Monday, October 29, 2012

खून का रिश्ता (भाग-2)


कुछ देर बाद राशि व पंकज दीपक कुमार की बतायी जगह पर पहुंच चुके थे और हैरानी से इधर उधर देख रहे थे। 
''आखिर दीपक कुमार ने इस पुराने टूटे फूटे किले में क्यों बुलाया है? क्या एक्सीडेंट ने उसके दिमाग पर भी असर डाला है?" पंकज ने मुंह बनाते हुए कहा। 
''वही तो मैं भी तुम्हें इतनी देर से बता रही थी कि एक्सीडेंट के बाद वह बिलकुल बदल गये हैं।"
फिर दोनों चुप हो गये क्योंकि दीपक कुमार किले के खंडहरों से निकल कर उनकी ओर आ रहा था। जल्दी ही वह उनके पास पहुंच गया। 

''क्या बात है दीपक? तुमने हमें क्यों बुलाया है?" पंकज ने पूछा।
''मैं तुम लोगों को अपने सम्राट से मिलाना चाहता हूं।" दीपक कुमार की आवाज़ पूरी तरह सपाट थी। तमाम जज़्बात से खाली। राशि और पंकज ने हैरत से एक दूसरे की ओर देखा। 
''सम्राट? ये इक्कीसवीं सदी में सम्राट कहां से पैदा हो गये? कहीं तुम हमें प्रधानमन्त्री या राष्ट्रपति से तो नहीं मिलाना चाहते?" राशि ने थोड़ा मज़ाकिया लहजे में कहा।
''मैं तुम लोगों को जिनसे मिलाना चाहता हूं वह इस महल में हैं। मेरे साथ आओ।" दीपक कुमार वापस खंडहर की ओर बढ़ गया। मन में कौतूहल लिये राशि और पंकज भी उसके पीछे चल पड़े।

जल्द ही तीनों उस तहखाने में पहुंच चुके थे जहाँ एक आदमकद मूर्ति मौजूद थी। 
''क्या तुम लोग इस मूर्ति को पहचानते हो?"
दोनों ने नहीं में सर हिलाया, फिर पंकज बोला, ''इस मूर्ति पर तो कुछ लिखा भी नहीं है। शायद यह किसी प्राचीन राजा की मूर्ति है।"
''यही हैं हमारे सम्राट।"
दीपक कुमार की बात सुनकर दोनों को पूरा यकीन हो गया कि उसका दिमाग चल गया है। 
''दीपक! आर यू ओके?" राशि ने आगे बढ़कर दीपक के कंधे पर हाथ रखा जिसे दीपक ने धीरे से हटा दिया और मूर्ति की ओर मुंह करके निहायत आदरसूचक स्वर में बोला, ''सम्राट, मैंने आपकी आज्ञा का पालन कर दिया। इन दोनों को ले आया हूं।" 

इससे पहले कि राशि और पंकज उसकी बात का समझ पाते, मूर्ति दो भागों में विभाजित हो चुकी थी और मूर्ति के बीच में वही अजनबी दिखाई दे रहा था। इस समय उसका हुलिया पूरी तरह बदला हुआ था। वह ऊपर से नीचे तक क़ीमती राजसी लिबास में था और सर पर एक मुकुट भी सुशोभित हो रहा था।
''स्वागतम राशि मौर्य और पंकज मौर्य।" उसकी आवाज़ में पता नहीं क्या बात थी कि पहले से ही डरे हुए राशि व पंकज के जिस्म में एक सिहरन सी दौड़ गयी। 
''अ...आप कौन हैं?" राशि ने डरते डरते पूछा। 
''थोड़ी प्रतीक्षा करो। मैं सब कुछ बताऊंगा। बताना ही पड़ेगा। वरना तुम लोगों को यहां बुलाने का उददेश्य कैसे पता चलेगा।" उस अजनबी सम्राट की बातें सुनकर दोनों की हैरत बढ़ती जा रही थी। आखिर वह है कौन और उसकी इनमें क्या दिलचस्पी थी?

