Wednesday, December 2, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 68


‘‘तो आप हैं वह चोर महाशय , जो अण्डे चुरा चुराकर अपनी प्रेमिका को खिला रहे थे।’’प्रोफेसर ने हाथ नचाकर कहा।
‘‘यह सिलसिला कब से चल रहा है? और यह कौन है?’’ शमशेर सिंह ने पूछा।
‘‘यह मोली है। मेरी प्रेमिका। मैं इससे प्रेम करता हूं।’’ रामसिंह ने जवाब दिया।

‘‘तो करो प्रेम। लेकिन अण्डे चुराने की क्या आवश्यकता थी?’’ प्रोफेसर ने पूछा। मोली एक ओर सर झुकाये खड़ी थी।
‘‘आवश्यकता थी। मैंने इससे वादा किया था कि हर रोज दो अण्डे चुराकर इसे खिलाऊंगा।’’

‘‘और हम लोग इसकी चिन्ता में दुबले हो रहे थे कि यह कहां गायब हो गया। कहीं आदमखोरों के चंगुल में तो नहीं फंस गया।’’ शमशेर सिंह ने प्रोफेसर से कहा।
‘‘जबकि यह यहां गुलछर्रे उड़ा रहा था।’’

‘‘मैं गुलछर्रे नहीं उड़ा रहा था। मैं प्रेम कर रहा था। सच्चा प्रेम। हम लोग यहां से दूर एक कुंज में घर बनाने का प्लान कर रहे थे।’’

‘‘प्लान अच्छा है। मैं उसका नक्शा बना दूंगा। लेकिन सीमेण्ट, बालू इत्यादि लाने में बहुत मुश्किल होगी क्योंकि यहां से शहर बहुत दूर है।’’ प्रोफेसर बोला।
‘‘हमें इन सब वस्तुओं की आवश्यकता भी नहीं है। हमारे घर में चंदन की दीवारें होंगी, फूलों की छत होगी और कलियों का फर्श होगा।’’ रामसिंह ने जवाब दिया।

शमशेर सिंह और प्रोफेसर ने एक दूसरे की ओर देखा फिर शमशेर सिंह बोला, ‘‘मैं कह रहा था कि इसे उस्ताद काले खाँ के पास बैठने से रोका जाये वरना यह बरबाद होकर शायर बन जायेगा। वही हुआ जिसका डर था।’’
प्रोफेसर ने आगे बढ़कर रामसिंह का कान पकड़ा और उसे खींचते हुए बोला, ‘‘अब चुपचाप वापस चल। यह मत भूलो कि तुम्हें मेरा असिस्टेंट बनाकर भेजा गया है और तुम्हें वैज्ञानिक बनने के अतिरिक्त और कुछ नहीं बनना है।’’

मोली ने जब उन्हें तकरार करते देखा तो चुपचाप वहां से खिसक गयी। उसके जाने के बाद रामसिंह भी ढीला हो गया और प्रोफेसर इत्यादि के साथ चलने लगा।
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‘‘प्रोफेसर -- प्रोफेसर!’’ शमशेर सिंह पुकारता हुआ अन्दर प्रविष्ट हुआ लेकिन झोंपड़ी में कहीं प्रोफेसर के दर्शन नहीं हुए।
‘‘कहां चला गया ये। ’’ शमशेर सिंह बड़बड़ाया और एक बार फिर आवाज लगायी।
‘‘आ जाओ। मैं यहां हूं।’’ एक ओर से आवाज आयी। शमशेर सिंह ने ध्यान दिया। यह आवाज झोंपड़ी के पीछे से आयी थी।

शमशेर सिंह ने झोंपड़ी के पीछे का दरवाजा खोला और बाहर निकल आया। यहां प्रोफेसर व्यस्त था। अर्थात उसकी प्रयोगशाला का सारा सामान वहाँ मौजूद था और स्वयं प्रोफेसर एक सिल बट्‌टे द्वारा कुछ पत्तियां पीस रहा था।
‘‘यह क्या कर रहे हो प्रोफेसर?’’ शमशेर सिंह ने पूछा।
‘‘मैं एक आविष्कार कर रहा हूं’’ प्रोफेसर ने जवाब दिया।