Tuesday, February 11, 2014

नरबल का रहस्य - दूसरा अंतिम भाग (बाल विज्ञान कथा)

-ज़ीशान हैदर ज़ैदी  

''क...कौन हो तुम? घबराये हुए रवि के मुंह से अनायास ही निकला। 
''इतनी जल्दी भूल गये! अभी तो तुम मुझसे खेल रहे थे।" वह अपनी भयानक आवाज़ में बोला। 
''ल..लेकिन, वह तो कम्प्यूटर गेम था। और उसमें मैंने तुमको मार दिया था।" 

''वह कम्प्यूटर गेम नहीं मुझे इस दुनिया में लाने का तरीका था। उस गेम के बनते समय अन्दर हमने कुछ ऐसे बदलाव कर दिये हैं कि जैसे ही कोई उसके द्वारा नरबल को मारता है, वह नरबल इस दुनिया में प्रवेश कर जाता है।"

''लेकिन वह गेम तो जापान की एक कंपनी ने बनाया है?" रवि ने अविश्वास के भाव में कहा।
''हाँ। गेम उसी ने बनाया है। लेकिन उस कंपनी को भी नहीं मालूम कि उसके गेम में एक अज्ञात दुनिया के वासियों ने अपने मनमाफिक बदलाव कर दिये हैं।" 

''तुम इस दुनिया में आकर क्या करना चाहते हो?" नरबल को सामने देखकर रवि की सिटटी पिटटी गुम थी।

''मैं इस दुनिया से तुम जैसे पृथ्वीवासियों को अपनी दुनिया में ले जाकर एक खास जगह बसाना चाहता हूं। वह एक ऐसी जगह है जैसे कि तुम्हारी पृथ्वी पर चिडि़याघर। जिसमें हर तरह के जानवरों के नमूने तुम लोग इकटठा करते हो। इसी तरह हम लोग हर तरफ घूम घूमकर ऐसी जातियों के नमूने इकटठा कर रहे हैं जो विकास में हमसे कमतर हैं। और अब तुम मेरे साथ चलने के लिये तैयार हो जाओ।" कहते हुए उसने रवि को घूरा। 

अब रवि के होश पूरी तरह गुम हो चुके थे। नरबल से बचने का कोई रास्ता उसकी समझ में नहीं आ रहा था। ये क्या मुसीबत थी। नरबल उसे अपनी दुनिया के चिडि़याघर में रखने जा रहा था। फिर उन लोगों के बच्चे उन्हें जानवरों की तरह देखते और तालियां पीटकर खुश होते।

''नहीं, मैं कहीं नहीं जाऊंगा।" रवि चीख पड़ा।

''अब तुम्हारी कोई मरज़ी नहीं चलने वाली। कहते हुए नरबल ने अपने हाथ में पकड़ा अजीब सा हथियार रवि की ओर किया। और उसमें से अजीब सी रस्सी निकलकर रवि के जिस्म से लिपटने लगी। 
रवि ने उससे बचने की कोशिश की लेकिन जितना वह उससे बचने की कोशिश कर रहा था रस्सी उतनी ही ज्यादा उसके चारों तरफ कसती जा रही थी।

''प्लीज़ मुझे मत ले जाओ। मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूं। मेरे मम्मी डैडी मेरे बगैर जी नहीं पायेंगे।" रवि उससे विनती कर रहा था लेकिन नरबल के ऊपर कोई असर नहीं हो रहा था। अब वह कमरे के दरवाज़े की ओर बढ़ रहा था। इसी के साथ रवि को भी उसी दिशा में ज़बरदस्ती बढ़ना पड़ रहा था। क्योंकि रस्सी उसे बलपूर्वक खींच रही थी। 

नरबल ने कमरे का दरवाज़ा खोला और अब सामने दिख रही गैलरी में अपने कदम बढ़ाये। 
''रुक जाओ। वरना ...!" अचानक सामने से आवाज़ आयी। 

रवि ने खुश होकर देखा। क्योंकि ये आवाज़ उसके डैडी की थी। उसने देखा कि उसके डैडी एक अन्य स्मार्ट व्यक्ति के साथ नरबल के रास्ते में खड़े हुए थे। 

उस व्यकित के हाथ में एक अजीब सा हथियार था, ठीक किसी इंजेक्शन की सीरिंज की तरह, और उस हथियार का रुख नरबल की तरफ था।

''अब मुझे कोई नहीं रोक सकता। मैं इस लड़के को ले जा रहा हूं।" कहते हुए नरबल आगे बढ़ा। 

अचानक डैडी के साथ खड़े हुए व्यक्ति ने अपने हथियार का बटन दबा दिया। दूसरे ही पल उस सीरिंज नुमा हथियार से पानी जैसे किसी लिक्विड की फुहार निकली थी। जैसे ही वह फुहार नरबल पर पड़ी वह आग पर रखे घी की तरह पिघलने लगा। साथ ही वह चीख चिल्ला रहा था। 

और फिर कुछ ही देर बाद वहाँ नरबल का नामोनिशान नहीं था बल्कि थोड़ा सा पानी जैसा लिक्विड ज़मीन पर पड़ा दिखाई दे रहा था। अब डैडी के पास खड़े व्यक्ति ने सीरिंज नुमा हथियार का रुख रवि की तरफ किया और बटन एक बार फिर दबा दिया। 

