Tuesday, December 23, 2008

ताबूत - एपिसोड 33

जब ये लोग करीबी स्टेशन पर पहुंचे तो अच्छी खासी रात हो चुकी थी. कोई छोटा सा स्टेशन था ये जहाँ इक्का दुक्का लोग ही दिखाई दे रहे थे. स्टेशन मास्टर से पूछने पर मालूम हुआ कि यहाँ दो रेलगाडियाँ रूकती हैं. उनमें से एक आधे घंटे के बाद आएगी और दूसरी सुबह चार बजे आती है. ये लोग प्लेटफार्म पर आ गए.
"हम लोग यहाँ क्यों आए हैं?" सियाकरण ने पूछा.
"अभी यहाँ यटिकम आकर रुकेगी. जिसमें सवार होकर हम लोग शहर जायेंगे." प्रोफ़ेसर ने बताया.
"अच्छा." सियाकरण ने सर हिलाया.
"जब तक यटिकम नहीं आती, हम लोग सो जाते है. बड़ी जोरों की नींद आ रही है." मारभट ने जम्हाई लेकर कहा. प्राचीन युगवासी होने के कारण उन्हें जल्दी सोने की आदत थी.
"ठीक है. तुम लोग सो जाओ. जब यटिकम आएगी तो हम तुम्हें जगा देंगे." जल्दी ही चारों प्राचीन युगवासियों के खर्राटे वहां गूंजने लगे.
"हमें एक बहुत सुनहरा मौका हाथ लगा है." रामसिंह ने कहा.
"कैसा मौका?" प्रोफ़ेसर ने पूछा.
"इनसे पीछा छुड़ाने का मौका. जैसे ही ट्रेन आएगी, हम इन्हें यहीं सोता छोड़कर निकल लेंगे."
"लेकिन!" प्रोफ़ेसर ने कुछ कहना चाहा लेकिन शमशेर सिंह ने फ़ौरन उसका मुंह दबा दिया, "बस, अब हम तुम्हारी कुछ न सुनेंगे. इन फक्कडों के पास खजाना होता, तब भी कुछ सोचा जा सकता था. लेकिन ये तो ज़बरदस्ती के पुछ्लग्गे चिपक गए हैं."


"ठीक है. जैसी तुम लोगों की मर्ज़ी." प्रोफ़ेसर ने ठंडी साँस ली और रेलवे लाइन पर लगे सिग्नल को देखने लगा जो फिलहाल लाल था.
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लगभग आधे घंटे की प्रतीक्षा के बाद गाड़ी आ गई और तीनों दोस्त उसमें सवार हो गए. दो मिनट स्टेशन पर रूकने के बाद गाड़ी चल दी और ये लोग प्राचीन युगवासियों से दूर होने लगे.
"खुश रहो ताबूत के जिन्नों, हम तो सफर करते हैं." रामसिंह ने किसी पुराने शेर की टांग खींची. प्लेटफोर्म पर चारों प्राचीन युगवासी नींद में डूबे पड़े थे इस बात से बेखबर की उनके कलयुगी दोस्त उनका साथ छोड़ रहे हैं.
"आज से हम कसम खाते हैं कि फ़िर कभी प्रोफ़ेसर देव के साथ खजाना खोजने के चक्कर में नहीं पड़ेंगे." शमशेर सिंह और रामसिंह ने एक आवाज़ होकर कहा.
"मैं ख़ुद ही अब कभी खजाना खोजने नहीं निकलूंगा. ये काम तो मैं तुम दोनों की भलाई के लिए कर रहा था. ये दूसरी बात है की खजाने के नाम पर कुछ तांबे के सिक्के मिले जो उन ताबूतवासियों ने दिए. वैसे अब भी मेरा विचार है की यदि हम उन ताबूतों की ठीक तरह से तलाशी लेते तो कुछ न कुछ अवश्य मिलता."
शमशेर सिंह ने झपट कर प्रोफ़ेसर का गरेबान पकड़ लिया और गुर्राते हुए बोला, "अब अगर तुमने खजाने का नाम भी लिया तो मैं तुमको इसी चलती गाड़ी से बाहर फेंक दूँगा."
"अच्छा नही लूँगा. मैं तो अब अपने नए एक्सपेरिमेंट के बारे में सोचने जा रहा हूँ."
"कैसा एक्सपेरिमेंट?"

1 comment:

seema gupta said...

"अब अगर तुमने खजाने का नाम भी लिया तो मैं तुमको इसी चलती गाड़ी से बाहर फेंक दूँगा."
" पैसा चीज़ ही ऐसी है..."

regards