Thursday, December 12, 2013

नक़ली जुर्म (कहानी) - भाग 2

डा0प्रवीर चुप होकर उसकी प्रतिक्रिया का इंतिज़ार कर रहा था। फिर माहम ने हिम्मत करके बोलने का फैसला किया, ''सर, एक्चुअली मैंने कभी आपको इस नज़र से नहीं देखा। 
''तो अब देख लो। क्या बुराई है।" इस बार डा0प्रवीर ने नार्मल लहजे में कहा। 

माहम की हिम्मत थोड़ी और बंधी और उसने आगे कहा, ''सर। एक्चुअली मैं एक लड़के से प्यार करती हूं। और बहुत जल्द हम लोग शादी करने जा रहे हैं।" उसने अपनी बात पूरी की और इंतिज़ार करने लगी सर की खुंखार प्रतिक्रिया की। उसे यही लग रहा था कि अब सर तेज़ आवाज़ में कहेंगे ''गेट आउट!" और फिर शायद वह आगे उसको देखते ही काट खाने दौड़ने लगेंगे। 

लेकिन डा0प्रवीर ने ऐसा कुछ नहीं किया बलिक शांत स्वर में धीरे से पूछा, ''वह लड़का कौन है?"

''वह मयंक है सर।" 
''हूं। अच्छा लड़का है। मुझे यकीन है तुम उसके साथ खुश रहोगी।" इस बार भी डा0प्रवीर ने धीमी आवाज़ में कहा। 
''सर! आई एम रियली सारी। आप प्लीज़ माइंड न कीजिए।" माहम को अन्दर ही अन्दर गिल्टी भी फील हो रहा था।

''अरे नहीं ऐसी कोई बात नहीं। हर एक को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार है।" डा0प्रवीर ने एक बार फिर शांत स्वर में कहा और अंगूठी को डिबिया में बन्द करके मेज़ की दराज़ में रख दिया। फिर उसने माहम का बनाया हुआ चार्ट खोलकर सामने रख लिया, ''अब हम लोग प्रोग्राम पर डिस्कस करते हैं। फिर वह बहुत देर तक माहम को प्रोग्राम के बारे में समझाता रहा। 

और अंत में जब माहम उठने लगी तो उसने कहा, ''माहम! जिंदगी में हर तरह के मोड़ आते हैं। कभी खुशी के तो कभी ग़म के। अगर जिंदगी में कभी तुम परेशानी महसूस करो तो बेझिझक मेरे पास आ जाना। मैं तुम्हारी पूरी मदद करूंगा।" 
''थैंक्यू सर।" माहम ने कहा और डा0प्रवीर के चैम्बर से बाहर आ गयी।
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लेकिन माहम को यह नहीं मालूम था कि डा0प्रवीर की बात इतनी जल्दी सच हो जायेगी और उसे ऐसे तूफान से गुज़रना पड़ेगा जो उसकी जिंदगी को ही तहस नहस कर देगा। वह हालांकि शहर की एक जगमगाती रात थी लेकिन उस रात ने उसकी जिंदगी में कभी न खत्म होने वाला अँधेरा भर दिया। 

कालेज का वार्षिक समारोह खत्म हुए आज दूसरा दिन था। लोग उसको सफल प्रोग्राम पेश करने के लिये बधाईयाँ दे रहे थे। वह दिनभर फोन अटेंड करते करते और लोगों से मिलते जुलते थक चुकी थी। और इस समय जबकि रात के ग्यारह बज रहे थे उसका दिल यही चाह रहा था कि बिस्तर पर जाये और फौरन खर्राटें लेने लगे।

नाइट सूट पहनने के बाद वह बिस्तर पर जाने ही वाली थी कि किसी ने उसके कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। 
''अब क्या मुसीबत है।" उसे विश्वास था कि इस वक्त आने वाली कोई मुंहफट सहेली ही होगी अत: उसने थोड़ा झल्लाहट के साथ दरवाज़ा खोल दिया। लेकिन दरवाज़े पर मयंक को खड़ा देखकर वह सकपका गयी और अपने शरीर को छुपाने के लिये दोनों हाथ अनायास ही सामने कर लिये।

''मयंक तुम इस समय?" उसने हैरत से कहा।
''माहम, इस वक्त तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो।" मयंक की लाल आँखों से ज़ाहिर हो रहा था कि वह नशे में डूबा हुआ है। 
''मयंक तुम इस वक्त यहाँ क्यों आये हो।" माहम ने थोड़ी फिक्रमंदी के साथ पूछा।

''क्यों? क्या मैं नहीं आ सकता? आखिर मैं तुम्हारा मंगेतर हूं। हम बहुत जल्द शादी करने वाले हैं।" अब माहम को कन्फर्म हो गया था कि वह नशे में धुत है। और इस वक्त उसे अच्छे बुरे की बिल्कुल तमीज़ नहीं रह गयी। 
वह बोली, ''मयंक तुम इस वक्त जाओ। मैं तुमसे सुबह बात करूंगी।" उसने दरवाज़ा बन्द करना चाहा लेकिन मयंक ज़बरदस्ती आगे बढ़ आया और फिर उसने अन्दर से सिटकिनी लगा दी। माहम उसका इरादा जानकर काँप उठी। 

