नाश्ते का अनाउंस हुआ तो काफी लोग मैदान में नज़र आये. मौसम खुशगवार था. हरी भरी घास के मैदान में नाश्ते का अनुभव अच्छा रहा. थोडी देर बाद विज्ञानं कथा लेखक समिति के अध्यक्ष डा.राजीव रंजन उपाध्याय भी पहुँच गए. काफ़ी देर बाद वरिष्ट विज्ञान कथा लेखक हरीश गोयल जी पधारे. बाद में अरविन्द जी ने बताया, वो बनारस स्टेशन पर कहीं गुम हो गए थे. अच्छे लेखकों की यही पहचान है.
हरीश गोयल जी मुझे लेखक समिति का सदस्य बनाने में पूरी तरह जिम्मेदार हैं. ये अलग बात है वहां मुझे अपने को उनसे पहचनवाने में काफ़ी मेहनत करनी पड़ी.
नाश्ते के बाद थोडी देर गपशप होती रही. डा.उपाध्याय जी को एक इरानी मेहमान मिल गए. सो उन्हें अपनी फ़ारसी झाड़ने का मौका मिल गया. इसी में लंच का टाइम हो गया. नाश्ता और लंच दोनों में ही साउथ इंडियन का पूरा ख्याल रखा गया था. वैसे भी पहले दिन वे संख्या में ज़्यादा थे. हाँ मीठे की कमी ज़रूर खली. अब साउथ इंडियन तो मीठे पर ही भोजन का एंड करते हैं. इस कन्फयूज़न में मोहन जी काफी देर खाते रहे कि शायद अभी मीठा आ रहा है.
अरविन्द जी एक झलक दिखला कर गायब हो गए थे. पता चला कि वे डा.मनोज पटैरिया जी को लेने एअरपोर्ट गए हैं और प्लेन लेट हो गया है.(जो कि पटैरिया जी के साथ अक्सर होता है. कभी कभी तो प्लेन पहुँचता ही नहीं.)
बीच में प्रेस कांफ्रेंस भी हो गई. इन्हीं सब चक्करों में छः बज गए, और प्रोग्राम की शुरुआत होने को आई. सबसे पहले पपेट शो रखा गया था. मेरा ड्रामा बुड्ढा फ्यूचर इसके लिए चुना गया था. आधे घंटे के इस शो को देखने के लिए अच्छे खासे दर्शक मौजूद थे, ये तो खुशकिस्मती थी. और बदकिस्मती ये थी की उनमें ज्यादातर साउथ इंडियन थे. जिनके लिए हिन्दी भाषा भैंस बराबर थी. नतीजे में शो गूंगे बहरों का शो बनकर रह गया.
शो ख़त्म हुआ और पटैरिया जी के प्लेन ने लैंड किया.
हरीश गोयल जी मुझे लेखक समिति का सदस्य बनाने में पूरी तरह जिम्मेदार हैं. ये अलग बात है वहां मुझे अपने को उनसे पहचनवाने में काफ़ी मेहनत करनी पड़ी.
नाश्ते के बाद थोडी देर गपशप होती रही. डा.उपाध्याय जी को एक इरानी मेहमान मिल गए. सो उन्हें अपनी फ़ारसी झाड़ने का मौका मिल गया. इसी में लंच का टाइम हो गया. नाश्ता और लंच दोनों में ही साउथ इंडियन का पूरा ख्याल रखा गया था. वैसे भी पहले दिन वे संख्या में ज़्यादा थे. हाँ मीठे की कमी ज़रूर खली. अब साउथ इंडियन तो मीठे पर ही भोजन का एंड करते हैं. इस कन्फयूज़न में मोहन जी काफी देर खाते रहे कि शायद अभी मीठा आ रहा है.
अरविन्द जी एक झलक दिखला कर गायब हो गए थे. पता चला कि वे डा.मनोज पटैरिया जी को लेने एअरपोर्ट गए हैं और प्लेन लेट हो गया है.(जो कि पटैरिया जी के साथ अक्सर होता है. कभी कभी तो प्लेन पहुँचता ही नहीं.)
बीच में प्रेस कांफ्रेंस भी हो गई. इन्हीं सब चक्करों में छः बज गए, और प्रोग्राम की शुरुआत होने को आई. सबसे पहले पपेट शो रखा गया था. मेरा ड्रामा बुड्ढा फ्यूचर इसके लिए चुना गया था. आधे घंटे के इस शो को देखने के लिए अच्छे खासे दर्शक मौजूद थे, ये तो खुशकिस्मती थी. और बदकिस्मती ये थी की उनमें ज्यादातर साउथ इंडियन थे. जिनके लिए हिन्दी भाषा भैंस बराबर थी. नतीजे में शो गूंगे बहरों का शो बनकर रह गया.
शो ख़त्म हुआ और पटैरिया जी के प्लेन ने लैंड किया.
4 comments:
शो ख़त्म हुआ और पटैरिया जी के प्लेन ने लैंड किया.
" great to read, good explanation... thanks god at last plane landed.."
Regards
सुन्दर वर्णन।
ठीक जा रहे हैं -चालू रहें !
.....शो गूंगे बहरों का शो बनकर रह गया.
Fir bhi Show must go on.....
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