Monday, June 27, 2011

ड्रामा द ग्रेट डिक्टेटर्स (Part -,1)


द ग्रेट डिक्टेटर्स अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर चोट करता हुआ हास्य व्यंग्य से भरपूर ड्रामा है। इसमें साइंस फिक्शन का भी टच दिया गया है। अत: इस ब्लाग पर आपके समक्ष यह प्रस्तुत है। यह ड्रामा आपका मनोरंजन करने के साथ कुछ सोचने पर भी मजबूर करेगा। यदि कोई सज्जन या संस्था इसका मंचन करना चाहे तो मुझसे zeashanzaidi@gmail.com पर सम्पर्क करें।
--- जीशान हैदर जैदी (लेखक)
 
(स्टेज पर हल्की रोशनी में एक व्यक्ति के चारों तरफ आठ लोग इस तरह लेटे हुए मानो मर गये हों। उन आठों में दो लड़कियां भी हैं। धीमी रोशनी में उस शख्स का चेहरा नज़र नहीं आ रहा है। अचानक एक तरफ से जार्ज बुश की स्पीच की आवाज़ आती है और वह सर उठाकर हवा में इधर उधर देखने लगता है। फिर स्पीच बदलकर सददाम हुसैन की हो जाती है। और फिर हिटलर की। और फिर एक साथ कई लोगों की स्पीच मिक्स होकर हवा में गूंजने लगती है। स्पीच बन्द होती है और इसी के साथ स्टेज पर पूरी रोशनी छा जाती है। एक अधेड़ उम्र का शख्स डाक्टर सायनाइड तेज़ रोशनी से बचने के लिये अपनी आँखों पर हाथ रखे हुए है। उसके पीछे एक मेज़ है जिसके ऊपर तरह तरह की रंग बिरंगी टोपियां रखी हुई हैं। उसके चारों तरफ छह लड़के और दो लड़कियां लाशों की तरह बिखरे हुए पड़े हैं। अपनी आँखों से हाथ हटाकर डाक्टर सायनाइड बोलना शुरू करता है। इस बीच उसने अपनी जेब से एक जानवरों वाली सिरिंज निकाल ली है और उसे अपनी आँखों के सामने लाकर देख रहा है। )

डा0 सायनाइड : एक महान डिक्टेटर की खूबी ये होती है कि वह अपने आगे किसी की नहीं सुनता। हो सकता है आपके अन्दर भी ये खूबी हो। और अगर नहीं है तो आपकी बीवी के अन्दर ये खूबी ज़रूर होगी। अगर ऐसा है तो हो सकता है डिक्टेटर्स की महान सीरीज़ जूलियस सीज़र, नेपोलियन, हिटलर, जार्ज बुश, सददाम हुसैन और ओसामा बिन लादेन की लाइन में आपका नाम भी जुड़ जाये। वैसे मेरे पास भी आपको डिक्टेटर बनाने का फार्मूला मौजूद है। तो क्या आप एक महान डिक्टेटर बनना पसंद करेंगे? 
(उसी वक्त स्टेज पर एक नौजवान रंग बिरंगे लिबास में प्रोफेसर को पुकारता हुआ दाखिल होता है। ये नौजवान जाफर जैक्सन है।)

जैक्सन : डाक्टर। डाक्टर सायनाइड किधर हो तुम? अच्छा तो तुम यहां हो। 
डा0 सायनाइड : आओ जाफर जैक्सन। अच्छा हुआ तुम आ गये। 
जाफर जैक्सन  : (चारों तरफ देखकर।) ऐं, डाक्टर सायनाइड, ये इतने सारे लोग यहां मरे क्यों पड़े हैं? 
डा0 सायनाइड : ये सब मेरे एक्सपेरीमेन्ट का शिकार हुए हैं। 
जाफर जैक्सन  : (घबराकर) क--क्या? ड-- डाक्टर, तुमने अपने एक्सपेरीमेन्ट के लिये इतने सारे लोगों की जान ले ली? पुलिस -- थाना--इंस्पेक्टर---सिपाही---अरे कोई है जो इस सीरियल किलर को फांसी पर लटका दे। 
(कहते हुए इधर उधर घूमने लगता है। डाक्टर सायनाइड जाकर पीछे से उसकी गर्दन पकड़कर अपनी तरफ खींचता है।)

