मारभट और सियाकरण जब गली से बाहर निकले तो उन्हें सामने ही एक होटल दिखाई दिया. वे लोग उसमें घुस गए. अन्दर कुर्सियों पर लोग बैठे थे.
"अरे देखो, उस मनुष्य के मुंह से धुवां निकल रहा है. उसके मुंह में आग लग गई है." मारभट ने एक मेज़ की ओर देखा जिसके पीछे बैठा व्यक्ति सिगरेट पी रहा था.
"मुंह में नहीं बल्कि पेट में लगी है. उसे फ़ौरन बुझाओ वरना बेचारा जल जाएगा." सियाकरण बोला फ़िर मारभट ने आव देखा न ताव और वहां पहुंचकर मेज़ पर रखा पूरा जग उस व्यक्ति के सर पर उंडेल दिया.
"अबे उल्लू के पट्ठे, क्या पागल हो गया है. यह क्या कर दिया?" वह व्यक्ति चिल्लाया.
"तुम्हारे मुंह में आग लगी थी. वही मैंने बुझाई है." मारभट ने कहा.
"आग लगी होगी तुम्हारे मुंह में. मेरा सारा सूट सत्यानास करके रख दिया." उस व्यक्ति ने मारभट का गरेबान पकड़कर दो तीन झटके दिए.
"वाह, एक तो मैंने तेरा भला किया और तुम क्रोध दिखाते हो. हमारे युग में तो ऐसा नहीं होता था." मारभट ने अपना गरेबान छुड़ाते हुए कहा.
"तेरा दिमाग सनक गया है. तुझे अवश्य मेरे दुश्मनों ने मुझे नीचा दिखाने के लिए भेजा है. मैं तुझे छोडूंगा नहीं." वह व्यक्ति मारभट से लिपट गया और फ़िर वहां अच्छा खासा हंगामा मच गया. यह हंगामा इतना बढ़ गया की मैनेजर को अपने केबिन से उठकर आना पड़ा.
फ़िर उसने बीच बचाओ करके मामले को रफा दफा किया.
"आप मेरे साथ आइये." मैनेजर ने मारभट और सियाकरण को संबोधित किया. मारभट और सियाकरण उसके पीछे चल पड़े. मैनेजर उन्हें अपने कमरे में ले आया और कुर्सियों पर बैठने का संकेत किया.
"हाँ, अब आप लोग बताइये कि क्या बात थी?"
"बात क्या थी. हमने तो उसके मुंह में लगी आग बुझाई थी और वह हमसे लड़ने लगा." सियाकरण बोला.
"मुंह में आग लगी थी?" मैनेजर ने आश्चर्य से कहा. "लेकिन आपको इसका पता कैसे चला?"
"हमने स्वयें देखा था. उसके मुंह में एक नाली लगी थी और उसमें से धुंआ निकल रहा था." सियाकरण ने बताया.
"ओह! अब मैं समझा." मैनेजर पूरी बात समझ गया और मन ही मन बडबडाया, "मैंने अपने पूरे जीवन में पहली बार इतने मूर्ख व्यक्ति देखे हैं."
उसने कहा, "आप लोगों को उसकी आग नहीं बुझानी चाहिए थी. क्योंकि वह आग उसने अपने मुंह में स्वयें जान बूझकर लगाई थी."
"स्वयें लगाई थी! क्या मतलब?" मारभट ने आश्चर्य से पूछा.
"कुछ लोगों को जब ठण्ड अधिक लगती है तो वे उससे बचने के लिए अपने अन्दर आग सुलगा लेते हैं. और फ़िर उससे तापकर सर्दी भगाते हैं."
"ओह! अब मैं समझा. तभी तो मैं कहूं कि वह इतने क्रोध में क्यों आ गया था. अवश्य यही बात थी." सियाकरण कि समझ में मैनेजर की बात आ गई थी.
"ये लोग पूरे डफर हैं. इतने कि इनको अपने यहाँ नौकरी पर रखा जा सकता है." मैनेजर ने फ़िर अपने मन में कहा और उनसे बोला, "क्या आप लोग कहीं नौकरी करते हैं?"
सियाकरण और मारभट ने एक दूसरे की ओर देखा फ़िर सियाकरण बोला, "मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझा. यह नौकरी क्या होती है?"
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