Monday, February 10, 2014

नरबल का रहस्य - भाग 1 (बाल विज्ञान कथा)

-लेखक : ज़ीशान हैदर ज़ैदी  

अपने सामने मौजूद उस खतरनाक दैत्य को मारने के लिये रवि ने फुर्ती के साथ गन सीधी की। गन से पीले रंग की आग निकली और सामने मौजूद दैत्य उसकी आग में भस्म हो गया। 

''याहू!" रवि ने अपने हाथों को हिलाकर खुशी का नारा लगाया, ''बस अब आखिरी दरवाज़ा और उसके बाद कामयाबी मेरी मुटठी में होगी। 

आखिरी दरवाज़ा धीरे धीरे खुल रहा था। 

दरवाज़ा खुला और इसी के साथ ताबड़तोड़ अन्दर से गोलियां चलने लगी। अगर रवि ज़रा भी चूकता तो गया था काम से। उसका बचना बहुत ज़रूरी था। क्योंकि वह उन पचास बच्चों की उम्मीदों का सहारा था जो नरबल की क़ैद में थे।


नरबल निहायत खतरनाक राक्षस था और उसकी प्यास छोटे बच्चों के खून से बुझती थी। और इस वक्त भी पचास बच्चे उसकी कैद में मौजूद थे। जिनमें से हर रोज़ कम से कम दो बच्चे उसकी खून की प्यास की भेंट चढ़ जाते थे। 

लेकिन आज नरबल के सितारे गर्दिश में थे। क्योंकि रवि ने उसके रचे हुए पूरे चक्रव्यूह को पार कर लिया था। और अब मुकाबला आमने सामने का था। गोलियों से बचते हुए रवि ने अपनी गन से फायर किया और नरबल के हाथ में मौजूद गन के परखच्चे उड़ गये। 

लेकिन यह क्या? अब नरबल के हाथों में एक वज्र जैसा हथियार नज़र आ रहा था। उस हथियार को नरबल ने रवि की ओर किया और उसमें से खतरनाक रंग की नीली किरणें निकलीं। रवि ने फुर्ती के साथ अपने को साइड में किया। 

वह किरणें पीछे मौजूद दीवार से टकराईं और पूरी दीवार भाप बनकर उड़ गयी। इस का मतलब कि नरबल के हाथ में मौजूद हथियार निहायत खतरनाक था। रवि ने उसपर अपनी गन से फायर किया। गन से निकलने वाली किरणें नरबल के जिस्म से टकराईं। लेकिन नरबल पर कोई असर नहीं हुआ। एक किरण नरबल के वज्र पर भी पड़ी लेकिन उसका भी कुछ नहीं बिगड़ा। 

अब रवि अपने को असहाय महसूस कर रहा था। नरबल धीरे धीरे उसकी ओर बढ़ रहा था। लेकिन उसे मारने को कोई तरीका उसकी समझ में नहीं आ रहा था। 

'अगर किसी तरह उसका वज्र मेरे हाथ में आ जाये तो...', उसने सोचा और चारों तरफ नज़र दौड़ायी। फिर एक तरकीब उसकी समझ में आयी। इस बार उसने सीधे नरबल पर फायर करने की बजाये उसके पैरों के पास ज़मीन पर फायर किया। इस बार परिणाम उसकी आशा के अनुरूप था। 

उसके फायर करने से ज़मीन पर एक बड़ा सा गडढा बन गया था, नरबल के ठीक सामने। नरबल को इसका एहसास तक नहीं हुआ और वह पहले की तरह रवि को निशाने पर रखकर आगे बढ़ा चला आया।

जैसे ही उसका पैर गडढे में पहुंचा उसका बैलेंस बिगड़ गया और वह औंधे मुंह ज़मीन पर आ गया। वज्र नुमा हथियार उसके हाथ से छूट गया। फिर उस हथियार को उठाना रवि के लिये कुछ मुशिकल नहीं था। 
जैसे ही हथियार रवि के हाथ में आया रवि ने बिना देर किये उसका रुख नरबल की ओर करके फायर झोंक दिया। दूसरे ही पल नरबल के परखच्चे उड़ चुके थे। 

नरबल के मरने के साथ उसका तिलिस्म टूट चुका था। जिस कैदखाने में बच्चे बन्द थे उसका दरवाज़ा खुद ब खुद खुल गया। और तमाम बच्चे खुशियां मनाते हुए रवि के पास इकटठा होने लगे। 

और इसी के साथ उसके सामने एक संदेश चमकने लगा - 'बधाई हो। आप इस खेल को जीत गये हैं। क्या आप इस खेल को दोबारा खेलना चाहते हैं?' 

