Tuesday, October 6, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 36

ये विचित्र कपड़े पहने हुए जंगलियों का झुण्ड था जो इस समय डास प्रैक्टिस कर रहे थे। उनके काले शरीर पेड़ की छाल का वस्त्र धारण किये हुए थे। सर पर किसी पक्षी के परों की टोपी थी और हाथ में विभिन्न प्रकार के हथियार थे। किसी के पास भाला था तो कोई तीर कमान लेकर कूद रहा था। किसी के हाथ में लकड़ी की लाठी थी तो किसी ने लकड़ी की ही बनी बड़ी सी ढाल पकड़ रखी थी। सारे जंगली अलाव जलाकर उसके गिर्द नाच रहे थे।

‘‘अरे बाप रे, ये हम कहां आ गये? ये तो आदमखोर मालूम होते हैं। हमें तो पल भर में चट कर जायेंगे।’’ रामसिंह ने दहल कर कहा।
‘'धीरज रखो। मेरा विचार है कि ये आदमखोर नहीं बल्कि जानवरखोर जंगली हैं।’’ प्रोफेसर ने ढांढस बंधाई । किन्तु उसके स्वर का कंपन बता रहा था कि वह कुछ कुछ रामसिंह की बात से सहमत है।

उन जंगलियों को देखते ही उस प्राणी के मुंह से सीटी जैसी तेज़ आवाज निकली जिसे सुनते ही डांस कर रहे सारे जंगली उधर मुखातिब हो गये और उस प्राणी की ओर दौड़ पड़े। जिसे प्रोफेसर ने डायनासोर का संबोधन दिया था।
‘‘ओह, ये तो हमारी ओर आ रहे हैं। प्रोफेसर, जल्दी से उतर कर भागो।’’ रामसिंह चिल्लाया।

‘‘किन्तु उतरें कैसे? और उतर कर जायेंगे कहां? जितनी देर में हम लोग भागेंगे उतनी देर में तो जंगली हमें घेर लेंगे।’’ प्रोफेसर ने विवशता से कहा।
इससे पहले कि ये लोग कुछ निचय कर पाते, जंगली एकदम निकट पहुंच गये। फिर उन्होंने एक अजीब दृश्य देखा। सारे जंगली उस जानवर के चारों ओर लम्बवत हो गये और ‘देता’---‘देता’ शब्द का जोरों से उच्चारण करने लगे।

जानवर ने एक जोरदार हुंकार भरी और सारे जंगली इस प्रकार बोलने लगे मानो किसी बात के लिए गिड़गिड़ा रहे हों।
‘‘यह क्या चक्कर है? यह जंगली क्या कह रहे हैं?’’ रामसिंह अपनी गुद्दी सहलाते हुए बोला।
‘‘मेरा विचार है कि ये जंगली इस जानवर को देवता मान रहे हैं। ध्यान से सुनो। इनके मुंह से देवता---- देवता निकल रहा है।’’

‘‘तुम सही कह रहे हो प्रोफेसर। यह जानवर वास्तव में इन लोगों का देवता है।’’ रामसिंह प्रोफेसर की बात से सहमत हो गया।

वह जानवर गर्व से सर उठाकर ठीक किसी मिलेट्री अफसर की तरह जंगलियों की दंडवत सलामी ले रहा था।
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2 comments:

Arvind Mishra said...

चलो अब तिलिस्म की बुनावट शुरू .....

seema gupta said...

रोचक.....

regards