आपरेशन थियेटर के बाहर मौजूद लोगों के चेहरों पर परेशानी व घबराहट के लक्षण दूर से देखे जा सकते थे। सभी किसी अनहोनी के भय से सहमे हुए थे। दरअसल आपरेशन थियेटर के अन्दर घर का चिराग़ जिंदगी व मौत के बीच झूल रहा था। थोड़ी देर पहले तीस वर्षीय दीपक कुमार की बाइक किसी ट्रक की टक्कर से चकनाचूर हो गयी थी और उसपर सवार दीपक को गंभीर घायलावस्था में लोगों ने अस्पताल पहुंचाया था।
थोड़ी देर बाद एक नर्स ओ.टी. से बाहर निकली, ''पेशेन्ट को एबी पाजि़टिव ब्लड ग्रुप की फौरन ज़रूरत है।
वहाँ मौजूद लोगों ने एक दूसरे की ओर देखा, फिर उनमें से दीपक का छोटा भाई बोला, ''मैं ब्लड बैंक में देखता हूं।
ब्लड बैंक ऊपर की मंजि़ल पर था। उसने रैंप की ओर कदम बढ़ाये लेकिन उसी समय एक व्यकित उसके पास आया, ''मेरे पास एबी पाजि़टिव ब्लड मौजूद है। ये लीजिए। उसने ब्लड का पाउच उनकी ओर बढ़ाया।
''लेकिन आप?" शायद आने वाला उनके लिए अजनबी था अत: इन लोगों ने उसकी ओर आश्चर्य से देखा।
''मैं ये ब्लड अपने एक रिश्तेदार के लिये ले जा रहा था जो पास के एक हास्पिटल में एडमिट थे। लेकिन अभी अभी मेरे मोबाइल पर मैसेज आया है कि उनकी मृत्यु हो गयी। इसलिए अब यह ब्लड मेरे लिये बेकार है।" उसने पाउच उनके हाथ में थमाया और खामोशी से बाहर की ओर बढ़ गया।
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समय पर दीपक कुमार के इलाज ने उसकी जान बचा ली थी। और अब डाक्टरों के अनुसार वह खतरे से बाहर था। फिर उसे जल्दी ही अस्पताल से छुटटी मिल गयी। और उस दिन दीपक कुमार के घर में एक बड़ी पार्टी का आयोजन किया गया जिसमें सभी करीबी रिश्तेदार व दोस्तआमंत्रित थे।
''भाई का बचना किसी चमत्कार से कम नहीं। वरना हम तो उम्मीद छोड़ बैठे थे।" दीपक का छोटा भाई प्रदीप कुमार एक रिश्तेदार को बता रहा था।
''ऊपर वाले ने भी हमारा साथ दिया। वरना एबी पाजि़टिव ब्लड आसानी से मिलता भी नहीं। अगर वो अजनबी हमारी मदद न करता तो शायद बहुत देर हो जाती।" दीपक कुमार की बहन अपने भाई की मंगेतर राशि मौर्या को बता रही थी। राशि मौर्या के साथ दीपक कुमार की हाल ही में मंगनी हुई थी। एक्सीडेंट की खबर सुनकर दीपक कुमार की होने वाली ससुराल से कई लोग वहां मिलने के लिये आये थे।
उधर दीपक कुमार मेहमानों से बात करते करते अचानक इस तरह चौंका जैसे उसे कुछ याद आ गया हो।
''माफ कीजिए मैं अभी आया।" उसने सामने खड़े मेहमान से कहा और एक तरफ को बढ़ गया।
थोड़ी देर बाद उसकी मोटरसाइकिल तेज़ रफ्तार के साथ शहर की एक सड़क नाप रही थी।
जल्दी ही वह शहर के बीच मौजूद एक खंडहरनुमा बहुत पुरानी इमारत के पास पहुंच गया। ये एक टूटा फूटा बहुत पुराना किला था जहाँ रात के वक्त सन्नाटा ही रहता था। दिन में ज़रूर इक्का दुक्का पर्यटक यहाँ भूले भटके पहुंच जाते थे। क्योंकि ये इमारत दुनिया के पर्यटन मैप पर नहीं थी।
उसने बाइक बाहर ही छोड़ी और किले के अन्दर घुसता चला गया। चारों तरफ घना अँधेरा छाया हुआ था, लेकिन हैरत की बात ये थी कि दीपक कुमार तेज़ी के साथ कुछ इस तरह चल रहा था मानो तेज़ रोशनी फैली हो। उसकी चाल भी कुछ बदली बदली सी लग रही थी मानो कोई हवा में तैर रहा हो।
किले के अन्दर बने विभिन्न विशालकाय कमरों को पार करता हुआ वह जल्दी ही एक ऐसे कमरे में पहुंचा जिसमें नीचे जाने के लिये सीढि़यां बनी हुई थीं। जो दरअसल किसी तहखाने में जाने का रास्ता था। वह सीढि़यों से नीचे उतरने लगा।
जहाँ किले के बाहरी खंडहर अँधेरे में डूबे हुए थे, वहीं उसके उलट इस तहखाने में हल्की नीली रोशनी फैली हुई थी। उस रोशनी में सामने किसी प्राचीन राजा की आदमकद मूर्ति साफ दिखाई दे रही थी।
दीपक कुमार अंतिम सीढ़ी से उतरकर नीचे खड़ा हो गया।
''आओ, मेरे करीब आओ।" अचानक वहाँ एक आवाज़ गूंजी। और यह आवाज़ नि:संदेह उसी राजा की मूर्ति से आयी थी। दीपक कुमार धीरे धीरे उस मूर्ति की ओर बढ़ने लगा। अचानक वह विशाल मूर्ति दो भागों में बँट गयी। और अब सामने वही अजनबी दिखाई दे रहा था जिसने दीपक कुमार को अस्पताल में खून दिया था।
