गाड़ी अब तक खड़ी थी. वे लोग उसकी तरफ़ बढ़ने लगे. फ़िर एक डिब्बे में जाकर बैठ गए. यह कोई धीमी पैसेंजर गाड़ी थी. क्योंकि इसमें यात्री बहुत कम थे और जिस डिब्बे में ये लोग बैठे थे वह पूरी तरह सुनसान पड़ा था. वैसे अगर इस डिब्बे में कोई अन्य यात्री होता तो वह एक बार अवश्य इन लोगों को आश्चर्य से देखता. और इसका कारण होता इनका लबादा और सात फुट की ऊँचाई.
गाड़ी अब रेंगने लगी थी. फ़िर उसने धीरे धीरे स्पीड पकड़नी शुरू कर दी. इस चक्कर में उसके डिब्बे कुछ हिलने लगे.
"अरे यहाँ तो भूकंप आ रहा है. जल्दी से बाहर निकलो." चीन्तिलाल ने घबरा कर कहा.
"यह भूकंप नहीं है, बल्कि यटिकम चलने लगी है. क्या तुम्हें याद नहीं की हमारे युग की यटिकम जब चलती थी तो हिलती थी." मारभट ने समझाया.
"सही कह रहे हो. वास्तव में यटिकम ही चल रही है. बात यह है की हमारे युग के मकान इसी प्रकार बने थे अतः मैं समझा की अपने मकान में बैठा हूँ." चीन्तिलाल ने कहा.
इनकी इन्हीं बातों के बीच आधा घंटा बीत गया. फ़िर ट्रेन धीमी होने लगी. शायद कोई स्टेशन आ रहा था. फ़िर वह रूक गई. इस स्टेशन से कुछ यात्री इनके डिब्बे में भी चढ़े और साथ में टी.टी. भी.
"आप लोग अपना टिकट दिखाइये." टी.टी. ने इन लोगों से कहा. टी.टी. की पूरी बात ये लोग समझ ही नहीं पाये. क्योंकि प्रोफ़ेसर इत्यादि जब इनसे बोलते थे तो आधी अपनी भाषा और आधी इनकी भाषा मिलकर बोलते थे. जबकि टी.टी. ने शुद्ध हिन्दी में इनसे टिकट माँगा था.
"ये क्या कह रहा है?" सियाकरण ने मारभट की ओर देखकर पूछा.
"शायद यह कुछ मांग रहा है." मारभट ने टी.टी. का फैला हाथ देखकर अनुमान लगाया. टी.टी. ने एक बार फ़िर इनसे टिकट माँगा.
"ये टिकट क्या होता है?" मारभट ने टूटी फूटी हिन्दी में उससे पूछा.
टी.टी. को शायद इनसे ऐसे उत्तर की आशा नहीं थी. अतः वह इनका मुंह देखने लगा. फ़िर बोला, "गाड़ी में बैठ गए और यही नहीं पता की टिकट क्या होता है. क्या दूसरी दुनिया में रहते हो? मैं कहता हूँ चुपचाप टिकट निकालो वरना अन्दर करवा दूँगा." इसी के साथ ही उसने संकेत किया और दो रेलवे कांस्टेबिल उनके पास आकर खड़े हो गए.
"ये तो क्रोध में मालुम हो रहा है. आख़िर ये क्या मांग रहा है?" चोटीराज ने कहा.
"मेरा विचार है की यह याटिकम का मालिक है, और हमसे मुद्राएँ मांग रहा है. अपने यल को चारा खिलाने के लिए."
सियाकरण ने अपना थैला उठाया और उसे खोलने लगा. टी.टी. ने यह समझ कर कि वह टिकट निकाल रहा है बोला, "जब पुलिस देखी तो होश ठिकाने आ गए. आगे से किसी सरकारी आदमी के साथ मज़ाक मत करना." उसे क्या पता था कि इन प्राचीन युग्वासियों को मज़ाक का अर्थ भी नहीं मालूम. सियाकरण ने अपने थैले से दो तीन मुद्राएँ निकालीं और टी.टी. की ओर बढ़ा दीं.
तांबें की मुद्राएँ देखकर टी.टी. का पारा फ़िर चढ़ गया. वह बोला, "बहुत हो चुका. अब अगर तुम लोगों को सबक न सिखाया तो मेरा नाम भी राम खिलावन नहीं. सिपाहियों, इन पर निगरानी रखो. अगले स्टेशन पर इन्हें उतार कर जेल भिजवा देना." वह सिपाहियों से बोला.
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