इस प्रकार धीरे धीरे जोड़े बनते गये और जल्दी ही यह काम समाप्त हो गया।
‘‘इस उत्सव का यह चरण अब यहीं पर समाप्त----।’’ सरदार की बात अधूरी रह गयी, क्योंकि उसी समय एक दहाड़ सुनाई पड़ी।, ‘‘ठहरिये पिताजी।’’
सरदार ने चौंक कर पीछे देखा जहां उसकी पुत्री खड़ी थी। उसका चेहरा क्रोध के कारण तमतमा रहा था।
‘‘क्या बात है मोगीचना?’’ सरदार ने उसे संबोधित किया।
‘‘मैं यह कहना चाहती हूं कि वर चुनने का पहला अधिकार मेरा था। क्योंकि मैं इस कबीले की सबसे तगड़ी कुंवारी हूं। फिर मुझे क्यों भुला दिया गया?’’
‘‘मैंने सोचा कि अभी तो तुम्हारे खेलने कूदने के दिन हैं।’’
‘‘डूंगा टूंगा कबीले में तो मेरी आयु की कन्याएं चार पतियों की मालिक बन जाती हैं। और मेरे पास तो एक भी पति नहीं है।’’ सरदार की पुत्री ने बिसूर कर कहा।
‘‘चिन्ता मत करो। इस वर्ष तो सारे कुंवारे चुन लिये गये। अब अगले वर्ष मैं तुम्हारे लिये चार कुंवारों का एक साथ प्रबंध कर दूंगा।’’ सरदार ने उसे दिलासा दिया।
‘‘मैं तो आज ही अपना वर तलाश करूंगी।’’ मोगीचना ने ठिनुक कर कहा।
‘‘किन्तु कैसे? अब तो कोई नहीं बचा।’’ असमंजस में पड़कर सरदार ने कहा।
‘‘एक बचा है।’’ मोगीचना ने कहा, ‘‘वही मेरा वर बनेगा।’’
‘‘कौन बचा है? मुझे तो कोई नहीं दिखाई पड़ रहा है।’’
मोगीचना ने एक ओर संकेत किया और सरदार की आखें फैल गयीं। क्योंकि वह शमशेर सिंह की ओर संकेत कर रही थी।
‘‘किन्तु य --ये तो मेरे भोजन के लिए लाया गया है।’’ सरदार ने कहने का प्रयत्न किया।
‘‘मुझे तो वही पुरुष चाहिए। अपने भोजन के लिए तुम किसी और को पकड़ लो। कैसा बांका छबीला युवक है। मोटा तगड़ा और लंबा।’’ उसके होंठों से लार टपकने लगी थी।
‘‘किन्तु वह हमारे कबीले का नहीं है। तुम्हें अपने ही कबीले के किसी जवान को पसंद करना चाहिए।’’ समझाने की कोशिश जारी थी।
‘‘इस कबीले में कोई जवान मेरे लायक नहीं है। मुझे तो वही युवक चाहिए।’’ वह किसी भी प्रकार मानने के लिए तैयार नहीं थी।
‘‘तुम बहुत जिद्दी हो । आखिर हो तो मेरी ही पुत्री। ठीक है ले जाओ उसे।’’ सरदार ने मरी मरी आवाज़ में कहा।
2 comments:
मोगीचना कहीं कोई सूर्पनखा की अवतार तो नहीं न ?
खोज जारी रहनी चाहिए।
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