''क्या तुम मुझे पहचान सकते हो?" अजनबी की आवाज़ तहखाने में गूंजी।
''हाँ मैं तुम्हें पहचान सकता हूं।" दीपक कुमार इस तरह बोला मानो सपने में बोल रहा हो।
''मेरा तुम्हारा खून का रिश्ता है।"
''हाँ।"
''तो फिर जाओ और मेरे खून को पूरी दुनिया में फैला दो।" अजनबी का आदेश सुनकर दीपक कुमार वापस घूमा और तहखाने से बाहर जाने लगा। जबकि अजनबी फिर से मूर्ति के बीच समा गया था।
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शहर के अस्पतालों में इधर नये तरह की हैरतअंगेज़ सरगर्मियां दिखाई देने लगी थीं।
यानि अस्पतालों में रक्तदान करने करने वालों की लंबी क़तारें लगने लगी थीं और शहर के अस्पताल आश्चर्यमिश्रित खुशी में डूबे थे। कहाँ तो रक्तदान के नाम पर बड़ी मुशिकल से लोग आते थे और कहां अब इतनी भीड़ नज़र आ रही थी कि उन्हें नियनित्रत करने के लिये कई कर्मचारी अलग से लगाये गये थे। अब तो हालत ये हो गयी थी कि कई अस्पतालों के ब्लड बैंकों में खून रखने की जगह ही नहीं बची थी।
उधर शहर के बीचोंबीच मौजूद पुराने किले के उस तहखाने में वही रहस्यमय अजनबी इस समय भी मौजूद था, पलथी मारकर बैठा और आँखें बन्द किये ध्यानामग्न।
फिर उसने अपनी आँखें खोल दीं और उसके चेहरे पर धीरे धीरे हल्की मुस्कुराहट उभर आयी।
''अब मेरी मंजि़ल मेरे बहुत पास आ चुकी है। बस एक आखिरी क़दम और।" वह बड़बड़ा रहा था। फिर वह उठ खड़ा हुआ और उस विशाल मूर्ति की ओर बढ़ने लगा जिसके भीतर से वह दीपक कुमार के सामने निकला था।
जैसे ही वह मूर्ति के क़रीब पहुंचा, मूर्ति दो भागों में बँट गयी। वह अन्दर प्रवेश कर गया और मूर्ति फिर से अपनी पुरानी हालत में वापस आ गयी।
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दीपक कुमार की मंगेतर राशि मौर्या अपने कमरे में बैठी किसी सोच में गुम थी। उसी समय वहाँ उसका भाई पंकज मौर्या दाखिल हुआ।
''हैलो राशि, क्या कर रही हो? चलो बैडमिंटन खेलते हैं।"
''रहने दो भाई। इस वक्त मूड नहीं है।" राशि ने अनमने भाव से जवाब दिया।
''राशि, मुझे लग रहा है कि इधर दो तीन दिन से तुम कुछ अपसेट हो। क्या बात है?"
''कोई बात नहीं भाई।"
''नहीं। कुछ तो मामला ज़रूर है।" पंकज ने उसे कुरेदा।
''भाई । पता नहीं क्या बात है। मुझे लगता है एक्सीडेंट के बाद दीपक कुमार जी बदल गये है।"
''क्यों? ऐसा क्यों सोचती हो तुम?"
''पहले वो रोज़ मुझे फोन करते थे। लेकिन अब तो वो फोन करते ही नहीं। और अगर मैं फोन करती हूं तो हूं हां के अलावा कोई बात ही नहीं करते।"
''ये तो कोई ऐसी बात नहीं। मेरा ख्याल है कि अभी वह अपने को पूरी तरह स्वस्थ महसूस नहीं कर रहे हैं।"
''फिर भी पता नहीं क्यों मुझे अजीब सा महसूस हो रहा है।"
''तुम चिंता करना छोड़ दो। वैसे भी अब शादी को कुछ ही दिन बाकी बचे हैं।"
उसी समय वहां रखा राशि का मोबाइल बजने लगा। राशि ने फोन उठाया और फिर हैरत से भाई की ओर देखा।
''क्या बात है राशि? किसका फोन है?"
''दीपक कुमार जी का।" उसने फोन उठाकर हैलो कहा।
''राशि, क्या इस समय तुम मुझसे मिल सकती हो?"
''इस समय? क्यों?"
''मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बातें करनी हैं। साथ में पंकज को भी ले आओ। मैं तुम्हें पता बता रहा हूँ ।" उधर से दीपक कुमार ने पता बताया और फोन काट दिया।
''आखिर उसने तुम्हें और मुझे साथ में क्यों बुलाया है? और वह भी घर से बाहर दूसरी जगह।" पंकज ने उलझन भरे भाव में कहा।
''पंकज मुझे तो घबराहट हो रही है। पता नहीं वह क्या बात करना चाहता है।" राशि के स्वर से परेशानी साफ झलक रही थी।
''दिल पे मत ले यार। कोई परेशानी की बात नहीं होगी। मुझे यकीन है।" पंकज ने उसे दिलासा दिया हालांकि अन्दर ही अन्दर उसे भी चिंता हो रही थी।
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5 comments:
interesting .
अरे.... आगे क्या होगा? यह तो सस्पेंस हो गया...
Nice story
आपकी ख़ास हथौटी से निकली कहानी -आगे पढ़ते हैं !
आपकी ख़ास हथौटी से निकली कहानी -आगे पढ़ते हैं !
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