Thursday, April 2, 2009

दंगाई बंजारे - अंतिम भाग

‘‘तुम!’’
‘‘हां। मैं ही हूं यानि डा0 शशिकांत। जाना माना मोल्क्यूलर बायोलाजिस्ट। और वह देवी और कोई नहीं बल्कि मेरी पत्नी है, और माहिर भौतिकशास्त्री है। जिसे तुम बेहोश करके आये हो। उसे तो अभी होश् आ जायेगा। तब तक मैं तुमसे निपट लूं।’’ उसने हाथ में पकड़े रिमोटनुमा यन्त्र का बटन दबाया और इं- यशवंत तथा कौड़िया के चारों तरफ लेज़र किरणों का एक पिंजरा निर्मित हो गया।
‘‘इन किरणों को छूने की कोशिश मत करना वरना वक्त से पहले ही भस्म हो जाओगे।’’

इं-यशवंत ने एक गहरी सांस ली और बोला, ‘‘तो डा0 शशिकांत, ये सब तुम्हारी खुराफातें हैं। क्या मैं पूछ सकता हूं कि तुम ये सब क्यों कर रहे हो यहां? जबकि सरकारी लैबोरेटरी में तुम एक अच्छे ओहदे पर हो।’’
‘‘वहां मेरी ऊंची आकांक्षाओं की पूर्ति नहीं हो सकती है। चूंकि तुम्हारी मौत अब कन्फर्म हो चुकी है, इसलिए यहां की सच्चाई बताने में कोई हर्ज नहीं।’’ कहते हुए डा0 शशिकांत उन बेड्‌स के पास गया जहां दो जनजातीय युवक लेटे हुए थे।
‘‘मैंने और मेरी पत्नी ने मिलकर ऐसी मशीनें बनायीं जिनसे मनुष्य के डी-एन-ए- में मनचाहा परिवर्तन किया जा सकता था। यहां तक कि उन्हें 'इलेक्ट्रिक मैन’ बनाया जा सकता था। इस कामयाबी के बाद हमने सोचा कि इससे तो हम पूरी दुनिया पर कब्जा कर सकते हैं। छोटे पैमाने पर काम करते हुए पहले तो हमने यहां प्रयोगशाला स्थापित की। अपनी पत्नी को यहां के भोले भाले लोगों के बीच में देवी के रूप में स्थापित कर दिया। इसलिए प्रयोगशाला बनाने का हमारा काम काफी आसान हो गया।’’
डा0 शशिकांत ने मशीन में लगे कुछ बटन दबाये और आगे कहना शुरू किया, ‘‘फिर धीरे धीरे हम इलेक्ट्रिक मानवों की सेना तैयार करने लगे। यहीं के निवासियों को लेकर इन मानवों को तैयार करते समय इनके मस्तिष्क में भर दिया जाता है कि मैं इनका मालिक हूं और मेरी पत्नी इनकी देवी। इसलिए ये हमारा हर कहना मानते हैं।
हमारा काम सफलतापूर्वक चल रहा था, लेकिन उसी समय एक गड़बड़ हो गयी। एक विदेशी फर्म को यहां से बाक्साइट निकालने का ठेका मिल गया। नतीजे में यहां की लैबोरेटरी का भेद खुलने का खतरा पैदा हो गया। इसलिए हमें अपने मानवों को वक्त से पहले बाहर निकालना पड़ा और फसाद फैलाना पड़ा।
संयोग से तुम बीच में कूद पड़े और हमारा काम हलका हो गया। तुम्हारी तफ्तीश के दौरान मैंने अपना मैसेज पहुंचा दिया कि दरअसल बाहरी लोगों की वजह से यहां इवोल्यूशन हो रहा है। मैसेज भेजने का मकसद पूरा हो गया और हम अब अपना काम आगे बढ़ा सकते हैं।’’

अब उसने मशीन में लगा एक और बटन दबाया जिससे बेड के ऊपर मौजूद शीशे के चैम्बर धीरे धीरे खिसकने लगे। जैसे ही चैम्बर पूरे खिसके दोनों मानव उठकर बैठ गये और इस प्रकार अपनी आँखें मलने लगे मानो नींद से उठे हों।
‘‘अब ये दोनों पूरी तरह इलेक्ट्रिक मैन बन चुके हैं। इसी तरह मैं इनकी सेना तैयार करूंगा पूरी दुनिया पर अपनी हुकूमत कायम करने के लिए।’’
‘‘मैं नहीं समझता कि तुम अपने मकसद में कामयाब होगे। ये अनपढ़ लोग ज्यादा से ज्यादा दो लोगों को मारकर खुद भी गोली या बम का शिकार हो जायेंगे।’’
‘‘अभी मैं अपनी मशीन में और सुधार कर रहा हूं। उसके बाद इंजीनियर, डाक्टर और साइंटिस्ट भी इलेक्ट्रिक मैन बनकर हमारे गुलाम हो जायेंगे। चूंकि उनके मस्तिष्क में प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा होती है इसलिए फिलहाल मैं उन्हें गुलाम नहीं बना पा रहा हूं। मशीन में सुधार के बाद यह समस्या नहीं रहेगी।’’
उसने अपनी घड़ी देखी फिर बोला, ‘‘तुम्हारे साथ बकवास करने में काफी समय बरबाद हो गया, इसलिए मरने के लिए तैयार हो जाओ।’’
इं-यशवंत ने इ- कौडिया की तरफ देखा। बचने की कोई तरकीब समझ में नहीं आ रही थी।

