दोस्तों , जब सुना कि बनारस में १०-१४ नवम्बर २००८ में एक कांफ्रेंस हो रही है. जिसमें साइंस फिक्शन का देश में भविष्य देखा जायेगा, तो मन उल्लास से भर उठा. फ़ौरन जाने की तैयारी शुरू कर दी. सिफारिश की ज़रूरत नही थी क्योंकि बड़े भाई अरविन्द जी प्रोग्राम के संयोजक थे.
उनको फोन मिलाया तो उन्होंने हुक्म सुना दिया कि एक पपेट शो भी कराना है. नतीजे में मुझे अरशद भाई को साथ लेना पड़ा. इंटरनेट पर ट्रेनों की लिस्ट देखी गई, कौन कौन सी शताब्दी ट्रेनें हैं बनारस के लिए. आख़िर में एक पैसेंजर ट्रेन पसंद आई हमारे अरशद भाई को. उधर अरविन्द जी फोन पर फोन कर रहे थे कि किस दिन आ रहे हो.
बहरहाल दस नवम्बर कि सुबह हम लोग सही सलामत बनारस स्टेशन पर खड़े थे.(हमारे देश की ट्रेनों का कोई भरोसा नहीं.) फिर आयोजकों को फोन मिला रहे थे लोकल वाहन के लिए. जबकि आयोजक दूसरी ट्रेन में कुछ साउथ इंडियन मेहमानों को ढूँढ रहे थे. उधर साउथ इंडियन मेहमान स्टेशन से बाहर आकर ठेले पर इडली डोसा ढूँढ रहे थे. बड़ी मुश्किल से उन्हें समझाया गया कि ये साउथ नहीं बल्कि नॉर्थ इंडिया है.
ऊपर वाले की दया से वहां गाड़ियां मौजूद थी. वरना अक्सर प्रोग्रामों में तो पैदल ही आयोजन स्थल तक जाना पड़ जाता है.
फिर वहां से हम लोग रवाना हुए संजय मोटेल्स के लिए जो शहर से बाहर एअरपोर्ट रोड पर सोलहवें पत्थर की बगल में है. और काफ़ी खूबसूरत है. यहाँ दो स्वीमिंग पूल हैं. एक उनके लिए, जो तैरना जानते हैं. और दूसरा उनके लिए जो तैरना नही जानते. क्योंकि ये सूखा रहता है.
संजय मोटल्स पहुँचने पर मालूम हुआ कि कुछ मेहमान तडके ही पहुँच चुके है. हमारे सम्मानीय मित्र डा.चन्द्रमोहन नौटियाल एक अन्य मित्र अमित कुमार के साथ नज़र आ रहे थे.
फिर धीरे धीरे वहां और मित्र और मेहमान भी नज़र आने लगे. लेकिन फिलहाल तो अपने पेट में चूहे कूद रहे थे और नाश्ते का इन्तिज़ार था, इसलिए बेहतर यही था कि नाश्ते के बाद पुराने मित्रों से गपशप की जाए.
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उनको फोन मिलाया तो उन्होंने हुक्म सुना दिया कि एक पपेट शो भी कराना है. नतीजे में मुझे अरशद भाई को साथ लेना पड़ा. इंटरनेट पर ट्रेनों की लिस्ट देखी गई, कौन कौन सी शताब्दी ट्रेनें हैं बनारस के लिए. आख़िर में एक पैसेंजर ट्रेन पसंद आई हमारे अरशद भाई को. उधर अरविन्द जी फोन पर फोन कर रहे थे कि किस दिन आ रहे हो.
बहरहाल दस नवम्बर कि सुबह हम लोग सही सलामत बनारस स्टेशन पर खड़े थे.(हमारे देश की ट्रेनों का कोई भरोसा नहीं.) फिर आयोजकों को फोन मिला रहे थे लोकल वाहन के लिए. जबकि आयोजक दूसरी ट्रेन में कुछ साउथ इंडियन मेहमानों को ढूँढ रहे थे. उधर साउथ इंडियन मेहमान स्टेशन से बाहर आकर ठेले पर इडली डोसा ढूँढ रहे थे. बड़ी मुश्किल से उन्हें समझाया गया कि ये साउथ नहीं बल्कि नॉर्थ इंडिया है.
ऊपर वाले की दया से वहां गाड़ियां मौजूद थी. वरना अक्सर प्रोग्रामों में तो पैदल ही आयोजन स्थल तक जाना पड़ जाता है.
फिर वहां से हम लोग रवाना हुए संजय मोटेल्स के लिए जो शहर से बाहर एअरपोर्ट रोड पर सोलहवें पत्थर की बगल में है. और काफ़ी खूबसूरत है. यहाँ दो स्वीमिंग पूल हैं. एक उनके लिए, जो तैरना जानते हैं. और दूसरा उनके लिए जो तैरना नही जानते. क्योंकि ये सूखा रहता है.
संजय मोटल्स पहुँचने पर मालूम हुआ कि कुछ मेहमान तडके ही पहुँच चुके है. हमारे सम्मानीय मित्र डा.चन्द्रमोहन नौटियाल एक अन्य मित्र अमित कुमार के साथ नज़र आ रहे थे.
फिर धीरे धीरे वहां और मित्र और मेहमान भी नज़र आने लगे. लेकिन फिलहाल तो अपने पेट में चूहे कूद रहे थे और नाश्ते का इन्तिज़ार था, इसलिए बेहतर यही था कि नाश्ते के बाद पुराने मित्रों से गपशप की जाए.
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4 comments:
वाह जीशान आप तो शुरू हो गए -जमाये रखिये !
भाई जी वृतांत पढ़ कर मज़ा आ रहा है .बाद में आपकी रचनाओं को हमारे स्टूडेंट्स ने ख़रीदा भी था और पढ़ कर खुश भी थे .
खेद है शामिल न हो पाया, मगर आपके विवरण से शायद इसकी कुछ भरपाई हो जाए. आभार.
शुक्रिया मनोज भाई. आपको ब्लॉग पर देखकर खुशी हुई.
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