लेखक : ज़ीशान हैदर ज़ैदी
एक मशीनी मानव जब उसके पास से गुज़रा तो उसने किताब पर से नज़र उठाकर एक उचटती नज़र उसकी ओर डाली। उस गैलरी में मशीनी मानवों का चलना फिरना कुछ अस्वाभाविक नहीं था। क्योंकि वह दुनिया की जानी मानी रिसर्च लैब थी और वहाँ अधिकतर काम रोबोटों के ही जरिये होता था। वह यहाँ एक इंटरव्यू के सिलसिले में आयी थी और अपनी काॅल का इंतिज़ार कर रही थी।
वैसे यह रोबोट उसे कुछ अजीब सा मालूम हुआ। क्योंकि दूसरे रोबोटों की तरह इसकी चाल यान्त्रिक न होकर किसी मानव जैसी लचीली थी। बिल्कुल ऐसा ही मालूम हुआ था जैसे कोई मानव पास से गुज़र गया हो। उसने एक बार फिर किताब पर अपनी नज़रें गड़ा दीं। कुछ क्षणों बाद वहाँ का कर्मचारी उसके पास आया। जिसने उससे थोड़ी देर पहले उसका बायोडाटा लिया था।
‘‘मैडम आप अन्दर चली जाईए। आपको काॅल किया गया है।’’ उसने एक रूम की तरफ इशारा किया और वह अपना पर्स समेटते हुए उठ खड़ी हुई। कमरे में दाखिल होने से पहले उसने बाहर लिखा तख्ती पर नज़र दौड़ाई जिसपर ‘चेयरमैन - डा0 कैमरून’ अंकित था।
रूम के अन्दर घुसते है उसे हैरत का एक झटका लगा। क्योंकि सामने चेयरमैन की कुर्सी पर वही रोबोट विराजमान था जो थोड़ी देर पहले उसके सामने से गुज़रकर गया था।
‘‘आईए मिस अनुशा !’’ उसने अपने यान्त्रिक हाथ से उसको सामने कुर्सी पर बैठने का संकेत किया।
‘‘अ..आप!’’ हैरत से उसे देखते हुए अनुशा ने कुछ कहना चाहा।
‘‘हैरत करने की ज़रूरत नहीं। मैं देखने में मशीनी मानव ज़रूर लगता हूं। लेकिन मैं एक इंसान ही हूं। मेरा दिमाग और जिस्म का अच्छा खासा हिस्सा अभी इंसान रूप में है। वैसे आजकल साईबोर्ग बनना तो एक आम बात हो गयी है।
अनुशा ने चुपचाप उसकी बात पर सर हिलाया। इस दौर में इंसान के ऊपर काम का बोझ बहुत ज्यादा हो गया था। और यह संभव नहीं था कि मानवीय शरीर लेकर वे इतना काम कर पाते। इसलिये अक्सर लोग अपने जिस्म का कुछ कुदरती हिस्सा हटवाकर वहां उच्च कोटि की मशीनें लगवा लेते थे। लेकिन इस सामने वाले इंसान ने तो हद कर दी थी। शायद ही उसके जिस्म में दिमाग को छोड़कर कोई हिस्सा कुदरती रहा हो।
‘‘शायद आप सोच रही हैं कि मैंने अपने मानव रूप की पहचान को बिलकुल ही क्यों मिटा दिया है।’’ वह व्यक्ति शायद सामने वाले के दिमाग को भी पढ़ सकता था।
‘‘जी हां। मगर!’’ अनुशा ने कुछ कहना चाहा मगर उस व्यक्ति ने हाथ उठाकर उसे रोक दिया।
‘‘मैं तुम्हें अपनी कहानी इसलिये सुना रहा हूं क्योंकि इस कहानी का सम्बन्ध तुम्हारी जाॅब से है।’’
अनुशा ने हैरत से उसे देखा।
‘‘तुम्हें मालूम है कि आजकल हर इंसान को साईबोर्ग बनने की सनक सवार है। लेकिन मेरे साथ ऐसा मजबूरी में हुआ है। क्योंकि मेरी पिछली कई पुश्तों ने चूंकि अपने को साईबोर्ग बनाकर कुदरती तौर पर अधूरा बना लिया था इसलिए मैं पैदा ही अधूरा हुआ। और मेरे जिस्म को मुकम्मल किया गया मशीनों के द्वारा।’’
‘‘ओह!’’ अनुशा ने एक गहरी साँस ली।
‘‘और मेरी शादी भी एक अधूरी औरत से की गयी। जो मेरी तरह ही जिस्मानी तौर पर विकलांग है और मशीनों के द्वारा उसे कम्पलीट किया गया है।’’
अनुशा को वाकई यह जानकर दुःख पहुंचा था, कि वह एक विकलांग जोड़े से मिल रही थी। लेकिन साथ ही उसे रश्क़ भी था क्योंकि यह जोड़ा एक भारी भरकम कंपनी का मालिक था।
‘‘अब तुम सोच रही होगी कि मेरी इस कहानी का तुम्हारी जाॅब से क्या सम्बन्ध?’’
