Tuesday, May 4, 2021

तस्वीर

 


‘‘क्या मुसीबत है। इस कार को भी यहीं खराब होना था।’’ विवेक ने इग्नीशन में चावी घुमायी लेकिन कार का इंजन हर बार एक घरघराहट की आवाज करने के बाद खामोश हो गया। उसकी बगल में बैठी उसकी पत्नी के चेहरे पर भी चिंता की लकीरें उभर आयी थीं। अभी तक आराम से चलने से चलने वाली कार इस जगंह आने के साथ ही बन्द हो गयी थी और फिर लाख कोशिशें भी उस कार को स्टार्ट नहीं कर पा रही थीं।

विवेक ने इधर उधर नज़रें दौड़ायीं, कहीं कोई मनुष्य नहीं दिख रहा था। सड़क के दोनों तरफ घना जंगल था जिसमें से आने वाली जानवरों की आवाजें माहौल को डरावना बना रही थीं।
‘‘इस जंगल में तो हम किसी की मदद भी नही ले सकते।’’ विवेक ने चिन्ताजनक लहजे में कहा।
‘‘शायद कारबोरेटर में कुछ कचरा वगैरा आ गया है।’’ उसकी पत्नी सीमा ने कहा।
‘‘देखता हूँ।’’ विवेक ने बोनट उठाया और इंजन पर नजर दौड़ाने लगा। काफी देर माथापच्ची करने के बाद भी खराबी पकड़ में नहीं आयी। आखिरकार वह पसीना पोंछता हुआ सीधा हो गया।
‘‘लगता है यह रात यहीं वीराने में गुजारनी पड़ेगी।’’ उसने निराशाजनक स्वर में कहा। एकाएक दूर से आने वाली ट्रक की हेडलाइट में उसकी कार चमकने लगी।
‘‘क्यों न उस ट्रक से हम लोग लिफ्ट ले लें।’’ सीमा ने सुझाव दिया।
‘‘कोशिश करते हैं कि वह हमारी मदद करने पर तैयार हो जाये।’’ विवेक ने कहा और ट्रक के पास आने की प्रतीक्षा करने लगा। जब ट्रक करीब आया तो उसने उसे रोकने के लिए हाथ दिया। ट्रक कार के पास आकर रुक गया।
‘‘क्या बात है भाई जी ?’’ ड्राइवर ने सर निकालकर पूछा।
‘‘हमारी कार खराब हो गयी है। क्या तुम हमें शहर तक लिफ्ट दे दोगे?’’ विवेक ने पूछा। उसकी बात सुनकर ट्रक में सवार व्यक्ति नीचे उतर आये। ड्राइवर समेत यह तीन लोग थे।
‘‘हम लिफ्ट जरूर देंगे।’’ उनमें से एक बोला, ‘‘लेकिन सिर्फ तुम्हारी बीवी को। तुम्हें नहीं।’’ उसकी आवाज में छुपी शैतानियत ने विवेक के मस्तक पर चिन्ता की रेखाएं डाल दीं। सीमा भी बुरी तरह घबरा गयी थी। वह विवेक के पीछे छुपने की कोशिश करने लगी, लेकिन ड्राइवर ने आगे बढ़कर उसका बाजू पकड़ लिया। विवेक उसे छुड़ाने की कोशिश करने लगा, लेकिन दरिन्दे तीन थे। इसलिए वह बेबस हो गया।
‘‘क्या हो रहा है यहाँ ?’’ एकाएक वहाँ किसी औरत की कमज़ोर आवाज़ गूँजी। सबने चौंक कर आवाज़ की दिशा में देखा। जंगलों की तरफ एक बुढ़िया खड़ी हुई थी। जिसके हाथ में एक लालटेन थी।
‘‘यह बुढ़िया कहाँ से टपक पड़ी।’’ ड्राईवर बड़बड़ाया, फिर बुढ़िया से मुखातिब हुआ,‘‘ए बुढ़िया! हमारे बीच मत बोल, भाग जा यहाँ से।’’
‘‘बेटा। तुम लोग ये बहुत बुरा कर रहे हो।’’ बुढ़िया ने फिर कहा।