और फिर वह हो गया जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी। जिसे उसने अपने मन मंदिर में जगह दी थी वह एक क्रूर भेडि़या साबित हुआ जिसने उसके बहते हुए आँसुओं की भी परवाह नहीं की। वह सिसकती रही और वह दरिन्दा उसकी अस्मत को तार तार करता रहा।
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माहम ने कभी सोचा भी नहीं था कि मयंक इस तरह उसे धोखा देगा। हालांकि बस चन्द दिन के बाद वह पूरी तरह उसकी हो जाने वाली थी। उसका दिल व जिस्म दोनों ही उसके लिये थे। फिर यह ज़बरदस्ती? क्या वह कोई खेलने वाली गुडि़या थी? 

माहम गुस्से से पागल हो रही थी। उसने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कर दी। और मयंक को गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि वह अपना जुर्म मानने को तैयार ही नहीं था। और बार बार यही कह रहा था कि वह निर्दोष है। लेकिन पुलिस ने उसके ऊपर मुकदमा दर्ज कर लिया। माहम का साथ शहर के कई महिला संगठनों ने दिया जिसके नतीजे में जल्दी ही कोर्ट ने अपना फैसला भी सुना दिया। माहम की गवाही व अन्य कुछ सुबूतों के आधार पर मयंक को लंबे कारावास की सज़ा सुना दी गयी।

इस बीच लगभग टूट चुकी माहम का सबसे ज्यादा साथ डा0प्रवीर ने ही दिया था। वह हर पल उसे ढाँढस बंधाने के लिये मौजूद रहता था। अंतत: माहम ने उसे अपना जीवन साथी बनाने का फैसला कर लिया। और जल्दी ही दोनों शादी के अटूट बंधन में बंध गये।
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शादी की गहमा गहमी खत्म हुई और जिंदगी एक ढर्रे पर चलने लगी। धीरे धीरे माहम के मन से बीते हुए कल की तल्ख यादें मिटने लगी थीं। डा0प्रवीर एक अच्छा पति साबित हुआ था। दूसरों के लिये वह जितना सख्त था, उसके लिये उतना ही नर्म। हालांकि कभी कभी वह सनक भी जाता था लेकिन समस्या गंभीर नहीं थी। इतना तो सभी घरों में होता है। 

लेकिन अचानक वह मनहूस दिन आया जिसने उसकी ठहरी हुई जिंदगी में तूफान बरपा कर दिया।

उस दिन डा0प्रवीर की बड़ी बहन उससे मिलने आयी थी जो यू.एस. में रहती थी और एक साइंटिस्ट के तौर पर नासा में कार्यरत थी। काम की व्यवस्तता के कारण वह डा0प्रवीर की शादी में नहीं आ सकी थी। अब उसे छुटटी मिली थी तो वह इस नव शादी शुदा जोड़े को आशीर्वाद देने आयी थी। 

माहम को उससे मिलकर खुशी हुई। क्योंकि डा0प्रवीर जितना सख्त मिजाज़ था उसकी बहन उतनी ही नर्म। जब बोलती थी तो मानो उसके मुंह से फूल झड़ रहे हों। वे तीनों काफी देर तक बातें करते रहे। फिर माहम को नींद आने लगी अत: वह अपने कमरे में सोने के लिये आ गयी जबकि डा0प्रवीर वहीं बैठा रहा।

अभी उसे सोते हुए कुछ ही देर हुई थी कि अचानक किसी खटके से उसकी आँख खुल गयी। डा0प्रवीर अभी भी नहीं आया था। उसे प्यास महसूस हुई। बेड के पास रखी बोतल खाली थी अत: वह किचन की ओर बढ़ी। उसने देखा एक कोठरी जिसमें कबाड़ भरा रहता था, उससे रोशनी फूट रही है। 

''डा0प्रवीर इतनी रात को उस कोठरी में क्या कर रहा है? क्या वह अपनी बहन को कुछ दिखाना चाहता है?" जिज्ञासा ने उसके कदम कोठरी की ओर बढ़ा दिये। वह अन्दर दाखिल हुई। कोठरी में पहले की तरह कबाड़ भरा हुआ था, लेकिन साथ ही अन्दर एक छोटा सा दरवाज़ा भी वह देख रही थी जो इससे पहले उसने कभी नहीं देखा था। उस दरवाज़े से भी रोशनी छन कर बाहर आ रही थी। उसने उस दरवाज़े से अन्दर जाना चाहा लेकिन उसी वक्त अपना नाम सुनकर ठिठक गयी। 

डा0प्रवीर की बहन कह रही थी, ''तुम्हें माहम के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था।"

------जारी है. 

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