डा0 शशिकांत ने इलेक्ट्रिक मैन से उसकी भाषा में कुछ कहा और वह एक कोने में चला गया जहां राइफल रखी हुई थी।
‘‘एक एक गोली तुम लोगों के लिए काफी होगी। तुम्हारे लिए मैं अपनी लेजर किरणें बरबाद नहीं करना चाहता।’’
इलेक्ट्रिक मैन राइफल उठाकर लाया और डा0 शशिकांत की तरफ बढ़ा दी। डा0 शशिकांत ने राइफल थामी।
किन्तु दूसरे ही पल वह वहीं अकड़ने लगा। पल भर में ही उसका पूरा जिस्म काला पड़ चुका था। इलेक्ट्रिक मैन आश्चर्य से उसे देख रहा था।
‘‘इसे क्या हुआ??’’
‘‘अपने ही जाल में शिकार बन गया। इलेक्ट्रिक मैन के जिस्म में दौड़ने वाली बिजली ने इसकी जान ले ली।’’
‘‘लेकिन अब हम बाहर कैसे निकलें इस पिंजरे से??’’
‘‘एक तरकीब है।’’ इं-यश्वन्त ने अपनी वर्दी उतारी। फिर उसे किरणों के स्रोत पर उछाल दिया। बस दो सेकंड लगे थे वर्दी को भस्म होने में। लेकिन इतने समय में वह कूदकर किरणों के पार जा चुका था। इलेक्ट्रिक मैन इं- यशवंत की तरफ बढ़ा, लेकिन कौड़िया ने उससे उसी की भाषा में कुछ कहा जिससे वह रुक गया।
इं- यशवंत ने रिमोट का बटन दबाया और कौड़िया के चारों तरफ मौजूद किरणों का घेरा हट गया।
‘‘जल्दी आओ, हमें देखना है कि कहीं वह देवी होश् में न आ गयी हो। वैसे इससे तुमने क्या कहा था कि यह रुक गया।’’
‘‘हमने कहा कि हम इसके मालिक के भी मालिक हैं।’’
‘‘गुड।’’ दोनों वापस उसी सुरंग में घुस गये।

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इस समय इं-यशवंत सब इं-कौड़िया के साथ एक अच्छे होटल की तरफ जा रहा था, डिनर के लिए। कार का स्टेयरिंग कौड़िया के हाथ में था।
‘‘आज सुबह पेपर में न्यूज आयी है कि पहाड़ियों के बीच एक महाधमाका हुआ और रौशनी भी चमकती देखी गयी। लेकिन जब तफ्तीश हुई तो एक गहरी झील के अलावा कुछ नहीं मिला।’’ कौड़िया कह रहा था।
‘‘हमारी किस्मत अच्छी थी कि पहाड़ियों के दूसरी तरफ एक गहरी झील थी। जब मैंने लैबोरेटरी को विस्फोट से उड़ाया तो पहाड़ियों में दरार पैदा हुई। जिससे दूसरी तरफ का पानी वहां भर गया और लैबोरेटरी के सारे चिन्ह मिट गये।’’

‘‘लेकिन आपने उसे नष्ट क्यों किया??’’
‘‘उसे नष्ट करना ही जरूरी था। वरना कोई और वहां की रिसर्च का फायदा उठाकर दुनिया का शासक बनने के सपने देख सकता था।’’
‘‘उस औरत के बारे में आपने नहीं बताया। उसका क्या किया आपने??’’
इं-यशवंत खामोश् रहा।
‘‘जवाब नहीं दिया आपने।’’ कौड़िया ने टोका।
‘‘मैं उसे बाहर निकालना चाहता था, लेकिन इलेक्ट्रिक मैन मेरे रास्ते में थे। वक्त कम था विस्फोट होने में। इसलिए उसे वहीं छोड़ना पड़ा।’’

थोड़ी देर वहां सन्नाटा छाया रहा, फिर सब इं-कौड़िया बोला, ‘‘मैं समझ गया। दरअसल आपने सारे ही सुबूत मिटा दिये। इसीलिए आपने मुझे पहले ही बाहर भेज दिया था, ताकि मैं कोई प्रतिरोध न करूं।’’
‘‘यही मुनासिब था। सच पूछो तो मैं चाहता हूं इलेक्ट्रिक मैन का खौफ बाहरी दुनिया में मौजूद रहे। ताकि यहां की जनजातियों का अस्तित्व खतरे में न पड़े।’’
अब तक कार होटल के प्रांगण में पहुंच चुकी थी इसलिए दोनों की बातचीत यहीं पर समाप्त हो गयी।

---समाप्त---

जीशान हैदर ज़ैदी

1 comment:

अभिषेक मिश्र said...

चलिए खौफ से ही सही, जनजातियाँ सुरक्षित तो रहें. मगर अभी इस कहानी के sequal की सम्भावना बाकी है.