वह अजनबी मूर्ति पर हाथ फेर रहा था जबकि उसकी आँखें शून्य को निहार रही थीं। वह मानो खुद से बातें कर रहा था, ''सन 322 ई.पू. की बात है। यानि आज से 2400 साल पहले एक लड़ाई हुई थी सम्राट धनानंद और चन्द्रगुप्त मौर्य के बीच। जिसमें सम्राट धनानंद वीरगति को प्राप्त हुए थे और भारत देश पर मौर्य वंश का शासन स्थापित हो गया था। 
नंद वंशज शूद्र थे और ऊंचे कुल वालों की आँखों में चुभते थे। अत: उन सबने इनके खिलाफ चन्द्रगुप्त का साथ दिया और ब्राह्मण कौटिल्य को तो भुलाया ही नहीं जा सकता। फिर जब नंद वंश का शासन समाप्त हो गया तो उसके वंशजों की खुलेआम हत्याएं की जाने लगी। उनके इस धरती पर समूल विनाश की योजनाएं बनने लगीं।" उसने एक गहरी साँस ली अत: राशि को बोलने का मौका मिल गया।

''ये तो इतिहास की बातें हैं। आप हमें क्यों सुना रहे हैं? इन बातों से आपसे या हम से क्या सम्बन्ध?"
''इस इतिहास से तुम लोगों का भी सम्बन्ध है और मेरा भी। क्योंकि तुम लोग मौर्य वंशज हो और मैं नंद वंशज।"
एक बार फिर राशि व पंकज के दिल अंजानी आशंकाओं से घिर गये। 'तो क्या यह व्यक्ति उनसे पुराने इतिहास का बदला लेना चाहता है?" राशि ने घूमकर देखा, दीपक कुमार एक तरफ खडा हुआ था। मौन, भावहीन और तटस्थ।

''पुराने समय में इस तरह के युद्ध आम थे, जिसमें एक जीतता था और दूसरा हार जाता था। अब उन बातों को दोहराने का कोई मतलब नहीं। न तो अब मौर्यों का शासन है न नंद वंश का। अब तो हम लोकतांत्रिक देश में हैं जहाँ सब बराबर हैं।" उस अजनबी की मंशा भांपते हुए पंकज ने बात को बराबर करने की कोशिश की लेकिन शायद उस नंद वंशज ने उसकी बात ही नहीं सुनी । वह अपनी ही बात को आगे बढ़ा रहा था, ''चन्द्रगुप्त मौर्य कौटिल्य की सहायता से सम्राट धनानंद को मारकर शासक बन गया। फिर देश में नंद वंश का दमन आरम्भ हो गया। उस दमन की आग को और भड़काया सम्राट अशोक ने।
''मैं नहीं मान सकती। सम्राट अशोक द ग्रेट से महान कोई शासक ही नहीं हुआ देश में। उसने देश में शांति का साम्राज्य स्थापित कर दिया था।" राशि ने आवेश में आकर कहा।
नंद वंशज के होंठों पर एक व्यंगात्मक मुस्कान उभरी, ''शांति की स्थापना की थी उसने। लेकिन अपने दुश्मनों का पूरी तरह सफाया करने के बाद। उसने बचे खुचे नंद वंशजों की चुन चुनकर हत्या करायी और कलिंग को तो पूरी तरह मिटा दिया जो नंद वंशजों का आखिरी ठिकाना था।"

''यह गलत है। कलिंग युद्ध के रक्तपात को देखकर ही सम्राट अशोक ने अहिंसा का प्रण लिया था और युद्ध को रोक दिया था।" राशि ने उसकी बात काटी।
''युद्ध को रोका तो था लेकिन नंद वंश को पूरी तरह साफ करने के बाद।"
''मैं कहता हूं उन घटनाओं को दो हज़ार साल से ऊपर हो चुके हैं। किसी को नहीं पता वास्तव में उस समय क्या हुआ था और क्या परिस्थितियाँ थीं। न उस समय हम मौजूद थे और न ही तुम।" पंकज ने हाथ उठाकर तकरार रोकनी चाही।