ये संदेश उसकी कम्प्यूटर स्क्रीन पर चमक रहा था। रवि कम से कम एक सौ पच्चीस बार यह गेम खेलने के बाद आज पहली बार जीता था। उसने कम्प्यूटर की साइड पर मौजूद घड़ी देखी। रात का एक बज चुका था। 

'उफ!' इस गेम को खेलने में समय का पता ही नहीं चला। 

जब वह कम्प्यूटर पर यह गेम खेलने बैठा था उस वक्त आठ बजे थे। यानि पूरे पाँच घंटे लगातार खेलने के बाद यह खेल खत्म हुआ था। लेकिन उसे खुशी इस बात की थी कि आज उसने इस गेम को जीत लिया है। उसके हाई स्कूल के इग्ज़ाम खत्म हो चुके थे और अब उसका ज्यादातर वक्त कम्प्यूटर गेम्स खेलने में बीत रहा था।

'अब सोना चाहिए।' उसने इरादा किया और कम्प्यूटर बन्द कर दिया। फिर वह लाइट बन्द करने के लिये उठा। उसने खिड़की से बाहर देखा तो आसपास के तमाम फ्लैटस की लाइटस बन्द हो चुकी थीं। सिर्फ उसी के कमरे की लाइट जल रही थी। उसने लाइट बन्द की और चारों तरफ घुप्प अँधेरा छा गया। 

लेकिन नहीं, पूरी तरह अँधेरा नहीं छाया था। बलिक उसके कमरे में एक हल्की सी रोशनी फैली हुई थी। हरे रंग की। 

'ये रोशनी किधर से आ रही है? मैंने तो सारी बत्तियां बुझा दी हैं?' उसे आश्चर्य हुआ। रोशनी के स्रोत की तलाश में उसने इधर उधर नज़रें दौड़ायीं। फिर उसने देखा कि रोशनी उसके कम्प्यूटर के मानिटर से निकल रही है। 
'लेकिन कम्प्यूटर तो मैंने बन्द कर दिया था?' शायद वह मानिटर आफ करना भूल गया था। 

वह फिर से कम्प्यूटर के पास पहुंचा। उसने देखा पूरा कम्प्यूटर बन्द था लेकिन मानिटर खुला हुआ था। और उस मानिटर के ऊपर नरबल की एक छोटी सी तस्वीर नज़र आ रही थी। वह नरबल जिसे अभी उसने मारकर गेम को जीता था। 

यह आश्चर्य की बात थी कि कम्प्यूटर बन्द होने के बावजूद उसकी स्क्रीन पर नरबल की तस्वीर नज़र आ रही थी। 

'हो सकता है गेम के साफ्टवेयर में कोई ऐसी बात हो। उसने मानिटर का बटन उसे आफ करने के लिये दबाया। 
लेकिन यह क्या? आफ करने के बावजूद मानिटर पहले की तरह चमक रहा था। और साथ में नरबल की तस्वीर भी। और न सिर्फ चमक रही थी बल्कि उसका आकार भी धीरे धीरे बड़ा हो रहा था। फिर उसका आकार इतना बड़ा हो गया कि पूरी स्क्रीन पर छा गया। 

लेकिन आकार का बढ़ना फिर भी नहीं रुका। बलिक अब वह तस्वीर इतनी बड़ी हो गयी थी कि मानिटर के बाहर निकल आयी थी। 

रवि घबरा कर कई कदम पीछे हट गया। 'य..ये क्या हो रहा है?' 

अब नरबल की तस्वीर इतनी बड़ी हो गयी थी कि पूरा कम्प्यूटर उसके पीछे छुप गया। 

'ये क्या हो रहा है?' रवि की कुछ समझ में नहीं आ रहा था। तस्वीर का आकार बढ़ता ही जा रहा था। कम्प्यूटर व उसकी मेज़ सभी उसके पीछे छुप चुके थे। फिर बढ़ते बढ़ते उसका सर कमरे की छत से टकराने लगा। 
अब रवि अपने सामने नरबल को उसके पूरे साइज़ में देख रहा था। जिंदा, अपने पूरे भयानकपन के साथ। 

''हो हो हो।" वह एक भयानक हंसी हंस रहा था।

.........क्रमशः 

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