रवि ने डर कर अपनी आँखें बन्द कर लीं। जैसे ही लिक्विड रवि के ऊपर गिरा, एक अजीब सी ठंडक रवि को अपने पूरे जिस्म में महसूस हुई। वह बुरी तरह काँप रहा था।

''रवि ... रवि बेटे। मेरे रवि को क्या हो गया है।" डैडी की परेशानी भरी आवाज़ सुनकर उसने आँखें खोल दीं। 
लेकिन यह क्या? यहाँ तो दृश्य ही बदला हुआ था। वह तो किसी हासिपटल के बेड पर मौजूद था। और सामने वही स्मार्ट सा व्यक्ति हाथ में सीरिंज लिये हुए मौजूद था। दरअसल वह उस अस्पताल का डाक्टर था।

''म..मैं कहाँ हूं?" उसने कमज़ोर आवाज़ में कहा।

''रवि बेटे। तू हास्पिटल में है। तू रात को कम्प्यूटर पर काम करते करते बेहोश हो गया था। तो हम तुझे यहाँ ले आये।" उसके डैडी ने बताया।

''ओह। तो इसका मतलब नरबल सिर्फ कम्प्यूटर गेम के अन्दर ही था। बाहर नहीं आया था।" रवि ने सुकून की गहरी साँस ली।

''क्या मतलब? ये नरबल का क्या किस्सा है?" डैडी ने चौंक कर पूछा। जवाब में रवि ने पूरी कहानी सुनायी।

''दरअसल यही है असली समस्या। इस बार डाक्टर ने डैडी को मुखातिब किया, ''रवि को कम्प्यूटर गेम्स एडिक्शन हो गया है। यानि एक तरह का सिण्ड्रोम, जो कम्प्यूटर गेम्स को बहुत ज्यादा खेलने से होता है। ये बहुत खतरनाक है जिसमें इंसान अपनी पर्सनालिटी भूलकर आभासी दुनिया में रहने लगता है।"

''मैंने कई बार मना किया कि कम्प्यूटर का ज़रूरत भर इस्तेमाल किया करो। लेकिन मेरी बात मानी ही नहीं जाती।" डैडी ने परेशानी भरे लहजे में कहा।

''देखो रवि बेटे। कम्यूटर गेम्स में जब तुम हारते या जीतते हो तो वो सिर्फ नकली हार या जीत होती है। लेकिन असली जिंदगी में जीतने के लिये तुम्हें असली हीरो बनना होगा। और यह तभी मुमकिन है जब तुम शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों मे शक्तिशाली बनो।" डाक्टर साहब ने रवि को समझाया।

''और यह तभी हो सकता है जब तुम शारीरिक खेल जैसे कि फुटबाल या हाकी वगैरा खेलो। सुबह की ठंडी ताज़ी हवा में जागिंग करो। इससे तुम्हारा दिमाग भी खुलेगा और शरीर भी मज़बूत होगा। जबकि कम्प्यूटर गेम्स की अधिकता तुम्हें शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों में ही कमज़ोर कर देती है।" डैडी ने भी समझाया।

रवि ने समझने के अंदाज़ में सर हिलाया, ''आप ठीक कहते हैं। आज से कम्प्यूटर गेम्स बन्द। मेरी समझ में आ गया है कि ये सिर्फ सेहत को बिगाड़ते हैं, बनाते नहीं।"

रवि की बात पर रवि के डैडी ने सुकून की साँस ली। 

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यह कोई अंजान दुनिया थी। जिसका पता पृथ्वी वासियों को हरगिज़ नहीं था। और इस दुनिया में ऐसे बेशुमार लोग इधर उधर घूम रहे थे जिनका हुलिया नरबल जैसा था। उन ही में से एक व्यक्ति अपने बादशाह के सामने सर झुकाये खड़ा हुआ था। 

''तुम्हें उस पृथ्वीवासी लड़के को परेशान नहीं करना चाहिए था। ऐसा करके तुमने हमारी दुनिया के नियम को तोड़ा है।" 

''मैं माफी चाहता हूं सम्राट। लेकिन हम लोग उन पृथ्वीवासियों से बहुत परेशान है। जब वो कम्प्यूटर गेम्स खेलते हैं तो हम लोग बहुत ज्यादा डिस्टर्ब हो जाते हैं।" उस व्यक्ति ने सर झुकाकर कहा। 

''हाँ, परेशानी हम सब को होती है। लेकिन इसके बाद भी हम उनकी दुनिया में कोई दखलअंदाज़ी नहीं कर सकते। यह नियम विरुद्ध है।" सम्राट ने सख्ती से कहा। 

''मैं माफी चाहता हूं। आइंदा आपको कोई शिकायत नहीं मिलेगी।" 
''ठीक है! जाओ इसबार माफ किया। आइंदा ऐसा हरगिज़ नहीं करना।" 

''शुक्रिया सम्राट। वैसे भी वह लड़का अब कम्प्यूटर गेम्स खेलना बन्द कर चुका है।" उस व्यक्ति ने सम्राट के सामने सर झुकाया और फिर बाहर निकल गया।  

--समाप्त--

2 comments:

Dayanand Arya said...

संदेश देने का अच्छा तरिका था ।

Virendra said...

Nice story.