‘‘अगर तू जवान होती तो हम तेरे साथ भी यही करते।’’ ड्राईवर ने सीमा का बाजू खींचते हुये कहा। बाकी दोनों उसकी बात पर कहकहा मारकर हंस पड़े।
‘‘तुम लोग अंधेरे में धंस चुके हो। तुम्हें रोशनी की ज़रूरत है।’’ कहते हुये बुढ़िया ने लालटेन ऊपर की। उसी वक्त उस लालटेन से एक तेज़ रोशनी निकलकर ड्राईवर और उसके दोनों साथियों पर पड़ी। दूसरे ही पल विवेक और सीमा ने देखा कि तीनों धू धू करके जलने लगे थे और चीख पुकार मचा रहे थे। चन्द सेकेन्ड के अंदर ही उसके जिस्म खाक हो चुके थे।
‘‘ये क्या ? कैसे हुआ ?’’ विवेक के स्वर में हैरत थी।
‘‘कुछ भी हो। माँ जी ने मेरी इज़्ज़त बचाई है। आओ हम उनका शुक्रिया अदा करें। अगर आप न होती तो न जाने वे बदमाश क्या करते हमारे साथ।’’ सीमा ने बुढ़िया के हाथ पकड़कर उन्हें चूमना चाहा, लेकिन बुढ़िया दो कदम पीछे हट गयी। ‘‘दूर रहो! मत छूना मुझे।’’ उसने जल्दी से कहा। विवेक और सीमा ने एक दूसरे की तरफ प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा। वे बुढ़िया की बात का कोई अर्थ नहीं निकाल पाये थे।
‘‘तुम लोगों की गाड़ी खराब हो गयी है। इस वक्त कहीं भी जा नहीं सकते  तुम। मेरे साथ चलो और रात भर वही रहो। सुबह चले जाना। ’’ कहकर वह जंगल की तरफ घूम गई। विवेक और सीमा ने उसका अनुसरण किया। काफी देर तक बुढ़िया चलती रही, और उसके पीछे वो लोग। उन्हें हैरत थी कि घने जंगल के बीच बुढ़िया कहाँ और कैसे रहती है।
आखिरकार उनका सफर एक खंडहरनुमा इमारत के सामने जाकर खत्म हुआ। बहुत प्राचीन इमारत लग रही थी जो जगह जगह से टूट फूट रही थी। उसकी दीवारों पर उगे पेड़ पौधे इतने बड़े हो चुके थे कि उनके बीच दीवारों की बस थोड़ी सी झलक दिख रही थी।
‘‘आओ। अन्दर आ जाओ’’ बुढ़िया ने पीछे मुड़े बगैर कहा।
‘‘ये मकान तो बहुत पुराना लगता है।’’ विवेक ने चारों तरफ नज़र घुमाते हुये कहा।
‘‘मेरे बाप ने इसे बहुत चाहत से बनवाया था अपनी इकलौती बेटी, यानि मेरे लिये।’’ बुढ़िया ने जवाब में कहा।
‘‘मुझे तो ऐसा मालूम होता है जैसे बरसों से इस उजाड़ जगह पर कोई आया ही नहीं।’’ बड़े बड़े मकड़ी के जालों को देखकर सीमा के मुँह से निकला।
‘‘न जाने माँ जी इस वीराने में कैसे रह लेती हैं।’’ विवेक ने कहा।
आखिर में बुढ़िया के साथ चलते चलते वे एक कमरे में पहुँच गये जो अपेक्षाकृत साफ सुथरा था।
‘‘तुम लोग यहाँ आराम करो। सुबह होते ही यहाँ से चले जाना।’’ कहकर बुढ़िया वापस जाने को घूमी।
‘‘रूको !’’ विवेक ने कहा, ‘‘क्या हमें एक गिलास पानी मिल सकता है ?’’ बहुत प्यास लगी है।’’
‘‘इस कमरे के पिछवाड़े एक कुआं मौजूद है। तुम लोगां को खुद तकलीफ करके वहाँ तक जाना होगा और बाल्टी डालकर पानी निकालना होगा। और हाँ अगर तुम्हें भूख लगी है तो वहीं फलदार वृक्ष भी लगे हुये हैं। उनके फल तुम लोग खा सकते हो।’’
