जब हमारे पपेटिअर अरशद उमर जी अपनी टीम में शामिल नितिन और ब्रजेश का परिचय करा रहे थे, उसी समय वहां पटैरिया जी ने प्रवेश किया. इस तरह उन्हें फ़िल्म "First World" का प्रेमिअर देखने का मौका मिल गया. मार्क लुंड द्वारा लिखित व निर्देशित इस फ़िल्म में दर्शाया गया है कि धरती पर एलिएंस मौजूद हैं लेकिन हमें उनका पता नहीं. ठीक उसी तरह जैसे उसके बाद चेन्नई के वैज्ञानिक डा.निल्लई मुथु जी अपने डेढ़ घंटे के लेक्चर में क्या कह गए, कुछ पता नहीं. बस एक ही चीज़ समझ में आई अपुन को कि चंद्रयान चंद्रमा तक कैसे पहुँचा. वैसे वह वैज्ञानिक ही क्या जिसकी बातें लोगों के पल्ले पड़ जाएँ.मुथु जी के बाद पटैरिया जी ने बहुत छोटा सा भाषण दिया. शायद उन्हें एहसास हो गया था कि अब लोगों के पेट में चूहे कूदने लगे हैं.
डिनर के बाद सोने का वक्त आया. उसी वक्त हमारे मित्र जाकिर भाई घबराए हुए कमरे में दाखिल हुए. पूछने पर मालूम हुआ कि उन्हें जो कमरा एलॉट हुआ है उसमें एक तो मद्रासी भाई हैं और दूसरे साहब ईरान से पधारे हैं. ये ठहरे हिन्दी भाषी. नतीजे में दोनों की चाओं चाओं सुनकर उनका भेजा घूम गया है. हमने हमदर्दी से उन्हें देखा और उनका बेड अपने कमरे में लगवा लिया. ये अलग बात है की यहाँ भी जाकिर भाई सुकून से नहीं रह पाए. क्योंकि हमारे अरशद भाई को ज़ोरदार जुकाम हो गया था, और वो सारी रात छींकते रहे. यानी जाकिर भाई आसमान से गिरे तो खजूर में अटके.
रात को अचानक किसी पहर आंख खुली. दरवाज़े पर नज़र गई तो देखा, किसी हारर फ़िल्म की तरह धीरे धीरे खुल रहा है. कलेजा मुंह को आ गया. सोचा कम्बल से पूरा मुंह ढँक लें. लेकिन कमबख्त कम्बल में इतनी बदबू आ रही थी कि इरादा छोड़ना पड़ा.
जब पूरा दरवाजा खुल गया तो मोहन जी का चेहरा नज़र आया. वो अपनी कहानियाँ सुनाने के लिए सुबह से किसी मुर्गे की तलाश में थे और उन्हें हमसे काफ़ी उम्मीदें थीं. अब तो मुंह को कम्बल से ढंकना ही पड़ा. अरशद भाई की छींकें सुनते सुनते किसी तरह अगले दिन की सुबह हुई.
3 comments:
अब तो मुंह को कम्बल से ढंकना ही पड़ा. अरशद भाई की छींकें सुनते सुनते किसी तरह अगले दिन की सुबह हुई.
" ha ha ha ha ab kambal kee sugandh khan gyee ha ha , great to read"
regards
Post a Comment