‘‘ये बताओ कि तुम्हारा ये प्रेम कब तक मुझसे चलता रहेगा?’’ शमशेर सिंह रो देने के भाव में बोला।
‘‘मुझे नहीं मालूम। मैं तो जब तुम्हें देखती हूं मेरे फेफड़ों में कुछ कुछ होने लगता है।’’
‘‘फेफड़ों में?’’ शमशेर सिंह हैरत से बोला, ‘‘मेरी आबादी में तो इस सब के लिए दिल का प्रयोग किया जाता है।’’
‘‘तुम्हारा कबीला कहां है?’’
‘‘वहां, जहां कंक्रीट के जंगल हैं। लोग दिल की बजाय दिमाग से लड़ते हैं। जहां लोग अपने की कम दूसरों की फ़िक्र ज्यादा करते हैं। वहां मैं रहता हूं। ’’ शमशेर सिंह ने बताया और फिर एकदम उदास हो गया। क्योंकि उसे रामसिंह और देवीसिंह की याद आने लगी थी।
‘‘तुम्हारी बातें मेरी समझ में नहीं आतीं, तुम मुझसे प्रेमभरी बातें क्यों नहीं करते?’’
‘‘मुझे इस प्रकार की बातें नहीं आतीं। तुम बताओ कि प्रेमभरी बातें किस प्रकार की जाती हैं?’’
‘‘मेरे कबीले में जब कोई पुरुष किसी स्त्री से प्रेम करता है तो सबसे पहले वह उसकी सुन्दरता की तारीफ करता है।’’ मोगीचना ने बताया और शमशेर सिंह सोचने लगा कि किस प्रकार उस चुडैल की सुन्दरता की तारीफ की जाये।
थोड़ी देर सोचने के बाद वह बोल उठा, ‘‘ठीक है सुनो। तुम्हारी आखें झील के घोंघों के समान हैं जिन्हें झील की गहराईयों में डूब जाना चाहिए। तुम्हारे काजल के समान काले होंठों में गन्ने का रस भरा हुआ है जिसकी चाय बहुत मीठी बनेगी। तुम्हारे फूले फूले गाल जैसे अभी अभी तन्दूर से निकले हों। तुम्हारी कमर इतनी पतली कि बकरी की कलाई भी मात खा जाये। गर्दन इतनी सुराहीदार कि अगर पानी रखा जाये तो फ्रिज से भी ज्यादा ठन्डा हो जाये। काली जुल्फों में जुएं के आभूषण’’
शमशेर सिंह बिदक कर पीछे हटा क्योंकि उसने मोगीचना के कंधे पर दो तीन जुएं रेंगती देख ली थीं।
‘‘तुम बहुत भोले हो प्रिय। तुम्हें तो तारीफ करना भी नहीं आता। हमारे कबीले के युवक इस प्रकार तारीफ करते हैं।’’ मोगीचना ने आखें बन्द करके कल्पना की और फिर बताना शुरू किया, ‘‘हे सुन्दरता की मूर्ति, तुम कबीले की सबसे सुन्दर औरत हो। तुम्हारा शरीर गोश्त का पहाड़ है और भुजाएं भैंस की रान से भी मोटी हैं। तुम्हारा मांस पकने के बाद देवताओं का भोजन होगा और कलेजा गीदड़ चबाएंगे। जो हमारे कबीले में पवित्र जानवर समझा जाता है। तुम जब चलती हो तो जमीन हिलती है और हिरन इधर उधर भागने लगते हैं। तुम्हारा चेहरा देखकर बकरे के स्वादिष्ट कच्चे गोश्त का मजा आने लगता है। और -----।’’
‘‘बस बस।’’ शमशेर सिंह ने हाथ उठाकर उसे रोक दिया, ‘‘मुझे मालूम है कि मैं आदमखोरों के बीच हूं। जिनका प्रेम भी आदमीखोर होता है।’’
‘‘अरे हां। ’’ मोगीचना ने चौंक कर कहा, ‘‘जब तुम प्रारम्भ में आये थे तो मैंने तुम्हारे हाथ में अजीब सी वस्तु देखी थी। वह क्या है?’’
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