‘‘तो क्या आप भी यहाँ सिर्फ फल खाकर रहती हैं ?’’ सीमा ने पूछा।
‘‘मेरे बारे में सवाल मत करो और आराम से बैठकर सिर्फ अपनी फिक्र करो। मैं जाती हूँ।’’ वह जल्दी से अपनी लालटेन उठाकर बाहर निकल गयी।
‘‘यह बुढ़िया कुछ अजीब सी नहीं लगती तुम्हें ?’’ सीमा ने विवेक को मुखातिब किया।
‘‘कुछ किया ? यह तो पूरी तरह रहस्यपूर्ण साबित हुई है। तुमने देखा नहीं किस तरह उसने तीनों बदमाशों को राख के ढेर में बदल दिया।’’ विवेक ने सोचने के अंदाज़ में कहा।
‘‘इसके रहने की जगह भी कम रहस्यपूर्ण नहीं है। पूरा भूत बंगला मालूम होता है यह तो। विवेक, कहीं वाकई ये कोई भूत प्रेत का चक्कर तो नहीं ?’’ इस बार सीमा की आवाज़ में कंपन विवेक ने साफ महसूस किया।
‘‘क्या बकवास है। बायोटेक्नालाजी और रोबोटिक्स के ज़माने में तुम भूत प्रेतों  के चक्कर में पड़ी हुई हो। यह सब कुछ नहीं, खामोशी से सो जाओ। सुबह देखेंगे कि बुढ़िया वास्तव में कौन है।’’ कहकर वह बिस्तर पर लेट गया।
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पूरी रात की भरपूर नींद लेने के बाद सुबह जब विवेक सोकर उठा तो सीमा को जागते हुये पाया। वह कुछ परेशान मालूम हो रही थी।
‘‘विवेक, वह बुढ़िया तो गायब हो गयी है।’’ सीमा ने कहा।
‘‘क्या मतलब ?’’ विवेक ने हैरत से पूछा।
‘‘मैंने पूरा घर देख लिया है। वह कहीं नहीं दिखायी दे रही है।’’
‘‘हो सकता है बाहर किसी काम से निकली हो। आओ तब तक मैं भी इस प्राचीन महल को अंदर से देख लेता हूँ। फिर दोनां ने पूरी इमारत का चक्कर लगा लिया लेकिन बुढ़िया कहीं नहीं दिखायी दी। इस बीच उन्हें एक कमरा दिखायी दिया, जहाँ वह लालटेन रखी हुई थी। और उसी कमरे में उस बुढ़िया की आदमकद तस्वीर लगी हुई थी। हाथ से बनी हुई यह तस्वीर किसी बहुत ही अच्छे आर्टिस्ट ने बनायी थी और उसमें बुढ़िया का हुबहू नक़्शा उतार दिया था।
‘‘ऐसा मालूम होता जैसे बुढ़िया इसी कमरे में रहती है। विवेक ने कहा और आगे बढ़कर उसकी लालटेन उठाने लगा।
‘‘कमाल है। यह तो टस से मस नहीं हो रही है। लगता है जैसे इस ज़मीन में जाम कर दिया गया है।’’ विवेक ने हैरत से कहा।
‘‘बुढ़िया की गैरमौजूदगी में हमें उसकी चीज़ों को हाथ नहीं लगाना चाहिये।’’ सीमा ने राय दी। विवेक लालटेन छोड़कर हट गया।
‘‘अब हमें यहाँ से निकल जाना चाहिये।’’ सीमा ने फिर कहा।
‘‘लेकिन सीमा, हम बुढ़िया का शुक्रिया अदा किये बगैर कैसे यहां से जा सकते है। वह हमारे बारे में क्या सोचेगी।’’
‘‘लेकिन अगर वह शाम तक न आयी तो ? और फिर मुझे तो भूख लग रही है।’’
सीमा ने बेचैनी से कहा।
