Friday, April 17, 2015

लखनऊ व मुंबई के जाने माने फिल्म निर्देशक शराफत खान का निधन


मेरे गहरे दोस्त लखनऊ व मुंबई के जाने माने फिल्म निर्देशक शराफत खान नहीं रहे। दिनांक 17 अप्रैल 2015 को प्रातः तीन बजे 60 साल की आयु में उन्होंने लाॅरी कार्डियोलोजी, लखनऊ में अंतिम साँस ली। शराफत खान एक ऐसा व्यक्तित्व था जिससे उन्हें जानने वाला हर व्यक्ति प्यार करता था। शराफत खान एक कुशल निर्देशक होने के साथ कर्मठ कलाकार भी थे और साथ में बहुत अच्छे इंसान थे। मुख्य असिस्टेंट निर्देशक के तौर पर उनकी प्रमुख फिल्में हैं एबीसीएल की तेरे मेरे सपने, तोहफा मोहब्बत का, गूंज, पत्तों की बाज़ी, खुले आम, सात साल बाद, राजू दादा, मुझे शक्ति दो इत्यादि। साथ ही उन्होंने काली, ज़ोहरा महल, माटी, साँची प्रीतिया, पीछा करो, बैरिस्टर विनोद इत्यादि सीरियलों में भी निर्देशन कार्य किया। स्वतन्त्र निर्देशक के तौर पर उन्होंने रंग ढंग सीरियल का निर्माण किया जो कुछ कारणवश टेलीकास्ट नहीं हो सका। खराब हालात से वे हमेशा जूझते रहे लेकिन मरते दम तक हार नहीं मानी। फिल्म लाइन में कदम जमाने का इच्छुक लखनऊ का हर कलाकार शराफत खान को ज़रूर जानता था क्योंकि वे सभी की मदद खुले दिल से करने को हर समय तत्पर रहते थे। 

लखनऊ रंगमंच को भी उन्होंने अपने अछूते व नये विचारों द्वारा नयी दिशा दी। लखनऊ में उनके निर्देशित प्रमुख नाटक रहे - पागल बीवी का महबूब, माडर्न हातिमताई, ऊंची टोपी वाले, दिल की दुकान, ड्रैकुला, कहानी परलोक की, हाय ये मैली हवा, चोर चोर मौसेरे, बिच्छू, अनवरिया, माडर्न दामाद, नस्सो की तौबा इत्यादि। इनमें से पागल बीवी का महबूब, माडर्न हातिमताई, ऊंची टोपी वाले, कहानी परलोक की, हाय ये मैली हवा, चोर चोर मौसेरे का लेखन मैंने किया था। कुछ नाटक साइंस फिक्शन थे जो कि नाटक की दुनिया में एक नया प्रयोग था। और इस प्रयोग को शराफत खान के निर्देशन ने बखूबी सफल किया। वरना शायद मेरे ये नाटक कभी स्टेज का मुंह न देख पाते। मेरे लेखन को हमेशा शराफत खान ने प्रोत्साहित किया । उनसे जब भी मेरी मुलाकात होती थी दिल में हमेशा कुछ नये क्रियेशन के विचार जागृत हो जाते थे। मेरे लेखन व उनके निर्देशन ने शहर को कुछ अच्छी टेली फिल्में भी दीं जिनके नाम है, ‘हाय ये मैली हवा’, ‘ये सच है’, ‘अनजान रिश्ते’, ‘अधेरों की जंग’, ‘खामोश! अर्थी उठती है’ और ‘मौला तेरी शान’।

शहर की कई नाट्य संस्थाओं इम्पैक्ट विजुअल्स, अवध कम्बाइंड नाट्य अकादमी, झनकार सोसाइटी, मोनालिसा आर्टस इत्यादि के साथ वे गहराई से जुड़े रहे और स्वयं भी दो संस्थाओं मून आर्टस एवं माज़िन आर्टस के संस्थापक रहे। शराफत खान अपने कलाकारों पर पूरी मेहनत करते थे। और जब तक पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो जाते थे लगातार रिहर्सल कराते थे। अपने काम में ऐसा खो जाते थे कि न उन्हें खाने का होश रहता था न पीने का। उनके द्वारा तराशे हुए अनेकों कलाकार आज मुंबई में अच्छा मुकाम हासिल कर चुके हैं। अरशद वारसी, सूरज व चन्द्रचूड़ सिंह जैसे कई कलाकारों को ब्रेक देने वाले निर्देशक शराफत खान ही थे।

No comments: