चौथा सत्र समाप्त हुआ और हम चाये पीने बाहर निकले. देखा मोहन जी हत्थे से उखड़े हुए हैं. पता चला उनका झोला, जो उन्हें यहाँ मिला था, किसी ने शरारत में मार लिया है. आख़िर में उन्हें दूसरा झोला देकर बहलाया गया. हालाँकि उन्हें फ़िर भी अफ़सोस था कि झोले के साथ उनकी कुछ बहुमूल्य कृतियाँ पार हो गई थीं. इस बीच पता चला कि मीनू पुरी जी अपना पेपर पढने से छूट गई हैं. और वह भी तब जबकि अरविन्द जी हर सत्र के बाद उन्हें याद कर रहे थे. बहरहाल बचे खुचे लोगों को किसी तरह अन्तिम सत्र में ठूँसा गया.
पांचवां और अन्तिम तकनीकी सत्र विज्ञान कथा के भविष्य पर आधारित था. प्रोफ़ेसर आर.डी.शुक्ला ने कुर्सी संभाली और संचालन व रिपोर्टिंग का काम संभाला मीनू खरे ने. सबसे पहले बोलने आए हेमंत कुमार जी. एक पाठक की हैसिअत से उन्हें भारत में विज्ञान कथा का भविष्य उज्जवल दिखा. मालुम नहीं एक लेखक की हैसिअत से उन्हें कैसा दिखा. वैसे ख़ुद लेखक का भविष्य तो प्रकाशक पर निर्भर होता है. यह बात हेमंत जी ने भी ढके छुपे लफ्जों में बता दी. विज्ञान कथा लेखक अमित कुमार ने वर्तमान विज्ञानं कथा की अन्य साहित्यिक कथाओं के साथ तुलना की और साहित्यकारों को विज्ञान कथा को मुख्य धारा से अलग करने के लिए लताड़ा भी. उनका यह कदम साहस योग्य कहा जाएगा क्योंकि इस समय चेयरमैन की कुर्सी पर इत्तेफाक से एक साहित्यकार तशरीफ़ रखते थे. बाद में बात बराबर करने के लिए अमित ने विज्ञान कथाकारों से भी कहा कि कम से कम वे अपनी कथाएं साहित्य में शामिल करने लायेक लिखें. साहित्य समाज का दर्पण होता है. बुशरा अल्वेरा ने एक कदम आगे बढ़ते हुए विज्ञान कथा को भविष्य के समाज का दर्पण बता दिया. कुछ महिलाओं ने इस बीच अपने पर्स का दर्पण निकालकर लिपस्टिक सही करनी शुरू कर दी थी.
एक तरफ़ अरशद जी अपना पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन तैयार कर रहे थे. उनका नंबर बुशरा अल्वेरा के बाद था. इतने शोर्ट टाइम में किसी ने अपना प्रेजेंटेशन तैयार कर लिया यह एक रिकॉर्ड है. गिनीस बुक में जाने लायेक. बहरहाल अरशद ने गाँव गाँव तक विज्ञान कथा को पहुंचाने की बहुत शानदार तरकीब बताई. यानी उनके पप्पेट शो करवाए जाएँ. साइंस फिक्शन को मीडिया कितनी अहमियत देता है, यह बताया राजस्थान से आये कमलेश मीना ने. और यह बताया कि देशी मीडिया साइंस से ज्यादा अहमियत बॉलीवुड की हीरोइन के जुकाम को देता है.
उन्नीकृष्णन जी ने विज्ञान कथा को आम आदमी से जोड़ने की ज़रूरत बताई. फिर मेरा बोलने का नंबर आया. सॉरी मीनू पुरी जी फ़िर छूट गईं. मेरे बोलने से पहले उन्होंने विज्ञान कथा का इतिहास बताया. और समय कम होने की वजह से केवल डा. राजीव रंजन जी का इतिहास बताकर बैठ गईं. आज पॉवर पॉइंट सिस्टम सही काम कर रहा था इसलिए मेरे घिसे पिटे सब्जेक्ट को उसकी स्लाइड की वजह से लोगों ने काफ़ी शौक से देखा. मैंने तो केवल इतना बताया कि साइंस फिक्शन क्यों ज़रूरी है और कैसे उसे बढ़ावा दिया जाए. इसमें अपने मतलब की कुछ बातें ज़रूर शामिल कर दी थीं. जैसे कि विज्ञान कथा के लिए पुरस्कार मिलना चाहिए. और आज डा. अरविन्द दुबे जी को भी मौका मिल गया. सबको स्पेस घुमाने का. प्रकाश के वेग से मात्र आठ मिनट में उन्होंने सबको विज्ञान कथाओं में स्पेस घुमा दिया. और एक महत्वपूर्ण जानकारी यह दी कि भारतीय विज्ञान कथाएँ स्पेस के बिना पूरी ही नहीं होतीं.
लेकिन जल्दी ही हमें धरती पर वापस आना पड़ा. क्योंकि भूख जोरों की लग रही थी और बाहर से लंच का बुलावा आ चुका था.
2 comments:
बढियां और चुटीला वर्णन चल रहा है -साधुवाद !
बुशरा अल्वेरा ने एक कदम आगे बढ़ते हुए विज्ञान कथा को भविष्य के समाज का दर्पण बता दिया. कुछ महिलाओं ने इस बीच अपने पर्स का दर्पण निकालकर लिपस्टिक सही करनी शुरू कर दी थी.
मजेदार है।
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