‘‘ खाने के लिये यहाँ आसपास किचन ज़रूर होगा। वहाँ से कुछ न कुछ मिल जायेगा।’’
‘‘हमने तो पूरा घर छान मारा है। किचन तो कहीं नहीं दिखायी दिया।’’
‘‘अरे हाँ। ’’ विवेक चौंककर बोला, ‘‘ बुढ़िया ने कहा था कि कुंऐ के पास फलदार पेड़ लगे हैं।’’ दोनों कुएं के पास आये जहाँ पेड़ों पर तरह तरह के फल लगे हुये थे। पेड़ो को देखकर अनुमान होता था कि जैसे वे हज़ारों वर्ष पुराने हों। उन्होंने पेट भरकर फल खाये और उस कुंऐ का पानी पिया। बहुत मीठा पानी था यह।
‘‘अब तो काफी वक्त हो गया है। बुढ़िया अभी तक नहीं आयी। हमें अब देर न करते हुये यहाँ से निकल जाना चाहिये।’’ सीमा ने एक बार फिर राय दी।
‘‘मेरी जिज्ञासा अब काफी बढ़ चुकी है। जब तक हम यहाँ के रहस्य का पता नहीं लगा लेते, हमें यहीं रूकना होगा। चाहे एक रात और यहाँ गुज़ारनी पड़े।’’
फिर पूरा दिन बीत गया। बुढ़िया का कोई पता नहीं था।
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यह उस खंडहर में दोनों की दूसरी रात थी। दोनों अपने कमरे में मौजूद थे।
‘‘न जाने वह कहां गायब हो गयी।’’ सीमा ने बेचैनी से कहा।
आओ, उसके कमरे में फिर चलकर देखने हैं। शायद वापस आ गयी हो।’’ विकास ने उठते हुये कहा और चिराग हाथ में ले लिया। दोनों उसी कमरे में पहुंचे जहाँ उन्होंने बुढ़िया की लालटेन और फोटो देखी थी।
‘‘अरे लालटेन कहां गायब हो गयी?’’ विवेक ने हैरत से कहा। अब वाकई वहां लालटेन नदारत थी।
‘‘मालूम होता है वह वापस आ चुकी है।’’ सीमा ने अनुमान लगाया। दोनों पूरे कमरे का निरीक्षण करने लगे। फिर उनकी निगाहें दीवार पर टंगी फ्रेम पर टिक गयीं। फ्रेम अपनी जगह मौजूद था लेकिन उसमें बुढ़िया की फोटो नदारत थी।
‘‘क्या चक्कर है ये। सुबह तो हमने इस फ्रेम में बुढ़िया की फोटो देखी थी।’’ विवेक लगातार हैरत के समुन्दर में गोते खा रहा था और साथ में सीमा भी।
‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि वह किसी वक्त खामोशी से आयी हो, और दोनो चीजें उठाकर खामोशी से निकल गयी हो।’’
‘‘लेकिन उसने ऐसा क्यों किया ? यह पहेली उलझती ही जा रही है।’’
‘‘तुम लोग यहां क्या कर रहे हो ?’’ एकाएक पीछे से आयी बुढ़िया की आवाज़ सुनकर दोनों उछल पड़े। घूमकर देखा तो वह अपनी जगह मौजूद थी, उसी तरह लालटेन को हाथ में थामे हुये।
‘‘तुम ? तुम कहां चली गई थी ? हम लोग तुम्हें ही ढूंढ रहे थे।’’ विवेक ने थोड़ा संयत होकर कहा।
‘‘लेकिन क्यों ? तुम लोगों को तो सुबह होते ही यहां से चला जाना चाहिये था ?’’
‘‘तुम्हारा शुक्रिया अदा किये बगैर और तुम्हें बताये बगैर हम कहां जा सकते थे’’ सीमा ने जवाब दिया।
‘‘क्या तुम्हें ऐसा नहीं मालूम हुआ कि यह जगह भूत प्रेतों का बसेरा है ?’’
