कुछ देर तक तो उनके होश ही न सही हुए और जब उनका दिमाग कुछ सोचने के अनुकूल हुआ तो सबसे ऊपर पड़े हुए प्रोफ़ेसर ने भर्राई आवाज़ में कहा, "हम लोग जिंदा हैं या मर गए?"
"फिलहाल तो जिंदा हैं." बीच में पड़े हुए शमशेर सिंह ने कहा.
"तो फ़िर इस वीराने में मुझे इतना नर्म बिस्तर कहाँ से मिल गया?"
"तुम्हें केवल बिस्तर मिला है और मुझे बिस्तर और रजाई दोनों मिल गए हैं. लेकिन रजाई बहुत भारी है."
अगर तुम लोग कुछ देर और मेरे ऊपर से नही हटे तो मेरी हड्डियाँ सुरमा बन जाएंगी. फ़िर बिना हड्डियों का और अच्छा बिस्तर बनेगा." सबसे नीचे पड़े हुए रामसिंह ने चीखकर फरियाद की. वे दोनों जल्दी से उठ बैठे.
सबसे बाद में रामसिंह हाय हाय करते उठा.
"क्या हुआ रामसिंह? क्या ज़्यादा चोट लग गई है?" शमशेर सिंह ने हमदर्दी से पूछा.
"अरे मुझे तो लगता है कि ज़रूर दो तीन जगह से फ्रेक्चर हो गया है." रामसिंह ने कराहते हुए कहा.
"दो मिनट रुको मैं देखता हूँ. यहाँ ज़रूर आयोडेक्स वाली घास मिल जायेगी." प्रोफ़ेसर ने जंगल की ओर रुख किया.
"रहने दो प्रोफ़ेसर, तुम्हारे इलाज से अच्छा है कि मैं बिना इलाज के रहूँ. वरना तुम मेरा भी वही हाल कर दोगे जो अपना किया था.
"ठीक है. जैसी तुम्हारी मर्ज़ी."
कुछ देर मौनता छाई रही फ़िर शमशेर सिंह बोला, "हमारा पहाड़ियों पर जाने का प्लान तो चौपट हो गया. अब क्या किया जाए?"
"हाँ. यह सब तुम लोगों की गलती से हुआ है. न एक साथ तीनों चढ़ते न रस्सी टूटती." फ़िर प्रोफ़ेसर ने रामसिंह से कहा, "ऐसा है तुम यहाँ कुछ देर आराम से रहो, हम लोग एक बार फ़िर पहाड़ियों में कोई रास्ता ढूँढ़ते हैं."
फ़िर वह दोनों रास्ता ढूँढने निकल गए और रामसिंह वहीँ बैठकर सूखी डबलरोटी चबाने लगा जो वह घर से अपने साथ लाया था. फ़िर उसने स्टोव जलाकर काफी चढा दी. कुछ देर बाद जब काफी तैयार हो गई उसी समय प्रोफ़ेसर और शमशेर सिंह वापस आ गए. उनके चेहरों से प्रसन्नता छलक रही थी.
"अरे वाह, तुमने तो काफी बनाकर हमारी खुशी दूनी कर दी." शमशेर सिंह ने खुश होकर कहा.
"क्यों क्या हुआ? किस बात की खुशी?"
"बात यह है कि हमें पहाड़ियों में एक रास्ता मिल गया है." प्रोफ़ेसर ने बताया.
2 comments:
बेहतरीन तहरीर... अच्छा लगता है आपके ब्लॉग पर आकर....
'dekhen ye rastha inhe khan le jata hai......."
Regards
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