एक्स देश के एजेंट की वार्ता का टेप लेकर राजेश और उसके साथी बाबा त्यागराज की कुटिया में घुस चुके थे.
"बाबा त्यागराज, तुम्हारी पोल खुल चुकी है. और मैं तुम्हें जेल की सलाखों के पीछे भेजने के लिए आया हूँ." राजेश ने उसे मुखातिब किया.
"लगता है तुझे अभी भी मेरे अवतार होने में शक है." बाबा ने कड़क कर कहा.
"अवतार तो हो तुम, लेकिन भगवान् के नहीं, एक शैतान देश के. लो अपने कानों से अपना कच्चा चिटठा सुनो." राजेश ने टेप सुनाना शुरू कर दिया था.
टेप के अंत तक पहुँचते पहुँचते झोंपडी के बाहर एकाएक शोर शराबा बढ़ गया था. शायद जनता को मालूम हो गया था कि बाबा को गिरफ्तार किया जा रहा है. झोंपडी के बंद दरवाज़े को तोडा जाने लगा. इधर टेप ख़त्म हुआ और उधर भीड़ का ज़बरदस्त रेला झोंपडी का दरवाजा तोड़ चूका था. हथियारों से लैस बीसियों लोग पलक झपकते अन्दर घुस आये. वे सभी राजेश और उसके साथियों के खून के प्यासे हो रहे थे. इससे पहले कि वे सबका कत्ल कर देते, वहां बाबा की ज़ोरदार आवाज़ गूंजी, "ठहरो!"
भीड़ के उठे हुए हाथ जहाँ के तहां रूक गए.
"ये लोग हमारे दुश्मन नहीं दोस्त हैं. तुम लोग वापस जाओ और शान्ति से अपना काम करो." नाजिया ने हैरत से बाबा के चेहरे की तरफ देखा जिधर गुस्से का नामोनिशान नहीं था. भीड़ चुपचाप बाहर चली गई.
"इस टेप ने मेरी ऑंखें खोल दी हैं." बाबा ने कहा, "जिस देश ने मुझे मेरे मान बाप से, मेरे देश से अलग किया, आज मैं उसी के हाथों का मोहरा बना हुआ हूँ. मैं तो एक मशीन की तरह इस्तेमाल किया जा रहा हूँ और खुद अपने हो वतन के अमन में आग लगा रहा हूँ. लेकिन अब मैं एक्स देश के मंसूबों को हरगिज़ कामयाब न होने दूंगा. तुम लोग जाओ और भगवान् से प्रार्थना करो की मैं अपने मिशन में कामयाब हो जाऊं."
नाजिया ने कुछ कहना चाहा लेकिन राजेश ने उसे चुप रहने का संकेत किया और वे सभी वहां से पलट आये.
फिर बाबा के शांतिपूर्ण भाषणों ने धीरे धीरे देश को अमन के रास्ते पर ला दिया. दंगों की ज्वालायें ठंडी पड़ चुकी थीं. और देश में एक बार फिर शान्ति ही शान्ति थी.
इसके कुछ दिनों बाद एक रात बाबा अपनी कुटिया में मरा हुआ पाया गया. अपनी मशीन को नाकाम होते देखकर एक्स देश ने उसे 'नष्ट' कर दिया था.
जहाँ बाबा की कुटिया थी, आज वहां बाबा त्यागराज का छोटा सा मंदिर है. जहाँ लोग रोजाना फूल चढाने आते हैं.
-----समाप्त-------
"बाबा त्यागराज, तुम्हारी पोल खुल चुकी है. और मैं तुम्हें जेल की सलाखों के पीछे भेजने के लिए आया हूँ." राजेश ने उसे मुखातिब किया.
"लगता है तुझे अभी भी मेरे अवतार होने में शक है." बाबा ने कड़क कर कहा.
"अवतार तो हो तुम, लेकिन भगवान् के नहीं, एक शैतान देश के. लो अपने कानों से अपना कच्चा चिटठा सुनो." राजेश ने टेप सुनाना शुरू कर दिया था.
टेप के अंत तक पहुँचते पहुँचते झोंपडी के बाहर एकाएक शोर शराबा बढ़ गया था. शायद जनता को मालूम हो गया था कि बाबा को गिरफ्तार किया जा रहा है. झोंपडी के बंद दरवाज़े को तोडा जाने लगा. इधर टेप ख़त्म हुआ और उधर भीड़ का ज़बरदस्त रेला झोंपडी का दरवाजा तोड़ चूका था. हथियारों से लैस बीसियों लोग पलक झपकते अन्दर घुस आये. वे सभी राजेश और उसके साथियों के खून के प्यासे हो रहे थे. इससे पहले कि वे सबका कत्ल कर देते, वहां बाबा की ज़ोरदार आवाज़ गूंजी, "ठहरो!"
भीड़ के उठे हुए हाथ जहाँ के तहां रूक गए.
"ये लोग हमारे दुश्मन नहीं दोस्त हैं. तुम लोग वापस जाओ और शान्ति से अपना काम करो." नाजिया ने हैरत से बाबा के चेहरे की तरफ देखा जिधर गुस्से का नामोनिशान नहीं था. भीड़ चुपचाप बाहर चली गई.
"इस टेप ने मेरी ऑंखें खोल दी हैं." बाबा ने कहा, "जिस देश ने मुझे मेरे मान बाप से, मेरे देश से अलग किया, आज मैं उसी के हाथों का मोहरा बना हुआ हूँ. मैं तो एक मशीन की तरह इस्तेमाल किया जा रहा हूँ और खुद अपने हो वतन के अमन में आग लगा रहा हूँ. लेकिन अब मैं एक्स देश के मंसूबों को हरगिज़ कामयाब न होने दूंगा. तुम लोग जाओ और भगवान् से प्रार्थना करो की मैं अपने मिशन में कामयाब हो जाऊं."
नाजिया ने कुछ कहना चाहा लेकिन राजेश ने उसे चुप रहने का संकेत किया और वे सभी वहां से पलट आये.
फिर बाबा के शांतिपूर्ण भाषणों ने धीरे धीरे देश को अमन के रास्ते पर ला दिया. दंगों की ज्वालायें ठंडी पड़ चुकी थीं. और देश में एक बार फिर शान्ति ही शान्ति थी.
इसके कुछ दिनों बाद एक रात बाबा अपनी कुटिया में मरा हुआ पाया गया. अपनी मशीन को नाकाम होते देखकर एक्स देश ने उसे 'नष्ट' कर दिया था.
जहाँ बाबा की कुटिया थी, आज वहां बाबा त्यागराज का छोटा सा मंदिर है. जहाँ लोग रोजाना फूल चढाने आते हैं.
-----समाप्त-------
5 comments:
प्रभावी कथा।
बहुत ही रोचक कहानी और उतना ही जबरदस्त अंत। बधाई।
इसके कुछ दिनों बाद एक रात बाबा अपनी कुटिया में मरा हुआ पाया गया. अपनी मशीन को नाकाम होते देखकर एक्स देश ने उसे 'नष्ट' कर दिया था.
" oh...... khani ant tk apna suspense bnaye rkhne mey kamyab hui or pdhna romanchk rhaa."
Regards
आज ही सारे भाग पढ़े. रोचक थी कहानी. धन्यवाद.
मजेदार! ये कहानी है गंभीर भी है और पर चेहरे पर टेढी मुस्कराहट लाने वाली भी. वैसे आपके लिखने की शैली के लिए नया कोई नाम इजाद करना होगा ... शायद "cri-sci-fi"
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