बुढ़िया के सवाल पर दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा।
‘‘हालात यकीनन रहस्यपूर्ण हैं। लेकिन हम भूत प्रेतों पर विश्वास नहीं करते। क्योंकि मैं एक वैज्ञानिक हूँ और सीमा मेरी बीवी भी है और असिस्टेंट भी।’’
‘‘शायद अभी तुम्हें यकीन आ जाये।’’ बुढ़िया ने लालटेन उसकी जगह पर रखी और खुद चलती हुई दीवार पर टंगे फ्रेम के पास पहुंची। दूसरे ही पल वह फ्रेम के अंदर जाकर गायब हो चुकी थी, और खाली फ्रेम में बुढ़िया की तस्वीर नज़र आने लगी थी।
‘‘व-व...... विवेक।’’ सीमा ने विवेक का बाजू मज़बूती से पकड़ लिया। एक पल के लिये विवेक भी भौंचक्का रह गया। फिर थोड़ा संभलकर वह फ्रेम के पास गया और कहने लगा, ‘‘यह जो कुछ भी रहस्य है, मेरी सांइस-मेरा ज्ञान इसकी व्याख्या कर पाने में लाचार है। मेरे ज्ञान से बाहर की चीज़ है यह सब। इसके बावजूद मैं इसे कोई चमत्कार मानने को तैयार नहीं हूँ। अगर यह चमत्कार है भी तो किसी बहुत ही उच्च कोटि के विज्ञान का, जहाँ तक मेरी अक्ल नहीं पहुंच पा रही है।’’
एक बार फिर फ्रेम की तस्वीर वास्तविक रूप में आ गई। बुढ़िया के रूप में दोनों के सामने आकर उसने कहना शुरू किया,‘‘मैं खुश हूँ कि तुमने मुझे भूत प्रेत मानने से इंकार कर दिया। आज से पहले यहां कई लोग आये, लेकिन कुछ क्षणों से ज़्यादा टिक नहीं पाये। कुछ तो पागल भी हो गये। मेरा भी यही मकसद था कि किसी अक्षम व्यक्ति को मेरा और मेरे महल का राज़ न मालूम होने पाये। यह जगह हमेशा गुमनामी के अंधेरे में रहे। लेकिन तुम लोगों को मैं अपना रहस्य ज़रूर बताऊँगी। हाँ उससे पहले तुम्हें एक वादा करना होगा।’’
‘‘कैसा वादा ?’’ विवेक सीमा ने एक साथ पूछा।
‘‘यह कि तुम लोग मेरी बतायी कहानी को अपने सीनों में दफ्न कर दोगे।’’ बुढ़िया ने खाली फ्रेम को घूरते हुये कहा।
इस समय दोनों के सामने उसकी पीठ थी।
‘‘हम वादा करते हैं।’’ दोनों ने कहा।
‘‘ठीक है।’’ बुढ़िया ने अपनी कहानी शुरू की,
‘‘चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का युग भारत का स्वर्ण युग माना जाता है। वैज्ञानिकों, गणितज्ञों और कलाकारों का युग था यह। तकनीक में बेजोड़ अनेकों इमारतें इसी युग में बनीं। यहांँ तक कि अद्भुत मशीनरी से संचालित होने वाले तिलिस्म भी इस युग की पहचान बन गये जिनका बाद के किस्से कहानियों में ज़िक्र मिलता है।
मेरा बाप भी एक महान वैज्ञानिक था और चन्द्रगुप्त के दरबार की शान था वह। यह जगह उसकी प्रयोगशाला भी थी और घर भी। जहां वह अपनी इकलौती बेटी यानि मेरे साथ रहता था। अपनी जवानी में मैं बहुत खूबसूरत थी। अपने बाप का हाथ बटाते हुये मैं भी एक उच्च कोटि की वैज्ञानिक बन गई थी। उस समय भी यह जगह इसी तरह वीरान थी।
मेरे बाप के मस्तिष्क में एक ऐसा तिलिस्म बनाने का विचार था जिसका हर दरवाज़ा कुछ विशेष लोगों की गंध पाकर खुल जाये। और उनके अलावा और कोई व्यक्ति उस जगह प्रवेश करे तो तिलिस्म के जाल उसे अपने शिकंजे में कस लें। वह दिन रात अपने काम में जुटा हुआ था कि एकाएक उस काली रात में एक भयंकर दुर्घटना हो गयी।’’
