Monday, July 15, 2013

मायावी गिनतियाँ : भाग 8


घण्टी की आवाज पर मिसेज वर्मा ने उठकर दरवाजा खोला। सामने उनके पड़ोसी मलखान सिंह मौजूद थे। हाथ में मिठाई का डब्बा लिये हुए।
''नमस्कार जी। लो जी मिठाई खाओ।" मलखान सिंह ने जल्दी से मिठाई का डब्बा मिसेज वर्मा की तरफ बढ़ाया।
मिसेज वर्मा ने इस तरह मलखान सिंह की तरफ देखा मानो उनकी दिमागी हालत पर शक कर रही हो। 

किसी को एक गिलास पानी भी न पिलाने वाले मक्खीचूस मलखान सिंह के हाथ में जो मिठाई का डब्बा था उसमें काफी मंहगी मिठाइयां थीं।
''आपके यहां सब ठीक तो है?" मिसेज वर्मा ने हमदर्दी से पूछा।
''अरे अपने तो वारे न्यारे हो गये। और सब तुम्हारे सुपुत्र की वजह से हुआ है।" मलखान जी ख़ुशी से झूम रहे थे।

''मैं कुछ समझी नहीं। ऐसा क्या कर दिया रामू ने।" चकराकर पूछा मिसेज वर्मा ने।
''उसने परसों मुझे राय दी कि जॉली कंपनी के शेयर खरीद लो। फायदे में रहोगे। मैंने खरीद लिये। आज तीसरे दिन उसके शेयरों के भाव तीन गुना बढ़ चुके हैं। मैं तो मालामाल हो गया। कहाँ है वो, मैं उसको अपने हाथों से मिठाई खिलाऊँगा।"

''उसने जरूर आपको राय दी होगी। इधर कई दिनों से उसका दिमाग कुछ गड़बड़ चल रहा है। मैं तो उनसे भी कह चुकी हूं लेकिन वो कुछ सुनते ही नहीं।"
''बहन जी, आपके लड़के में जरूर कोई पुण्य आत्मा घुस गयी है।"
''मतलब उसके अंदर कोई भूत प्रेत घुस गया है। भगवान, तूने मुझे ये दिन भी दिखाना था।" फिर मिसेज वर्मा अपनी ही परेशानी में पड़ गयी और मलखान सिंह मौका देखकर वहां से खिसक लिए।
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बंदर रामू इस समय एक पाइप के अंदर दुबका बैठा था। उसका पूरा जिस्म फोड़े की तरह दर्द कर रहा था। उस नासपीटे बंदरिया के आशिक ने बुरी तरह उसकी पिटाई की थी और फिर दोनों बाहों में बाहें डाले वहां से कूद कर नज़दीक के पार्क में निकल गये थे। वह वहीं आंसू बहाता हुआ बैठा रह गया था। गणित से जी चुराने की इतनी बड़ी सजा उसे मिलेगी, यह तो उसने सोचा ही नहीं था। 

जब उसे थोड़ा सुकून हुआ तो उसने पाइप के अंदर झांका। काफी लम्बा पाइप मालूम हो रहा था। उसे काफी दूर पर रौशनी दिखाई दी। 'यानि वह पाइप का दूसरा सिरा है। उसने सोचा और धीरे धीरे दूसरी तरफ बढ़ने लगा।
जल्दी ही वह दूसरे सिरे पर पहुंच गया। यह सिरा एक गली में खुलता था। गली के उस पार एक और मकान दिखाई दे रहा था।

उसने छलांग लगाई और उस मकान की छत पर पहुंच गया।
''यह मकान तो जाना पहचाना लगता है।" उसने चारों तरफ देखा, दूसरे ही पल उसके दिमाग को झटका सा लगा, ''अरे ये तो मेरा ही घर है।
उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। उसका मन चाहा दौड़कर नीचे जाये और अपने मम्मी पापा से लिपट जाये।

लेकिन दूसरे ही पल उसे ध्यान आ गया कि वह इस समय रामू नहीं बल्कि एक बंदर है और इस हालत में दुनिया की कोई ताकत उसे नहीं पहचान सकती। उसके माँ बाप भी नहीं। उसकी खुशियों पर ओस पड़ गयी और वह ठण्डी साँस लेकर वहीं कोने में बैठ गया।
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