डा0 सायनाइड : बेवकूफ ये लोग मरे नहीं जिन्दा हैं और सिर्फ बेहोश हैं। मैं इनपर अपना एक तजुर्बा कर रहा हूं। 
जाफर जैक्सन  : कैसा तजुर्बा। डाक्टर सायनाइड मुझे यकीन है अपने तजुर्बों की बदौलत एक दिन तुम जेल के अन्दर होगे। 
डा0 सायनाइड : जिस दिन मेरा तजुर्बा कामयाब हो गया उस दिन नोबुल प्राइज़ मेरी जेब के अन्दर होगा बेवकूफ। क्या धाँसू आविष्कार किया है मैंने। 

(पीछे मेज़ की तरफ जाकर टोपियों की ओर उंगली से इशारा करता है।)

डा0 सायनाइड : ये देख। 
जैक्सन  : टोपियां! (कहकहा मारकर हंसने लगता है।)
डा0 सायनाइड : अबे चुप कमबख्त। 
जैक्सन  : डा0 सायनाइड, इतने बरसों साइंस पढ़ने के बाद और डाक्टरेट हासिल करने के बाद अब तू टोपियां बनाकर बेचेगा। हा हा हा हो हो हो ही ही ही। 

(डा0 सायनाइड आगे बढ़कर उसका मुंह दबा देता है।)

डा0 सायनाइड : बेवकूफ। ये मामूली टोपियां नहीं हैं। (एक टोपी उठाकर हाथ में ले लेता है।) इसके अन्दर एक ऐसा कम्प्यूटर लगा हुआ है कि जो इसे लगायेगा उसकी मेमोरी और दिमाग पूरे का पूरा बदल जायेगा। 
जैक्सन  : हांयें? 
डा0 सायनाइड : यस। उसका दिमाग एक डिक्टेटर का हो जायेगा। क्योंकि इस टोपी के अन्दर फिट कम्प्यूटर में एक डिक्टेटर के दिमाग की इमेज बसी हुई है। 
जैक्सन  : अरे बाप रे। अच्छा डाक्टर मैं चलता हूं। फिर मिलेंगे। 

(वह घबराकर जाने लगता है लेकिन डा0 सायनाइड उसे दोबारा पीछे से खींच लेता है।)

डा0 सायनाइड : जा कहां रहा है। पहले मेरी टोपियों का करिश्मा तो देखता जा। 

(वह एक बेहोश लड़के के पास जाता है और उसे टोपी पहनाने लगता है।)

जैक्सन  : हे ऊपर वाले तू इसका आविष्कार फ्लाप कर दे। अगर इसने डिक्टेटर बनाने शुरू कर दिये तो तेरी दुनिया का कबाड़ा हो जायेगा। 

(डा0सायनाइड लड़के को टोपी पहना चुका है। फिर उस टोपी पर दो तीन बार ठक ठक करता है और वह लड़का इस तरह उठकर खड़ा हो जाता है जैसे नींद में उठ गया हो। इस लड़के को हिटलर की टोपी पहनाई गयी है इसलिए आगे वह हिटलर बन जायेगा।)

डा0सायनाइड : वेरी गुड। तुम कौन हो? 
(हिटलर एकाएक उसका गरेबान पकड़ लेता है।)
हिटलर  : पहले तू बता तू कौन है? 
(जैक्सन घबराकर टोपियों वाली मेज़ के पीछे छुप जाता है।) 
डा0सायनाइड  : मैं डाक्टर सायनाइड हूं। द ग्रेट साइंटिस्ट डाक्टर सायनाइड। 
हिटलर  : तू ज़रूर यहूदी है। मैं अभी तुझे गैस चैंबर में भिजवाता हूं कमबख्त। 
डा0सायनाइड  : मैं यहूदी नहीं हूं। 
हिटलर  : कहीं तू हेल हिटलर से झूठ तो नहीं बोल रहा? रुक जा पहले मैं अपना गैस चैंबर ढूंढ लूं फिर तुझे वहां जाकर पटक दूंगा। 

