"सुनो, यह रोशनदान इस तरह बने हैं कि मानो किसी मनुष्य का हाथ लगा हो. पत्थरों को एकदम गोलाई से काटकर यह रोशनदान बनाए गए हैं."
"इसी कारण इस प्राकृतिक कमरे में घुटन भी नहीं है." रामसिंह बोला.
"इसीलिये मैं यह सोचने पर विवश हूँ कि यह कमरा प्रकृतिक नहीं है, बल्कि यह किन्हीं मनुष्यों द्बारा बनाया गया है. और यह सुरंग भी प्राकृतिक नहीं है. इस कमरे और सुरंग के चारों ओर के पत्थर एकदम बराबर से कटे हैं. और यह कार्य प्राकृतिक नहीं हो सकता." प्रोफ़ेसर ने चारों ओर देखते हुए कहा.
"यह तो तुम सही कह रहे हो. किंतु इस सुनसान स्थान पर पहाड़ियों को काटकर यह सुरंग किसने बनाई होगी?" शमशेर सिंह ने पूछा.
"यही बात मेरे विचारों की पुष्टि कर रही है. अर्थात यहाँ पर प्राचीन समय में कोई सभ्यता ज़रूर आबाद थी.
जिसने अपना खजाना छुपाने के लिए इस सुरंग का निर्माण किया. वह खजाना ज़रूर यहीं इसी प्रकार की किसी सुरंग या किसी कमरे में होगा."
"इसका मतलब नक्शे ने हम लोगों का सही मार्गदर्शन किया है. " रामसिंह ने कहा.
"मेरा तो यही विचार है. इसलिए सबसे पहले हम लोग इसी कमरे की अच्छी तरह तलाशी लेंगे फिर आगे बढ़ेंगे." प्रोफ़ेसर ने दोबारा अपना सामान नीचे रखते हुए कहा. फिर उन लोगों ने उस कमरे का एक एक कोना देखना शुरू कर दिया मानो गिरी हुई सुई ढूँढ रहे हों. हालाँकि उस कमरे में कोई ऐसी जगह नहीं थी जहाँ खजाना छुपाया जा सकता था. किंतु फिर भी चोर दरवाज़े की आशा में उन्होंने अपनी जगह पर जमे कई पत्थरों को हिलाने का प्रयत्न किया जो असफल रहा.
"मेरा ख्याल है प्रोफ़ेसर, यहाँ पर कोई खजाना नहीं छुपा है. इसलिए हम लोगों को आगे बढ़ना चाहिए." शमशेर सिंह ने अपना पसीना पोंछते हुए कहा.
"ठीक कहते हो चलो आगे बढ़ते हैं."
एक बार फिर सुरंग शुरू हो गई थी. सुरंग में इतना अँधेरा था कि हाथ को हाथ सुझाई नहीं दे रहा था. अतः प्रोफ़ेसर ने टॉर्च जला रखी थी.
"मुझे इस समय पता नहीं क्यों मिस्र के पिरामिडों की याद आ रही है." प्रोफ़ेसर ने कहा.
"यहाँ पर भला मिस्र के पिरामिडों को याद करने की क्या तुक है?" रामसिंह बोला.
"तुक तो है. अब देखो पहाडियाँ भी नीचे से चौडी होती हैं और ऊपर जाते जाते पतली होती जाती हैं. इसी तरह मिस्र के पिरामिड भी नीचे से चौडे हैं और ऊपर जाते जाते पतले होते गए हैं. मिस्र के पिरामिडों के अन्दर कई कक्ष बने हैं. और वे आपस में सुरंगों द्बारा जुड़े हैं. यहाँ भी हम लोगों ने एक कक्ष देखा था और वहां जाने का रास्ता भी सुरंग है. हो सकता है इस पहाड़ी में और भी इस प्रकार के कक्ष हों और वे आपस में इसी प्रकार की सुरंगों द्बारा जुड़े हों." प्रोफ़ेसर ने खड़े होकर पूरा लेक्चर दे डाला था.
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