Tuesday, July 9, 2013

मायावी गिनतियाँ : भाग 2

अचानक उसे लगा, पीछे से किसी ने उसकी साइकिल रोक ली है। उसने घूमकर देखना चाहा, लेकिन उसी समय उसकी गर्दन भी किसी ने पकड़ ली।  कोई  उसकी गर्दन दबा रहा था। धीरे धीरे उसपर बेहोशी छा गयी।
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इस छोटे से कमरे में तेज नीली रोशनी फैली हुई थी। इस रोशनी में चार बच्चे आसपास खड़े हुए किसी गंभीर चिंतन में डूबे थे। पास से देखने पर राज़ खुलता था कि ये दरअसल बच्चे नहीं, बौने प्राणी हैं। क्योंकि इनके चेहरे पर दाढ़ी मूंछें भी मौजूद थीं। इनके शरीर का गहरा पीला रंग सूचक था कि ये प्राणी इस धरती के अर्थात पृथ्वीवासी तो नहीं हैं।
इसी कमरे के एक कोने में रामू मौजूद था। बेहोश अवस्था में। लेकिन कमरे की सबसे ज्यादा आकर्षित करने वाली वस्तु थी, एक ताबूतनुमा शीशे का बक्सा। जिसके अंदर उन्ही चारों जैसा एक प्राणी निश्चल अवस्था में पड़ा हुआ था। 
''तो अब क्या इरादा है मि0 रोमियो? उन चारों में से एक ने वातावरण में छायी निस्तब्धता तोड़ी।
''हमें अपने सम्राट को किसी भी कीमत पर बचाना है। वरना पृथ्वी नाम के इस अंजान ग्रह पर हम ज्यादा समय तक जिन्दा नहीं रह पायेंगे।

''सारी गलती हमारे यान के आटोपायलट की थी। यहां के वायुमंडल में उतरते हुए उसने यान को पूरी तरह डिसबैलेंस कर दिया। नतीजे में हमारे सम्राट का शरीर लगभग पूरा ही नष्ट हो गया।" तीसरा व्यक्ति बोला।
''ठीक कहते हो सिलवासा। अब हमारे सम्राट के शरीर में केवल उसका मस्तिष्क ही सही सलामत बचा है। और अगर हमने देर की तो वह भी नष्ट हो जायेगा। क्यों रोमियो?" पहले वाला बोला।

''हाँ डोव। अब आगे मैडम वान को अपना हुनर दिखाना है। उन्हें जल्द से जल्द सम्राट का दिमाग उस लड़के के शरीर में ट्रांस्प्लांट कर देना है, जिसे हम जंगल में तालाब के किनारे से पकड़ कर लाये हैं।"
''ठीक है।" तीसरा व्यक्ति जो दरअसल मैडम डोव थी, बोल उठी। और फिर वे सब अपने अपने काम में जुट गये। रामू को ताबूत के बगल में लिटा दिया गया था। फिर वे मस्तिष्क ट्रांस्प्लांट के आपरेशन में जुट गये। एक तरफ रामू का सर खोला जा रहा था और दूसरी तरफ सम्राट का।

ये आपरेशन पूरे एक घण्टे तक चलता रहा। और फिर थोड़ी देर बाद सम्राट का दिमाग रामू के जिस्म में फिट हो चुका था। जबकि रामू का दिमाग अलग एक ट्रे में नजर आ रहा था।
''अब पूरा हो गया है आपरेशन। हम लड़के के दिमाग को अब नष्ट कर देते हैं।" मैडम वान ने रामू के शरीर को अच्छी तरह टेस्ट करने के बाद कहा।

''मेरे दिमाग में एक आइडिया आया है।" खिड़की से बाहर डाल पर बैठे बन्दर की ओर देखते हुए कहा रोमियो ने।
''कैसा आइडिया ?" सिलवासा ने पूछा।
''इस दिमाग को उस बन्दर में फिट करके जंगल में छोड़ देते हैं। अगर होश में आने के बाद सम्राट के दिमाग ने इस शरीर को कुबूल नहीं किया तो एक मनुष्य का दिमाग बेकार में नष्ट हो जायेगा।"
''ठीक कहते हो रोमियो।" डोव ने सहमति जताई, और छोटी सी पिस्टल निकालकर बन्दर की तरफ तान दी। उसे बेहोश करने के लिए।
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मिसेज और मिस्टर वर्मा रामू के स्कूल में मौजूद थे। उनके सामने थी प्रिंसिपल मिसेज भाटिया।
''देखिए, मैं फिर आपसे कहती हूं कि हाईस्कूल लेवेल तक के बच्चों की छुटटी ठीक दो बजे हो जाती है। उसके बाद किसी के यहां रुकने का सवाल ही नहीं पैदा होता। और आपके बच्चे रामकुमार को तो मैं अच्छी तरह जानती हूं। वो तो कभी लाइब्रेरी भी नहीं जाता।" प्रिंसिपल ने कहा।
''फिर भी आप अगर स्टाफ से एक बार पूछ लें तो...। दो घण्टे हो रहे हैं। रामू अभी तक घर नहीं पहुंचा।" मि0 वर्मा बोले। 

''उसकी तो कहीं इधर उधर जाने की भी आदत नहीं है।" स्कूल से सीधा घर ही आता है।
उसी समय वहां किसी काम से अग्रवाल सर ने प्रवेश किया। इन्हें बैठा देखकर वह इनकी तरफ घूमे।
''अच्छा हुआ आप लोग आ गये। आपका बच्चा रामकुमार गणित में बिल्कुल गोल है। अगर आपने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया तो इस साल उसका पास होना मुश्किल है।
''एक मिनट!" प्रिंसिपल ने उसे रोका, ''मि0 और मिसेज वर्मा यहां इसलिए आये हैं क्योंकि इनका लड़का दो घण्टे से घर नहीं पहुंचा।"
''ज़रूर वह किसी पार्क वगैरा की तरफ निकल गया होगा। आज मैंने उसे सजा दी थी। हो सकता है दिल बहलाने के लिए कहीं पिक्चर देखने निकल गया हो।"

''आप ऐसा करें,  प्रिंसिपल मि0 वर्मा की तरफ मुखातिब हुई, ''थोड़ी देर और अपने लड़के का इंतिजार कर लें। हो सकता है अब तक वह घर पहुंच गया हो। अगर ऐसा नहीं होता है तो हमें और पुलिस को इन्फार्म करें।"
''ठीक है।" दोनों ठंडी सांस लेकर उठ खड़े हुए। उनके चेहरे पर परेशानी की लकीरें और गहरी हो गयी थीं।
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1 comment:

Arvind Mishra said...

बहुत दिन बाद कुछ जोरदार पढने को मिला