Wednesday, December 11, 2013

नक़ली जुर्म (कहानी) - भाग 1

----डा. ज़ीशान हैदर ज़ैदी 

एस.टी.आर. कालेज न केवल शहर का बल्कि देश का जाना माना इंजीनियरिंग कालेज है। उसकी क्वालिटी का चरचा इतना ज्यादा है कि देश भर के छात्र उसमें एडमीशन लेने के सपने देखते हैं और आर्थिक रूप से सक्षम लोग वहाँ बड़े से बड़ा डोनेशन देने को तैयार रहते हैं। यहाँ के शिक्षक जब किसी को बताते हैं कि वह एस.टी.आर कालेज की फैकल्टी हैं तो लोग उन्हें रश्क भरी निगाहों से देखने लगते हैं।

लेकिन उन ही में एक शिक्षक ऐसा था जो अपनी वर्तमान पोज़ीशन और कालेज दोनों से ही असंतुष्ट था। और उसकी वजह भी थी।

डा0प्रवीर कालेज में पिछले दस वर्षों से कार्यरत था और इस दौरान उसका प्रमोशन एक बार भी नहीं हुआ था। और इसकी वजह केवल एक ही थी, यानि उसकी कड़वी ज़बान। वह किसी को खातिर में नहीं लाता था। मैनेजमेन्ट हमेशा इसी वजह से उससे नाराज़ रहता था, लेकिन उसे हटाना भी नहीं चाहता था क्योंकि वह थ्योरेटिकल फिजि़क्स का माहिर था।

डा0प्रवीर खुद भी कालेज बदलने के लिये कई बार इंटरव्यू दे चुका था। लेकिन खुद उसकी खरी ज़बान उसके रास्ते की रुकावट बन जाती थी। वह इंटरव्यू लेने वालों को इस तरह लाजवाब करता था कि अपने से ज्यादा बुद्धिमान जानकर इंटरव्यू लेने वाले उससे कन्नी काट जाते थे।

इस समय भी वह कालेज छोड़ने के बारे में गंभीरतापूर्वक विचार कर रहा था और मन ही मन इस कालेज के मैनेजमेन्ट को गालियां भी दे रहा था जिसकी झलक उसके चेहरे की सख्ती और सिलवटों में नज़र आ रही थी। 

अचानक एक सुरीली आवाज़ ने उसकी तन्द्रा भंग कर दी। ''सर! 
उसने चौंक कर सर उठाया और सामने मौजूद खूबसूरत चेहरे ने उसके चेहरे की सख्ती को पल भर में नर्मी से बदल दिया।

''सर! मे आई कम इन? उस लड़की ने थोड़ा हिचकिचाते हुए पूछा।
''यस। आओ माहम।" डा0प्रवीर ने नर्मी के साथ कहा। माहम बीटेक फाइनल इयर की एक होनहार स्टूडेन्ट थी।

''सर! मुझे सालिड स्टेट फिजि़क्स के कुछ थ्योरीज़ बिल्कुल समझ में नहीं आ रही हैं।" डा0प्रवीर को नर्मी से बात करते देखकर माहम की हिम्मत बंधी और उसने अपनी समस्या बताई। ज्यादातर छात्र डा0प्रवीर के सख्त मिजाज़ को देखते हुए बात करने में हिचकिचाते थे। 

''सालिड स्टेट फिजि़क्स! वह तो बहुत आसान होती है। मैं तुम्हें समझाता हूं। फिर डा0 प्रवीर माहम को काफी देर तक सालिड स्टेट फिजि़क्स की थ्योरीज़ समझाता रहा। 
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''मुझे यकीन नहीं आता कि प्रवीर सर ने तुझे आधे घंटे तक अकेले फिजि़क्स पढ़ाई। हम लोगों को तो बाहर ही से भगा देते हैं। माहम की सहेली कल्पना को माहम की बात पर बिल्कुल यकीन नहीं हो रहा था।
''पता नहीं कैसे उस वक्त सर का मूड बहुत अच्छा था। मेरे सारे सवालों के जवाब भी उन्होंने बिल्कुल नर्म अंदाज़ में दिये।" माहम को खुद भी ऐसी उम्मीद नहीं थी।

''अच्छा अब फालतू की बातें छोड़ो। ये बताओ कि ये मयंक आजकल दूर दूर क्यों दिखाई  देता है?"
''आजकल वह भाव खाने लगा है। मैंने उसे थोड़ा मुंह क्या लगा लिया, जनाब अपने को राजा इन्द्र समझने लगे।" माहम ने मुंह बनाया।

''अगर कालेज की सबसे खूबसूरत लड़की किसी लड़के को लिफ्ट दे दे तो उसे अपने को राजा इन्द्र समझने का हक़ हासिल हो जाता है।" कल्पना ने सर हिलाते हुए कहा।
''जब मैं बोलना छोड़ दूंगी तो बच्चू को अक्ल आ जायेगी।" माहम ने थोड़ा गुस्से में आकर कहा।

