Sunday, August 2, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 19

‘‘किन्तु हम पहचानेंगे कैसे कि बनी हुई वस्तु हीरा है या एटम बम?’’ रामसिंह दुविधा में फंस गया।
‘‘उसे आग में डाल देना। यदि फट गया तो बम होगा, वरना हीरा।’’ प्रोफसर ने समाधान किया।

‘‘ओह। यू आर जीनियस प्रोफेसर। तुम्हारे पास हर समस्या का हल रहता है। किन्तु बम फटने पर हम लोग बचेंगे कैसे?’’ अब एक दूसरी शंका रामसिंह के सामने थी।

‘‘तुम हो पागल।’’ इस बार शमशेर सिंह बोला, ‘‘जब बम फटेगा तो हम लोग उसके पास कहां रहेंगे। हम लोग आग जलाकर दूर चले जाएंगे। फिर निशाना लेकर बम को वहां फेंक देंगे। हम लोगों को नुकसान पहुंचने का सवाल ही नहीं उठता।’’

‘‘ठीक कहा तुमने। कभी कभी अकलमंदी की बात कर जाते हो।’’ रामसिंह ने शमशेर सिंह की पीठ थपथपायी।

अब वे जिस रास्ते पर चल रहे थे वह काफी ऊबड़ खाबड़ था। कभी एकदम ऊपर की तरफ जाने लगता था तो कभी नीचे।
‘‘यार प्रोफेसर, अभी तक रेस्ट हाउस के दर्शन नहीं हुए।’’ रामसिंह बोला।

‘‘अभी कहां से हों जायेंगे दर्शन। अभी तो हम आधा किलोमीटर ही चले हैं।’’
‘‘तुम्हारा क्या विचार है प्रोफेसर, रेस्ट हाउस में नौकर तो अवश्य होंगे।’’ रामसिंह बोला।

‘‘जरूर होंगे। आखिर हम लोग कंपनी की ओर से यहां अनुसंधान करने आये हैं। कम से कम एक नौकर हमें अवश्य मिलना चाहिए।’’

‘‘मैं तो सबसे पहले उससे अपना पैर दबवाऊंगा। चलते चलते पैरों में दर्द होने लगा।’’ रामसिंह ने कहा।
‘‘तुम अपना पैर बाद में दबवाना। बल्कि सर और गर्दन भी दबवा लेना। मैं तो सबसे पहले उससे भोजन बनवाऊंगा। बड़ी जोरों की भूख लग रही है।’’ शमशेर सिंह ने अपने पैरों पर हाथ फेरा।

‘‘इस भुखमरे को तो सदैव सपने में भी भोजन दिखाई देता है। अभी कंपनी के आफिस में किलो के हिसाब से खाकर आया है।’’ रामसिंह ने शमशेर सिंह को घूरा।
‘‘हाँ, मैं खाता हूं इसलिए मेरे अंदर शक्ति है। तुम्हारी तरह नहीं कि चार कदम चले और पैरों में दर्द होने लगा।’’ शमशेर सिंह ने रामसिंह की नकल उतारी।

‘‘आओ। अभी फैसला हो जायेगा कि किसके अंदर कितनी शक्ति है।’’ रामसिंह अपना सूटकेस नीचे रखकर आस्तीनें ऊपर चढ़ाने लगा।
‘‘हाँ हाँ, आओ देखते हैं कि बचपन में किस बकरी का दूध पीया है।’’ शमशेर सिंह भी ताल ठोंककर खड़ा हो गया।

‘‘तुम लोगों को सही सलामत रेस्ट हाउस पहुंचना है या नहीं। इस वीराने में मैं स्ट्रेचर भी नहीं मंगवा पाऊंगा।’’ प्रोफेसर ने दोनों को घूरा।
‘‘ठीक है। अभी तो मैं छोड़ दे रहा हूं प्रोफेसर के कहने पर, किन्तु रेस्ट हाउस में मैं प्रोफेसर की भी नहीं सुनूंगा।’’ रामसिंह ने उसी प्रकार घूरते हुए कहा।

‘‘बिल्कुल मत छोड़ना। मैं कब कहता हूं कि तुम डर कर भाग जाओ। तुम्हें तो मैं स्ट्रेचर पर लादकर अस्पताल तक छोड़ूंगा।’’ शमशेर सिंह ने अपना सूटकेस वापस जमीन पर से उठाते हुए कहा।

3 comments:

Arvind Mishra said...

ड्रामा चालू आहे !

seema gupta said...

रोचक....आगे???

regards

अभिषेक मिश्र said...

Safar manoranjak hai.