"ये अंधेरे में रोशनी के गोले कहाँ से आ गए?" रामसिंह ने हैरत से कहा.
"मुझे लगता है जैसे यह किसी जानवर की ऑंखें हैं." प्रोफ़ेसर ने कहा.
"किस जानवर की ऑंखें इतनी बड़ी होती हैं? उन दोनों रोशनी के गोलों का व्यास मेरे विचार से एक एक फिट होगा." रामसिंह ने कहा.
"चलो पास चल कर देखते हैं, अभी पता चल जायेगा." शमशेर सिंह ने सुझाव दिया.
"मेरा ख्याल है वहां चलना खतरे से खाली नहीं होगा. क्योंकि मेरा अब भी विचार है कि वह कोई जानवर है. मैंने किताबों में पढ़ा है कि प्राचीन समय में ऐसे जानवर पाये जाते थे जो हाथी से भी बीसियों गुना विशाल होते थे. उन्हें डाइनासोर कहते थे. मेरा विचार है कि वह कोई डाइनासोर है."
"आख़िर वह हिल डुल क्यों नहीं रहा है?" रामसिंह ने पूछा.
"मेरा ख्याल है उसने हम लोगों को देख लिया है. और हमारा शिकार करना चाहता है. इसलिए पोजीशन लेने के कारण वह हिल डुल नहीं रहा."
इस तरह वे लोग अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार उन रोशनियों के लिए अटकलें लगाते रहे किंतु किसी की हिम्मत वहां जाने की नहीं हुई.
अचानक वह रोशनी गायब हो गई. और इसके साथ ही कमरे में घुप्प अँधेरा छा गया.
"यह क्या हुआ? प्रोफ़ेसर, जल्दी टॉर्च जलाओ वरना अंधेरे में वह जानवर हम पर हमला कर देगा तो हम लोग कुछ नहीं कर सकेंगे." रामसिंह ने कहा.
प्रोफ़ेसर ने जल्दी से टॉर्च जलाकर उसकी रोशनी वहां पर डाली. किंतु अब वहां पर पत्थर की दीवारें दिख रही थीं. उस काल्पनिक जानवर का कहीं पता नहीं था.
"मेरा विचार हैं वह जानवर नहीं था बल्कि कुछ और था. आओ चलकर वहीँ देखते हैं." प्रोफ़ेसर ने कहा. फ़िर तीनों डरते डरते वहां पहुंचे. निरीक्षण करते हुए अचानक शमशेर सिंह की दृष्टि पीछे की ओर गई और उसने कहा, "ये देखो, यह क्या है?"
उनहोंने घूमकर पीछे देखा, तो उन्हें दो गोल रोशनदान दिखाई दिए. ये दोनों रोशनदान पास पास थे. वे उसके पास पहुंचे. दोनों रोशनदानों से आसमान साफ़ दिखाई पड़ रहा था.
"अब मेरी समझ में सारी बात आ गई है." प्रोफ़ेसर ने सर हिलाते हुए कहा.
"क्या समझ में आया?" रामसिंह ने पूछा.
"वह रोशनी जो हमें दिखी थी, वास्तव में सूर्य की रोशनी थी. जो इन रोशनदानों द्बारा सामने की दीवार पर पहुँची थी. फ़िर जब कुछ देर के बाद सूर्य की दिशा बदल गई तो वह रोशनी भी गायब हो गई."
"धत तेरे की. इतनी सी बात थी. और हम लोग पता नहीं क्या क्या सोच बैठे." रामसिंह ने अपने सर पर हाथ मारा.
"लेकिन अगर हम यह सारी बातें न सोचते तो शायद सही बात भी पता न कर पाते. मैंने एक किताब में पढ़ा है की कई ग़लत बातों पर अध्ययन के बाद ही मनुष्य सही निष्कर्ष पर पहुँचता है." प्रोफ़ेसर ने कहा.
"अब कौन से सही निष्कर्ष पर पहुंचे हो तुम?" रामसिंह ने पूछा.
1 comment:
दिन पे दिन रोचक होता जा रहा है ...आगे का इंतजार
regards
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