‘‘ज..जी हां सर।’’ अनुशा ने गड़बड़ा कर कहा।
‘‘बात ये है कि मेरी पत्नी का भीतरी जिस्म भी काफी कुछ मशीनी है। और डाक्टरों ने उसका चेकअप करने के बाद साफ कहा है कि अगर उसने अपने गर्भ में हमारे बच्चे को रखा तो वह बच्चा भी विकलांग पैदा होगा।’’
‘‘ओह!’’
‘‘इसलिए हम अपने बच्चे के लिये ऐसी कोख चाहते हैं जो पूरी तरह कुदरती हो। और यह कोख हमें आप प्रदान कर सकती हैं मिस अनुशा।’’ उसने अपनी आँखें अनुशा के ऊपर गड़ा दीं और अनुशा एकदम से हड़बड़ा गयी।
‘‘म..मैं!’’
‘‘हाँ। हमारे आफिस की एक्सरे मशीनों ने आपके जिस्म की जाँच की है। और उसमें कुछ भी मशीनी नही है। अगर आप हमारा आफर स्वीकार कर लेती हैं तो हम आपको इसके लिये मुंहमांगी कीमत देने के लिये तैयार हैं क्योंकि हम नहीं चाहते कि कैमरून स्टेट का वारिस विकलांग हो।’’ कहते हुए उसने जेब से एक प्लास्टिक कार्ड निकाला और उसे अनुशा के सामने रख दिया।
‘‘इस कार्ड के ज़रिये आप किसी भी बैंक से मेरे एकाउंट से कोई भी रकम निकाल सकती हैं। उतनी बड़ी, जितनी कि आप चाहें। क्योंकि मैं जानता हूं कि अभी आप सिर्फ बीस वर्ष की हैं। ऐसे में किसी और के बच्चे को गर्भ में रखने के लिये आपको काफी समझौते करने पड़ सकते हैं। और इसके लिये निःसंदेह आप बड़ी से बड़ी रकम की हक़दार हैं।’’ उसने अनुशा की आँखों में झांका।
कुछ पल लगे अनुशा को फैसला करने में।
‘‘ठीक है। मुझे यह आफर मंजूर है।’’ अनुशा ने कार्ड उठाकर अपने पर्स में रख लिया।
कैमरून की आधी मशीनी और आधी मानवीय आँखों में चमक आ गयी थी।
-------
उस समय मौजूद निहायत मामूली तकनीक द्वारा कैमरून व उसकी पत्नी का ज़ायगोट अनुशा के गर्भ में शिफ्ट कर दिया गया। और बच्चा अनुशा के गर्भ में आकार पाने लगा। फिर नौ महीने बाद वह समय भी आया जब उसने प्यारे से गोल मटोल बच्चे को जन्म दिया। कैमरून की ख्वााहिश पर यह नार्मल डिलेवरी हुई थी। वरना उस समय तो एकाध के अलावा सभी औरतों की च्वाइस सीज़ेरियन ही होती थी।
अनुशा ने बच्चे की तरफ नज़र की और फिर मानो उसपर से नज़र हटाना ही भूल गयी। माँ बनने के अनूठे एहसास ने उसके अन्दर एक रोमाँच सा भर दिया था। उसने बच्चे को गोद में उठा लिया और बेतहाशा उसपर अपना प्यार लुटाने लगी।
अचानक उसे लगा किसी ने सुहावने सपने से उसे जगा दिया हो। क्योंकि दरवाज़ा खोलकर कैमरून अपनी पत्नी के साथ वहाँ दाखिल हो रहा था।
‘‘कैसी हो अनुशा!’’ कैमरून ने नर्म स्वर में पूछा।
‘‘ठीक हूं।’’ अनुशा ने सर हिलाया।
‘‘फारिया, ये हमारा बच्चा है।’’ अनुशा की गोद में विराजमान बच्चे की तरफ इशारा करके कहा कैमरून ने अपनी पत्नी से।
‘‘मेरा बच्चा।’’ फारिया आगे बढ़ी और उसने अनुशा की गोद से बच्चे को उठा लिया।
अभी तक आराम से सोया हुआ बच्चा अचानक जोर जोर से रोने लगा। मानो उसे एहसास हो गया था कि वह मानव की बजाय किसी मशीनी गोद में पहुंच गया है। फारिया ने उसे बहलाने की कोशिश की लेकिन बच्चा किसी भी तरह चुप नहीं हो रहा था।
‘‘इसे मुझे वापस दे दीजिए।’’ अनुशा ने उसे लेने के लिये हाथ बढ़ाया लेकिन फारिया बच्चे को लिये हुए उससे दूर हट गयी।
यह मेरा बच्चा है। इसे मेरी गोद में रहने की आदत डालनी ही पड़ेगी। फारिया ने सख्त लहजे में कहा। अनुशा ने दुःखी नज़रों से कैमरून की तरफ देखा। कैमरून शायद सिचुएशन समझ गया था।
‘‘फारिया, अभी बच्चे को अनुशा को दे दो। इसे भूख लगी है। और इसकी ये ज़रूरत फिलहाल तुम पूरा नहीं कर सकतीं।’’
फारिया ने दुःखी नज़रों से कैमरून की तरफ देखा और बच्चे को वापस अनुशा को थमा दिया।
-------
शेष अगले भाग में....
3 comments:
अच्छी लग रही है। अगले भाग का इन्तजार है।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " आगे ख़तरा है - रविवासरीय ब्लॉग-बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
अगले भाग की प्रतीक्षा...
Post a Comment