हेलो दोस्तों , लगभग एक माह नेट से दूर रहने के बाद एक बार फिर हाज़िर हूँ इस दुनिया में। साथ में प्रस्तुत है प्लेटिनम की खोज की अगली कड़ी.
‘‘कोई भी चमकीली धातु की तरह कोई वस्तु दिखे तो मुझे बुला लेना। मैं टेस्ट करके पता कर लूंगा।’’कुछ देर बाद रामसिंह ने फिर से प्रोफेसर को आवाज दी, ‘‘प्रोफेसर, मुझे यहां चमकीली वस्तु दिखाई पड़ी है जो एक पत्थर से चिपकी है।’’
‘‘कहां?’’ प्रोफेसर डेव उत्सुकता के साथ वहाँ पहुंचे। उनके साथ साथ शमशेर सिंह भी वहां पहुंच गया। जब वे रामसिंह के पास पहुंचे तो रामसिंह ने उंगली से सामने संकेत किया।
प्रोफेसर कुछ देर गौर से उस वस्तु का निरीक्षण करता रहा, फिर बोला, ‘‘ये तो किसी चिड़िया की बीट है जो सूख कर जम गयी है।’’
‘‘वाह। क्या शानदार खोज की है तुमने रामंसंह। तुम अवश्य प्रोफेसर के असिस्टेंट बनने के काबिल हो।’’ शमशेर सिंह ने रामसिंह की पीठ थपथपायी।
‘‘कोई बात नहीं। वैज्ञानिक पहले गलत खोजें करते हैं तभी वे महान वैज्ञानिक बन पाते हैं।’’ प्रोफेसर ने रामसिंह की पहली नाकामी पर सांत्वना दी।
एक बार फिर उन्होंने खोज आरम्भ कर दी। तभी शमशेर सिंह जोर से चिल्लाया, ‘‘अरे बाप रे।’’
‘‘क्या हुआ?’’ दोनों घबराकर उसकी ओर दौड़े। पास पहुंचने पर उसने एक ओर संकेत किया जहाँ एक कनखजूरा रेंगता हुआ जा रहा था।
‘‘जब म---मैंने पत्थर हटाया तो इसके नीचे से यह निकला।’’ उसने काँपते हुए कहा।‘
‘ये तो कनखजूरा है। क्या इसने तुम्हें काट लिया?’’ रामसिंह ने पूछा।
‘‘काटने जा ही रहा था कि मैं फुर्ती से दूर हट गया। बच ही गया वरना आज तो-----।’’ उसने एक झुरझुरी ली।
‘‘वरना आज तो तुम्हारे खून की एक दो बूंदें अवश्य उसके पेट में पहुंच जातीं और वह बेचारा पेट दर्द से पीड़ित हो जाता ।’’ रामंसह ने चुटकी ली।
‘‘तुम लोग यदि इसी तरह प्लेटिनम की खोज करते रहे तो इस जन्म में तो उसकी झलक देख पाना मुमकिन नहीं। गम्भीरता से काम करोगे तभी महान वैज्ञानिक बन पाओगे।’’ प्रोफेसर ने दोनों को झाड़ पिलायी।
‘‘हम लोग क्या करेंगे वैज्ञानिक बनकर। एक तुम ही क्या कम हो।’’ रामसिंह बोला।
‘‘प्रोफेसर, मेरा विचार है कि पहले हमें रेस्ट हाउस की तलाश करनी चाहिए। प्लेटिनम तो बाद में भी खोजा जा सकता है।’’ शमशेर सिंह बोला।
‘‘शमशेर सिंह सही कह रहा है। अभी कुछ देर में अँधेरा हो जायेगा। फिर न तो रेस्ट हाउस मिलेगा और न ही प्लेटिनम। तब हमें इसी खुले मैदान में रात बितानी पड़ेगी।’’
‘‘ठीक कह रहे हो तुम लोग। मुझे तो वैज्ञानिक बातों के अलावा और कुछ ध्यान ही नहीं रहता। चलो आगे बढ़ते हैं।’’ प्रोफेसर ने कहा।फिर वे लोग चट्टानें फांदते हुए आगे बढ़ने लगे। दूर दूर तक ऊंची चट्टानें बिखरी होने के कारण पाँच छह कदम से आगे दृष्टि दौड़ाना लगभग असंभव था।
2 comments:
बहुत रोचक वर्णन..हास्य के तडके के साथ...
नीरज
अब आ गये तब खोज पूरी करने में लग लीजिये !
Post a Comment