Saturday, January 24, 2009

ताबूत - एपिसोड 49

ये तो मनुष्य हैं. फ़िर इन्हें भूत कौन कह रहा था?" एक इंसपेक्टर ने कहा.
"मैं तो ओझा जी को भी साथ लेता आया था. भूतों को काबू में करने के लिए." एक सिपाही ने कहा. उसके साथ बड़ी दाढी और जटाओं वाले गेरुआ वस्त्रधारी एक महाशय खड़े थे.
तुम यहाँ क्या हंगामा कर रहे थे?" इंसपेक्टर ने डपट कर उनसे कहा.
सियाकरण और मारभट ने एक दूसरे की ओर देखा, फ़िर सियाकरण बोला, "ये भी कोई दानेदार लगता है. भाग लो वरना हम फ़िर कोठरी में बंद कर दिए जायेंगे." फ़िर वे लोग सरपट दौड़ पड़े. इससे पहले कि इंसपेक्टर इत्यादि कुछ कर पाते, वे लोग दो तीन गलियां फलांगते हुए गायब हो चुके थे.

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चोटीराज और चीन्तिलाल हाल के हंगामे से काफी घबरा उठे थे. और इसी चक्कर में दौड़ते हुए एक गली में घुस गए. उस गली से निकलने के बाद वे एक अन्य सड़क पर पहुँच गए. सामने ही एक इमारत दिखाई पड़ रही थी. ये लोग दौड़ते हुए उसमें घुस गए. अन्दर घुसने पर उन्होंने दो व्यक्तियों को सामने ही खड़ा पाया. इन व्यक्तियों की दाढियां सीने तक झूल रही थीं और सर सफाचट थे. आँखों पर मोटे मोटे चश्मे चढ़े हुए थे.
"मि० मैडमैन, एक पेशेंट और आया." पहले ने कहा.
"यह कैसे कह सकते हो? हो सकता है दोनों ही पेशेंट हों." दूसरे ने कहा.
"इम्पोसिबिल, एक तो लेकर आया है. अतः वह पेशेंट हो नहीं सकता."
"किंतु दोनों में से पेशेंट हैं कौन मि० पेंचराम?" दूसरे ने पूछा.
"यह तो उन्ही से पूछ लो. वैसे मेरा विचार है की वो वाला पेशेंट है." पहले ने चोटीराज की ओर संकेत किया.
"पागलों के बीच रहकर तुम भी आधे पागल हो गए हो. जो पागल और सही के बीच अन्तर नहीं कर पा रहे हो. मुझे पूरा विश्वास है की दूसरा वाला पागल है." दूसरे ने कहा. दोनों वास्तव में पागलखाने के डॉक्टर थे और वह इमारत एक पागलखाना थी.

"क्यों, तुममें पेशेंट आई मीन मरीज़ कौन है?" पहले ने उन दोनों से पूछा. इस पर चोटीराज अपनी भाषा में कुछ बोला जिसे ये लोग समझ नहीं पाये.
"मैं कह रहा था की यही पागल है. पता नहीं क्या बडबडा रहा है."
"हम लोग बहुत दूर से दौड़ते हुए आ रहे हैं." चीन्तिलाल भी बोल उठा.
"ओह! उल्टा सीधा तो दूसरा भी बोल रहा है. इसका मतलब की वह भी पागल है." दूसरे ने कहा.
"हमारे अस्पताल में यह पहला केस है जब दो पागल एक दूसरे को भरती कराने आए हैं." पहले ने अपना चश्मा ऊँगली से ऊपर चढाते हुए कहा.
"इन लोगों को भी रूम नं० अट्ठारह में पहुँचा दिया जाए. वहां काफ़ी जगह है." दूसरे ने कहा. फ़िर उन्होंने प्राचीन युगवासियों के हाथ पकड़े और अपने साथ ले जाने लगे.
"चोटीराज, क्या इन मनुष्यों की ऑंखें कुछ भिन्न नहीं हैं?" चीन्तिलाल ने गौर से दोनों के चश्मे देखते हुए कहा.
"हाँ हैं तो. मुझे तो पूरी तरह ये उल्लू की ऑंखें लग रही हैं. कितना बदल गया है संसार. मनुष्य की ऑंखें तक बदल गईं हैं."
उधर मि० पेंचराम ने मैडमैन को संबोधित किया, "मि० मैडमैन, आपका क्या विचार है? इनका पागलपन किस प्रकार का है?"
"मेरा विचार है की ये बड़बोला से पीड़ित हैं. जिसमें व्यक्ति हर समय कुछ न कुछ बडबडाता रहता है."
चोटीराज जो की मैडमैन के साथ चल रहा था, उसने मैडमैन के चश्मे पर हाथ डाल दिया. और मैडमैन का चश्मा नीचे गिर पड़ा.
"यह क्या? इसकी तो ऑंखें ही गिर पड़ीं!" चीन्तिलाल ने आश्चर्य से कहा.

और अब पचासवें एपिसोड में पागलखाने में हंगामा.

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