दोनों पति पत्नी अपनी सांस रोके हुये उसकी कहानी सुन रहे थे। जो कुछ भी उसकी कहानी में था अविश्वसनीय था।
बुढ़िया ने आगे कहना शुरू किया,‘‘उस दिन मैं कुछ खरीदने शहर गयी हुई थी। वापसी में रात हो गयी। विक्रमादित्य का ज़माना महिलाओं के लिये बहुत सुरक्षित था। उनका बहुत सम्मान किया जाता था। लेकिन उस दिन वह अनहोनी घट गयी  जिसका कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता था। जब मैं एक सुनसान पगडंडी पर  मुड़ी तो अचानक तीन बदमाश झाड़ियों के पीछे से निकलकर मेरे सामने आ गये। उन्होंने मुझे झाड़ियों में खींच लिया। और मेरे साथ ज़बरदस्ती की। तब मुझे एहसास हुआ कि एक महिला कभी भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं होती है। मेरा बाप मेरे साथ हुये कांड का सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाया और दिल के दौरे ने उसकी जान ले ली। कुछ दिन तक मैं निढाल सी रही और फिर हालात से समझौता कर लिया। बाप का दिया गया वैज्ञानिक ज्ञान मेरे मस्तिष्क में मौजूद था। मैंने अपना प्रयोग आगे शुरू किया लेकिन अब मेरा मकसद पूरी तरह बदल चुका था मैं महिलाओं की रक्षा के लिये किसी कारगर हथियार की तालाश में जुट गयी थी। जिसमें वह अकेली होते हुये भी अपने दुष्मनों पर भारी पड़े मेरा जीवन तो तबाह हो ही चुका था लेकिन मैं और किसी महिला के साथ यह पुनरावृत्ति नहीं चाहती थी।
फिर मैं बरसों तक कार्य करती रही। यहां तक कि मेरी उम्र अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच गयी। आखिरकार मेरे कार्य का पहला चरण पूरा हुआ और एक नायाब यन्त्र मेरे हाथ में आ गया।
‘‘कैसा यन्त्र ?’’ बरबस ही विवेक ने पूछा।
‘‘वह यन्त्र तुम्हारे सामने है। दो भाग है इसके। पहला भाग वह लालटेन है जिससे निकलने वाली रोशनी ने तीनों बदमाशों की जान ली।
‘‘और दूसरा भाग ?’’ सीमा ने पूछा।
‘‘दूसरा भाग मैं खुद हूँ। या फिर फ्रेम में जुड़ी मेरी तस्वीर।’’ बुढ़िया ने कहा।
‘‘लेकिन तुम इतने वर्षों से ज़िन्दा कैसे हो ?’’ हैरत से सीमा ने सवाल किया।
बुढ़िया एक कहकहा मारकार हंस दी,‘‘लो खा गये न धोखा! मैं तो अपने यन्त्र को बनाने के कुछ ही समय बाद मर गयी थी।’’
‘‘तो फिर तुम मेरे सामने कैसे खड़ी हो ? कैसी पहेली है ये ?’’ विवेक ने बेचैनी से पूछा।
‘‘मेरी कहानी पूरी होने तक तुम्हें कुछ समझ में नहीं आयेगा।’’ बुढ़िया ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘सबसे पहले मैं लालटेन के बारे में बताती हूँ। आधुनिक युग की लेसर किरणों का प्राचीन स्वरूप है ये। प्रकाश के कणों के विशेष प्रकार के कंपन द्वारा यह प्रकाश इतना तीव्र हो जाता है कि किसी की भी जान ले सकता है। लालटेन के अंदर मणिभ से बना यन्त्र प्रकाश में ये कंपन कराता है।
