मानवीय मस्तिष्क पृथ्वी की सबसे शक्तिशाली रचना है. वह कभी हार नहीं मानता. और हर कठिनाई के नए रास्ते निकाल ही लेता है. मेरे मस्तिष्क ने भी योग क्रिया द्वारा अपनी शक्ति बढानी शुरू कर दी. उसे मशीन द्वारा लगातार ऊर्जा मिल ही रही थी.
फ़िर लगभग सौ वर्षों में मेरे मस्तिष्क ने इतनी शक्ति प्राप्त कर ली कि वह अपने आसपास का कोई भी काम बिना हिले डुले केवल अपनी शक्ति किरणों से कर सकता था. और आसपास क्या हो रहा है, बिना वहां गए जान सकता था. फ़िर धीरे धीरे उसकी शक्ति और बढती गई और मेरा मस्तिष्क इतना विकसित हो गया कि शरीर की आवश्यकता ही समाप्त हो गई. मेरी शक्ति का एक नमूना तुम लोग देख चुके हो. जब मैंने उन दोनों व्यक्तियों को जला दिया था. इसके अलावा तुम जब अपने ताबूतों में लेटे थे तब भी मेरी नज़रों में थे और जब तुम्हारा संपर्क इस युग की दुनिया के साथ हुआ उस समय भी हर पल मेरी नज़रों में रहे. फ़िर मुझे उस साजिश का पता भी लग गया जो ब्लैक क्रॉस और ब्लू क्रॉस तुम लोगों के साथ करना चाहते थे. किंतु मैं उस समय कुछ नहीं कर सकता था क्योंकि मेरी शक्ति की पहुँच वहां तक नहीं थी. फ़िर संयोग से तुम लोग यहाँ पहुँच गए और मैंने तुम्हें अपने पास बुला लिया क्योंकि बाहरी दुनिया में अब तुम्हारे लिए खतरा उत्पन्न हो रहा था. इस प्रकार तुम लोग इस समय मेरे मस्तिष्क के सामने खड़े हो." मूर्ति से आ रही आवाज़ ने अपनी बात समाप्त की.
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सियाकरण इत्यादि आश्चर्य से महर्षि प्रयोगाचार्य की कहानी सुन रहे थे. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था की ऐसा भी संभव है. किंतु वे महर्षि की महानता से भी पूरी तरह अवगत थे अतः उन्होंने विश्वास कर लिया कि ये सारी बातें सत्य हैं.
"अब आपका क्या विचार है महर्षि?" सियाकरण ने पुछा.
"मैंने यह देखा कि तुम लोगों को बाहरी दुनिया में काफ़ी कठिनाई हुई. और इसका कारण यह था कि तुम लोगों के लिए वह दुनिया अपरिचित थी. न तो तुम लोग उसकी भाषा जानते थे और न ही उनके प्रयोग की वस्तुओं के बारे में जानते थे. अतः मैंने यह तये किया है की तुम्हें इस युग की सारी बातों से अवगत करा दूँ. वैसे भी मेरा जीवन अब बहुत कम रह गया है, क्योंकि मुझे ऊर्जा देने वाला स्रोत सूखता जा रहा है. इससे पहले की मेरा जीवन पूरी तरह समाप्त हो जाए मैं अपने ज्ञान के भण्डार का कुछ अंश तुम लोगों को दे देना चाहता हूँ. फ़िर उसके बाद तुम लोग आराम से बाहरी दुनिया में अपना जीवन व्यतीत करना."
"हमें आपके विचार जानकर बहुत प्रसन्नता हुई. हमें गर्व है की इस युग में भी हम आपके शिष्य होंगे." मारभट ने कहा. सबने उसकी हाँ में हाँ मिलाई.
फ़िर उनकी शिक्षा प्रारंभ हो गई जो महर्षि प्रयोगाचार्य का मस्तिष्क उन्हें दे रहा था. और इस शिक्षा के बाद उन्हें बाहरी दुनिया में घुलमिल जाना था.
--------समाप्त----------
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इस उपन्यास का पहला एपिसोड यहाँ पढ़ें.
6 comments:
" interetsing climax..... i have read each episode from the begining and enjoyed reading whole story.....it was thrilling interesting.....and superb.."
Regards
एक बेजोड़ हास्य विज्ञान कथात्मक कृति का समापन ! बधाई जीशान !
I too have read every episode, almost as soon as it showed up in my feed reader.
Thanks to all supporters and motivators.
अच्छी कहानी थी.
HELLO!
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