''शायद तुम ऐसा न कर पाओ। क्या मैं जानती नहीं कि तुम्हारे दिल में मयंक के लिये क्या है।" कल्पना ने उसके गले में बाहें डालकर कहा।
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लेकिन यह किसी को नहीं पता था कि डा0प्रवीर के दिल में माहम के लिये क्या है। वह मन ही मन माहम को अपनी जीवन संगिनी बनाने का फैसला कर चुका था। और आज उसने यह भी तय किया था कि वह माहम के सामने अपने दिल का हाल कह देगा। और इसके लिये उसके पास मौका भी था।

वह कुछ स्टूडेन्टस को कालेज के वार्षिक समारोह के लिये एक प्रोग्राम तैयार करा रहा था, जिसमें फिजि़क्स के कुछ नियमों को दर्शकों के सामने पेश किया जाना था। और प्रस्तुतकर्ताओं में माहम भी शामिल थी। उसी प्रस्तुति के सिलसिले में अभी वह आने वाली थी।

''सर!" माहम की आवाज़ सुनकर उसने सर उठाया। माहम की आवाज़ ही उसके बदन में अजीब सी कैफियत पैदा कर देती थी।
''आओ आओ माहम।" वह जल्दी से सीधा होकर बैठ गया। माहम अन्दर दाखिल हुई । डा0प्रवीर को इतिमनान हुआ कि वह अकेली ही आयी थी।

''सर मैंने प्रेज़ेन्टेशन का मैप तैयार कर लिया है। आप एक बार देख लीजिए।"
''हाँ, ठीक है। मैं देख लूंगा।" डा0प्रवीर ने जल्दी से उसके हाथ से मैप लेकर साइड में रख दिया। माहम ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा। प्रोग्राम पेश करने में सिर्फ दो दिन बाकी रह गये थे। ऐसे में उसे सर से ऐसी लापरवाही की उम्मीद नहीं थी। 

''सर, अभी इसके बाद काफी काम है। अगर आप मेहरबानी करके अभी देख लें तो हम लोग आगे काम कर सकते हैं।" उसने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा। 
''हाँ। ये काम ज़रूरी है। लेकिन उससे पहले एक इससे भी ज्यादा ज़रूरी बात करनी है तुमसे।"

''कौन सी बात?" माहम को और ज्यादा आश्चर्य हुआ। 
''बैठ जाओ माहम।" उसने सामने कुर्सी की ओर इशारा किया और माहम कुछ न समझते हुए कुर्सी पर बैठ गयी। डा0प्रवीर ने मेज़ की दराज़ खोलकर एक छोटी सी डिबिया निकाली। और उसे माहम के सामने लाकर खोल दिया। डिबिया के अन्दर एक खूबसूरत सोने की हीरों जड़ी अँगूठी जगमगा रही थी।
''ये कैसी है?" डा0प्रवीर ने उसकी आँखों में देखते हुए पूछा। 
''बहुत खूबसूरत।" माहम ने तारीफी नज़रों से देखा। हालांकि अभी भी उसे नहीं मालूम था कि डा0प्रवीर उससे अँगूठी के बारे में क्यों पूछ रहा है। 

''ये मैंने अपनी होने वाली बीवी के लिये ली है।" 
''अच्छा! क्या आप शादी कर रहे हैं?" माहम ने खुश होकर पूछा। और डा0प्रवीर ने उसकी ओर अफसोस से देखा। आखिर ये लड़कियां दूसरे के दिल की बात आसानी से क्यों नहीं समझतीं। 

''हाँ। मैंने अपने लिये एक लड़की पसंद की है। लेकिन मुझे ये नहीं मालूम कि वह भी मुझे पसंद करती है या नहीं।"
''सर। अगर वह कहीं आसपास रहती है तो मैं उससे इस बारे में पूछ लूं?" माहम ने हमदर्दी से कहा। बेचारे प्रवीर सर। अभी तक उन्हें अपनी होने वाली बीवी के दिल का हाल तक नहीं मालूम था।

''हाँ, इस बारे में केवल तुम ही मेरी मदद कर सकती हो।" डा0प्रवीर के लहजे में कोई अजीब बात इस बार माहम ने महसूस की।

''सर। तो फिर आप बताइये कि वह कौन है?" मैं जल्द से जल्द उससे बात करने की कोशिश करूंगी।
''तुम्हें खुद अपने से ही पूछना होगा माहम। वह लड़की तुम ही हो।" डा0प्रवीर की भारी भर्रायी हुई आवाज़ उसकी भावनाओं के अत्यधिक प्रवाह को इंगित कर रही थी।

उधर माहम की यह हालत थी कि काटो तो खून नहीं। उसने कभी सर को इस नज़र से देखा ही नहीं था। बल्कि सर से शादी का ख्याल ही उसके लिये डरावने ख्वाब की तरह था। हालांकि सर ने उसके साथ कभी सख्ती नहीं की थी लेकिन बाकी स्टूडेन्ट को वो देखती थी कि किस तरह वे सर की झिड़कियाँ खाने से बचने के लिये उन्हें देखते ही रास्ता बदल लेते हैं। 

------जारी है. 

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