(हवा में कुछ सूंघता है। फिर टोपी वाली मेज़ की तरफ इशारा करके।)

हिटलर : यहां से गैस की बू आ रही है। मेरा गैस चैंबर इधर ही है। 
(उस तरफ बढ़ता है। उसी वक्त मेज़ की आड़ में छिपा जैक्सन बाहर आ जाता है और हाथ जोड़कर रुहांसी आवाज़ में कहता है।)
जैक्सन : मुझे माफ कर दीजिए हिटलर जी। जिस गैस की बू आपने सूंघी वह मैंने छोड़ी थी।

(हिटलर पीछे से उसकी कमर पर लात जमाता है।)

हिटलर : भाग यहां से ईडियेट। (फिर डा0सायनाइड की तरफ देखकर।) तू यहां से हिलना मत। मैं जा रहा हूं अपना गैस चैम्बर ढूंढने। अभी मुझे लाखों यहूदियों को मरवाकर तीस मार खाँ कहलवाना है।
(वह वहां से जाता है।)
डा0 सायनाइड : (गहरी साँस लेकर) एक डिक्टेटर तो गया। अब देखता हूं मेरी ये दूसरी टोपी क्या करिश्मा दिखाती है। 

(वह मेज़ पर से दूसरी टोपी उठाता है। जाफर जैक्सन उसके हाथ से टोपी छीन नेता है।)

जैक्सन  : एक खतरनाक डिक्टेटर मर गया था। तुमने उसे फिर जिन्दा कर दिया। पता नहीं अब वह क्या खुराफातें करेगा। डाक्टर बस अब मैं तुम्हें कोई टोपी पहनाने नहीं दूंगा। एक ही डिक्टेटर काफी है। 
(डा0सायनाइड उसके हाथ से टोपी खींच लेता है।)
डा0सायनाइड : बेवकूफ तू डाक्टर सायनाइड के दिमाग तक नहीं पहुंच सकता। याद रखो एक का मामला हमेशा खतरनाक होता है। लेकिन जब दो डिक्टेटर हो जायेंगे तो पावर बैलेंस हो जायेगी। दोनों आपस में ही कट मरेंगे और हम आराम से मौज करेंगे। 
जैक्सन  : डाक्टर, आईडिया तो तुम्हारा धाँसू है। मैं आज ही जाकर दूसरी शादी कर लेता हूं। ताकि मेरे घर की पावर बैलेंस हो जाये।
डा0सायनाइड : अबे तेरे घर की पावर ऊपर वाला भी बैलेंस नहीं कर सकता। 
जैक्सन : क्यों?
डा0सायनाइड  : (उसके कंधे पर हाथ रखकर।) तेरी बीवी ट्रैक्टर की ट्राली और तू माचिस की तीली । कहां से बैलेंस बन पायेगा। अब तू खामोश रह और मुझे अपना काम करने दे। ये टोपी जो पहनेगा उसके अन्दर बादशाह अकबर की शख्सियत समा जायेगी।
जैक्सन  : एक मिनट। डाक्टर तुम तो डिक्टेटरों की टोपी बना रहे हो। फिर ये बीच में बादशाह अकबर किधर से घुस आये? 
डा0सायनाइड  : बेटे तू नहीं समझेगा। बादशाहत डिक्टेटरशिप का ही दूसरा नाम है।   

(वह टोपी लेकर जाता है और दूसरे लड़के को पहना देता है। लड़का धीरे धीरे उठता है। ये बादशाह अकबर बनने वाला है।)
.........continued

1 comment:

Arvind Mishra said...

:) to yah aagaaj hai .....!