लेकिन ये कंपन तभी उत्पन्न होते हैं जब लालटेन अपने ऊर्जा स्त्रोत के साथ जुड़ती है। और ये ऊर्जा स्त्रोत मेरी ऊर्जीय परछाईं के रूप में तुम्हारे सामने मौजूद है।’’
‘‘ऊर्जीय परछाईं ? यह क्या बला है ?’’ विवेक ने पूछा। दोनां पूरी तरह बुढ़िया की कहानी में रम चुके थे।
‘‘मेरा असली आविष्कार तो यही है। यह फ्रेम जो तुम देख रहे हो, इसके अन्दर मौजूद तस्वीर दरअसल एक ऐसा जटिल ऊर्जा स्त्रोत है जिसकी एक निश्चित शक्ल है। फ्रेम के अन्दर बहुत छोटे छोटे छिद्र हैं जिनसे ऊर्जा स्पंद लगातार निकलते रहते हैं। और मेरी तस्वीर के रूप में दिखते रहते हैं। इस फ्रेम में इतनी ऊर्जा का भंडार है जितनी एक परमाणु बम में होती है। अगर तुम मेरी परछाईं को छू भी लो तो फौरन भस्म हो जाओगे। और साथ ही इसके अन्दर कृत्रिम बुद्धिमता का भी समावेश है। एक ऐसा कृत्रिम मस्तिष्क इसमें मौजूद है जो हूबहू मेरे मस्तिष्क की नकल है। इसकी स्मृति में मेरे जीवन की समस्त जानकारी भंडारित है। और साथ ही इसमें ऐसा सिस्टम है कि यह बाद में घटने वाली समस्त घटनाओं को भी रिकार्ड करता रहे। साथ ही आसपास के माहौल को देखकर इसमें फैसला लेने की भी ताकत है। इसकी आधुनिक युग के कम्प्यूटर से तुलना कर सकते हो तुम। लेकिन इसकी टेक्नालॉजी कम्प्यूटर से कही ज़्यादा जटिल एंव अच्छी है।
और इसी मस्तिष्क में यन्त्र को बनाने का उद्देश्य भी समाया हुआ है। यानि किसी महिला को मुसीबत में देखकर उसकी मदद को पहुंच जाना। ऊर्जा की यह परछाईं फ्रेम से बाहर निकलकर आसपास के वातावरण पर नज़र रखती है और किसी भी महिला को मुसीबत में गिरफ्तार देखकर फौरन उसकी मदद को पहुंच जाती है। मैंने इस यन्त्र को तैयार किया और फौरन ही मेरी मृत्यु हो गयी। इसलिये इस यन्त्र की दो कमियां दूर नहीं हो पायीं। ’’
‘‘कैसी कमियां ?’’ विवेक ने पूछा।
‘‘पहली तो यह कि यह सिर्फ रात के अंधेरे में काम करता है। दिन की रोशनी में मेरी यह शक्तिशाली परछाईं मात्र एक बेकार सी तस्वीर बन जाती है जो शक्तिहीन रहती है। दूसरी कमी ये है कि इसके कार्य करने का क्षेत्र बहुत सीमित है। मात्र कुछ किलोमीटर का दायरा है इसका। उम्मीद है अब तुम इस जगह को भूत प्रेत का बसेरा नहीं समझ रहे होगे।’’ बुढ़िया ने अपनी बात खत्म की।
‘‘अद्भुत आश्चर्यजनक। हम तो सोच भी नहीं सकते थे।’’ विवेक के साथ साथ सीमा की आँखें भी आश्चर्य से फटी पड़ रही थी।
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शहर की तरफ आते हुये विवेक ने सीमा से पूछा,‘‘क्या ख्याल है ? इस बात का ज़िक्र तुम और किसी से करोगी ?’’
‘‘मेरा ख्याल है नहीं। उस यन्त्र को अपना काम करने दो। अगर यह खबर फैल गयी तो हो सकता है उसे पाने के लिये लोगों के बीच होड़ लग जाये। और इस चक्कर में या तो वह यन्त्र नष्ट हो जायेगा, या फिर सैकड़ों बेगुनाहों की जानें चली जायेंगी।’’
‘‘बहरहाल यह तजुर्बा हम कभी नहीं भूल पायेंगे।’’ विवेक ने दूर तक फैली काली सड़क अपनी नज़रे गड़ा दी।
---समाप्त ---

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