''हाँ तुम लोग उस समय मौजूद नहीं थे। लेकिन मैं था उस समय।" उस अजनबी नंद वंशज के अंतिम वाक्य ने मानो वहाँ धमाका सा किया। 
''तुम...तुम उस समय थे?" राशि ने इस प्रकार उसकी ओर देखा मानो उसे उसके पागल हो जाने का पूरा यकीन हो गया है। 
''नंद वंश के राजकुमार शौर्यानन्द के साथ कलिंग राज्य की राजकुमारी दमयंती का विवाह हुआ था। और मैं उन दोनों की एकमात्र संतान महावीरानन्द हूं। मौर्य शासकों के दमन चक्र से किसी तरह बचा हुआ शाही नन्द वंश का राजकुमार।" ये मूर्ति जिसके बारे में इतिहासकार तरह तरह की अटकलें लगा रहे हैं, वास्तव में मेरे दादा सम्राट धनानंद की है।"

''तुम सिर्फ एक पागल आदमी हो। या फिर बहुत बड़े ठग। अगर महावीरानन्द नाम का कोई राजकुमार था भी तो वह दो हज़ार साल पहले ही मर खप गया होगा। क्या तुम यह कहना चाहते हो कि तुम्हारी उम्र दो हज़ार साल है?" राशि ने इस बार थोड़ा गुस्से से कहा। 
''दो हज़ार नहीं। दो हज़ार तीन सौ साल है मेरी आयु।"
''बकवास। तुम सिर्फ एक फ्राड हो।" राशि ने तैश में आकर कहा। 
''मेरी बातों का सुबूत अगर देखना है तो इस रास्ते से नीचे उतर जाओ।" कथित राजकुमार महावीरानन्द ने मूर्ति के बीच बने रास्ते की ओर संकेत किया।

एक बार फिर दोनों असमंजस में पड़ गये। यह देखकर उसने पंकज का हाथ पकड़ लिया और मूर्ति के बीच बने रास्ते की ओर बढ़ा। पंकज को ऐसा मालूम हो रहा था मानो किसी लौह मानव के हाथ उसके बाज़ू में गड़ गये हों। वह न चाहते हुए भी आगे बढ़ गया। मजबूरन राशि को भी उसके पीछे अपने कदम बढ़ाने पड़े। उन्होंने देखा मूर्ति के बीच नीचे जाने के लिये सीढि़यां मौजूद थीं। वे सभी उससे नीचे उतरते चले गये। सबसे पीछे दीपक कुमार था। नीचे घुसते ही उन्हें लगा मानो वे किसी बहुत प्राचीन प्रयोगशाला में पहुंच गये हैं। एक तरफ बहुत पुरानी दैत्याकार मशीनें दिख रही थीं तो दूसरी तरफ वैज्ञानिक प्रयोग करने के छोटे छोटे अनगिनत यन्त्र। 
''ये प्रयोगशाला उतनी ही पुरानी है जितना कि मैं।"
''यानि दो हज़ार तीन सौ साल पुरानी।" राशि ने इतने धीमे स्वर में कहा कि उसकी बात बगल में मौजूद पंकज ही सुन पाया।

