"मैं सोच रहा हूँ की क्यों न मैं भी ऐसी मशीन बनाऊं जैसी उस युग के वैज्ञानिक महर्षि प्रयोगाचार्य ने बनाई थी. और इस प्रकार हम अपने भविष्य में पहुंचकर वहां की दुनिया देखेंगे. ऐसी दुनिया जहाँ हर व्यक्ति के पास एक कंप्यूटर होगा जो उसका सारा कार्य करेगा. लोग अपनी छोटी यात्राएँ भी वायुयान से करेंगे. रेलगाडियां ध्वनि से भी तेज़ चलेंगी. हर लड़का टी.वी. द्वारा अपने स्कूल के संपर्क में रहेगा. और इस तरह घर बैठे शिक्षा प्राप्त करेगा. लोगों के घर आसमान से बातें करेंगे और उन घरों के ऊपर लगा एंटीना पूरे विश्व के प्रोग्राम रिकॉर्ड करके उन्हें दिखायेगा."
प्रोफ़ेसर पूरी तरह भविष्य की कल्पना में खो गया था.
"और अगर इसका उल्टा हो गया?" रामसिंह बोला, "यानी हर कंप्यूटर के पास एक नौकर व्यक्ति होगा, वायुयान छोटी यात्रायें करने के काबिल भी न रहेंगे - पेट्रोल की कमी के कारण. रेलगाडियां ध्वनि से तेज़ चलकर प्रकाश की गति से एक्सीडेंट करेंगी. हर लड़का टी. वी. द्वारा शहर के समस्त सिनेमाघरों के संपर्क में रहेगा और इस तरह घर बैठे फिल्मी हीरो बन सकेगा. आबादी इतनी ज़्यादा होगी की आसमान से बातें करते घर ज़मीन में भी मीलों धंसे रहेंगे लेकिन फ़िर भी लोग घरों की कमी के कारण बेकार पड़े हवाई जहाजों में निवास करेंगे." रामसिंह ने उतनी ही तेज़ी से प्रोफ़ेसर की बातों की काट की जिस तरह छुरी मक्खन को काटती है.
"कुछ भी हो. मैं तो वह मशीन अवश्य बनाऊंगा. और उसमें तुम लोगों को बिठाकर भविष्य में भेजूंगा."
"बाप रे. तुम्हारे तो बहुत खतरनाक विचार हैं. हमें तो बख्श ही दो. वरना हम तो तुम्हारी मशीन में बैठकर भविष्य में जाने की बजाये भूत बनकर भविष्य से भी आगे भटकते फिरेंगे." शमशेर सिंह बोला.
"ठीक है. न जाओ तुम लोग भविष्य में. मैं स्वयं अपनी मशीन में बैठकर भविष्य की यात्रा करूंगा."
तो चले जाना. क्या हम लोग रोक रहे हैं. लेकिन पहले अपनी मशीन बनाओ तो." रामसिंह ने प्रोफ़ेसर को याद दिलाया की अभी उसकी मशीन केवल कल्पना के हवामहल पर है.
उसके बाद बाकी रास्ता खामोशी से तय हुआ. लगभग पाँच घंटे के बाद गाड़ी गौहाटी के प्लेटफार्म पर रुक चुकी थी. यहाँ ये लोग उतर पड़े. यहाँ से उनहोंने अपने शहर का टिकट लिया और शहर जाने वाली गाड़ी पर सवार हो गए. आधे घंटे के बाद वे लोग अपने शहर की ओर अग्रसर थे. उन लोगों ने तय तो कर लिया था की अब कभी खजाने की खोज में नहीं निकलेंगे किंतु कब उनके दिमाग पलट जाते इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता था.
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गाड़ी की सीटी की आवाज़ सुनकर सबसे पहले चोटीराज की आँख खुली. यह सुबह चार बजे वाली गाड़ी थी. चोटीराज अपने बाकी साथियों को जगाने लगा. कुछ ही देर में सब ऑंखें मलते हुए उठ बैठे.
"वह देखो यटिकम. इस युग का हमारा मित्र कह रहा था कि इसी में हम लोगों को बैठना है." चोटीराज ने उन्हें याद दिलाया.
"हाँ कहा तो था. किंतु वे लोग गए कहाँ?" मारभट ने चौंक कर कहा.
"मेरा विचार है कि वे लोग यटिकम में होंगे. चलो हम भी उसके अन्दर चलते हैं. किंतु यह यटिकम बड़ी विचित्र है. कितनी बड़ी है. कितने सारे लोग इसमें बैठे हैं. इसे कितने यल मिलकर खींचते होंगे." चीन्तिलाल ने आश्चर्य से कहा.
2 comments:
और इस प्रकार हम अपने भविष्य में पहुंचकर वहां की दुनिया देखेंगे
रोचक, काश ऐसा होता
Regards
रामसिंह द्वारा रखे गए भविष्य का दूसरा पहलू भी विचारणीय है.
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