Wednesday, December 3, 2008

साइंस फिक्शन - भूत, वर्तमान, भविष्य : संस्मरण - 9


लंच टाइम में अमित ओम जी अपनी दुखभरी गाथा सुनाने लगे. दरअसल मोहन जी उन्ही के रूम पार्टनर बने हुए थे. रात को मोहन जी को गर्मी लगने लगी और उन्होंने फुल स्पीड में पंखा चला दिया. अब बनारस का मौसम ऐसा तो था नहीं. नतीजे में अमित को कम्बल ओढ़ना पड़ा. थोडी देर बाद मोहन जी बोले अब मुझे और गर्मी लग रही है. उन्होंने ए.सी. भी चला दिया. अब तो अमित जी कम्बल के अन्दर भी ठिठुरे जा रहे थे.
लेकिन कहानी यहीं पर ख़त्म नही हुई. ए.सी. और पंखा काफी देर चलाने के बाद मोहन जी कहने लगे, अब मुझे कुछ कुछ सर्दी लग रही है. तो बजाये इसके कि वे पंखा और ए.सी. बंद करते, उन्होंने अमित के ऊपर से कम्बल खींचा और ख़ुद ओढ़ लिया. फ़िर तो अमित की रात बुरी गुजरी.
सारे तकनीकी सत्र समाप्त हो चुके थे. अब बारी थी बनारस डाक्यूमेंट की तैयारी की. इस काम के लिए एयर वाइस मार्शल विश्वमोहन तिवारी जी लगाये गए. और साथ में जुटे सभी सत्रों के रिपोर्तिअर. जिन्होंने अपने अपने सत्रों का कच्चा चिटठा बयान किया. और आश्चर्य इस बात का था की जो सत्र एक एक घंटे चले उसमें काम की बात बस एक ही मिनट की थी.( वरना रिपोर्तिअर को भी एक घंटा लेना चाहिए था. ) तो इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे थे डा. मनोज पटैरिया जी और साथ में थे भारतीय विज्ञान कथा समिति के अध्यक्ष डा. राजीव रंजन उपाध्याय जी. इस सत्र में बहुत ही अहम् मुद्दों पर चर्चा हुई. विज्ञान कथा की एक नई परिभाषा दी जाए, यह सबसे अहम् मुद्दा था. उसके बाद अगला अहम् मुद्दा था, विज्ञान कथा पर पुरूस्कार दिए जायें. भारतीय विज्ञान कथाओं पर अगर रिसर्च हो तो दो चार पी.एच.डी के टोपिक और मिल सकते हैं. इसलिए इस टोपिक को भी चर्चा में शामिल कर लिया गया. और इस तरह धीरे धीरे बनारस डाक्यूमेंट की थीसिस तैयार होने लगी. शाम को एक अलग ही रंग नज़र आ रहा था. दरअसल आज कुछ प्रतियोगिताएं भी प्रायोजित थीं. औरतों के लिए सूप बनाओ और पुरुषों के लिए मछली पकडो. वैसे मछली का सूप भी स्वादिष्ट होता है चीनी और जापानियों के लिए. तालाब में मछलियाँ छोड़ी गईं और आधी से ज़्यादा पहुँचने से पहले ही परलोक सिधार गईं. फ़िर शुरू हुई प्रतियोगिता और दिल्ली के अमित सरवाल एकमात्र मछली पकड़कर बाज़ी मार गए. हमारे अरशद भाई ने भी पूरा ज़ोर लगाया. पूरा तालाब घूम घूम कर मछली पकड़ने की कोशिश की. लेकिन वह ठहरे गोमती वाले जिसमें मछलियाँ तो नहीं हाँ फटे जूते ज़रूर निकलते हैं. तो वह वहां कहाँ मछली पकड़ पाते. फ़िर सूप प्रतियोगिता का रिज़ल्ट आया और रीमा सरवाल जी बाज़ी मार ले गईं. यानी एक तरफ़ अमित सरवाल और दूसरी तरफ़ रीमा सरवाल. अब मैं अरविन्द जी से पूछना भूल गया कि कहीं यह फिक्सिंग का मामला तो नहीं. अरविन्द जी वैसे भी मछलियों का विभाग सँभालते हैं. हो सकता है मछलियों को कुछ समझा दिया हो.
इस बीच वक्त हो गया था हरीश यादव के मैजिक शो का. जो सभी बच्चों को खूब पसंद आया. उन बच्चों में डा. उपाध्याय, डा. पटैरिया, डा. अरविन्द के साथ हम सभी शामिल थे. डा. अरविन्द दुबे जो हरीश यादव के सहयोगी थे, तख्ती दिखा दिखा कर सभी से ताली बजवा रहे थे. और जो नहीं बजाता था उसे स्टेज पर बुलाकर खिंचाई भी करते थे. हमारे जाकिर भाई भी इससे बच नही पाये.
शो देखते देखते हमारी ट्रेन का वक्त हो गया. इसलिए आगे का कार्यक्रम अरविन्द जी के भरोसे छोड़कर हमने सबसे विदा ली, बनारस स्टेशन तक आए और फ़िर ट्रेन में बैठकर लौटके बुद्धू घर को आये.
तो ये किस्सा यहीं ख़त्म हुआ. अब कल से वापस आते हैं किस्सये ताबूत पर.

2 comments:

Arvind Mishra said...

बहुत बहुत शुक्रिया जीशान जी ,आपने तो अपनी जिम्मेदारी बखूबी पूरी कर ली -अब शेष दो दिनों का अवशेष कौन सुनाएगा ?
है आपकी नजर में कोई ?

zeashan haider zaidi said...

अरविन्द जी, इस बारे में आप ही जान सकते हैं. और decide कर सकते हैं. मुझे भी यह ज़िम्मेदारी आप ही ने सौंपी थी. मुझे खुशी है कि मेरा presentation आपको पसंद आया.