''अशोक महान को पता नहीं था कि शौर्यानन्द की एकमात्र सन्तान अर्थात मैं बहुत बड़ा वैज्ञानिक हूं। बल्कि उसे तो पता ही नहीं था कि शौर्यानन्द की कोई सन्तान भी है। वास्तव में मैं बचपन ही में घर से दूर चला गया था, क्योंकि मुझे नन्द वंश की पराजय का बदला लेना था।"
''तो फिर बदला लेने के लिये तुमने बड़ी सेना इकटठा की होगी।" पंकज ने कहा। 
''मैंने पहले कोशिश की लेकिन कोई मेरा साथ देने को तैयार नहीं हुआ। फिर मैंने अपनी विधि बदल दी। अब मुझे ऐसे घातक हथियार बनाने थे जो पल भर में पूरे मौर्य वंश को तबाह व बरबाद कर दें। इसके लिये मैंने ये प्रयोगशाला बनायी और अपने जैसे विचार रखने वाले कुछ वैज्ञानिकों के साथ प्रयोगों में जुट गया। इनही प्रयोगों के बीच अचानक ही मुझे अमरत्व का सूत्र मिल गया।"

''क्या मतलब? क्या तुम कहना चाहते हो कि तुम अमर हो?" पंकज ने हैरत से कहा। 
''हाँ। मैं अमर हूं।"
''हम विश्वास नहीं कर सकते। दुनिया में जो भी आया है उसे एक न एक दिन मरना ही है।"
''तुमको मेरी बात पर विश्वास करना ही पड़ेगा। इसलिए क्योंकि अमरत्व का सूत्र प्रत्येक मनुष्य की प्रत्येक कोशिका में निहित है।"
''वह किस तरह?"
''वर्तमान शताब्दी में विज्ञान की थोड़ी भी जानकारी रखने वाला जानता है कि मनुष्य के शरीर की प्रत्येक कोशिका में एक केन्द्रक उपस्थित होता है। और उसके अन्दर उपस्थित डीएनए कुण्डली में उस शरीर का समस्त लेखा जोखा संगृहीत होता है।"
 ''हाँ। ये तो है।" राशि ने सकारात्मक रूप में सर हिलाया।

''लेकिन आज के वैज्ञानिकों को ये नहीं मालूम कि इसी डीएनए कुण्डली के एक भाग में उस मनुष्य की समस्त गतिविधियों का लेखा जोखा भी संगृहीत होता है। अर्थात उसके मस्तिष्क की स्मृति की सूक्ष्म प्रतिलिपि उसके शरीर की प्रत्येक कोशिका में उपस्थित रहती है। और अगर उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाये तो उसके शरीर की मात्र एक कोशिका लेकर उस मनुष्य को फिर से जीवित किया जा सकता है, जिसके अन्दर उसी शरीर के गुण, भावनाएं और स्मृति होगी, जिस शरीर से वह कोशिका ली जायेगी।

''मैं समझ गया।" पंकज ने एक गहरी साँस ली, ''दो हज़ार साल पहले महावीरानन्द ने कोशिका में स्मृति की खोज की। फिर जब वह बूढ़ा हुआ तो उसने अपनी कोशिका किसी खास तरीके से नये शरीर में प्रत्यारोपित कर दी, जिससे वह शरीर नया महावीरानन्द बन गया। इस तरह यह क्रम चलता रहा और महावीरानन्द आज भी जीवित है। एक नये शरीर में।"
''तुम काफी बुद्धिमान हो। महावीरानन्द ने पंकज की तरफ उंगली उठायी, ''महावीरानन्द इसी रूप में जीवित है और इसी के साथ क़ायम है नन्द वंश। वह वंश जिसके सर्वनाश का कौटिल्य ने पूरा प्रयास किया, लेकिन असफल रहा। आज उसकी आत्मा तड़प रही होगी क्योंकि नंद वंश महावीरानन्द के रूप में जीवित है। और अब यह वंश बहुत जल्द पूरी दुनिया में फैल जायेगा।"
..................(जारी है)

2 comments:

Arvind Mishra said...

बड़ा दुरूह विषय ले लिया है आपने ...चलिए आगे बढ़ते हैं !

Shah Nawaz said...

अभी तो संस्पेंस और भी बढ़ गया है... देखते हैं आगे क्या होता है....