Sunday, January 11, 2009

ताबूत - एपिसोड 44

अब पुलिस इंस्पेक्टर इनसे कह रहा था, "इन लुटेरों पर पाँच हज़ार का इनाम था. वह आप लोग ले लीजिये." उसने इन्हें रुपये दे दिए. ये दोनों कुछ देर उन नोटों को आश्चर्य से देखते रहे फ़िर बाहर आ गए.
"उस मनुष्य ने हमें ये क्या दिया है?" चीन्तिलाल अपने हाथ में दबे नोटों को देखता हुआ बोला.
"इसपर कुछ लिखा हुआ है. मेरा विचार है कि यह लिखने के लिए आधार है. जिस प्रकार हमारे युग में ताड़पत्र होता था."
"अच्छा छोड़ो इसे. मुझे तो अब बहुत जोरों की भूख लग रही है."
"वह देखो, सामने कोई घर है. वहां अवश्य कुछ न कुछ मिल जायेगा." चोटीराज ने सामने देखते हुए कहा.
फ़िर वह दोनों उस घर की ओर बढ़ गए जो वास्तव में एक सिनेमाहाल था. जिस समय वह लोग वहां पहुंचे, भीड़ का एक रेला अन्दर से आया. शायद कोई शो समाप्त हुआ था. ये लोग उस भीड़ को आश्चर्य से देखने लगे. भीड़ भी उनके कद और डील डौल के कारण उन्हें देखने लगी. अधिकतर लोगों ने इन्हें विदेशी समझा.

ये लोग भीड़ से बचते बचाते एक कोने में पहुंचे और वहां खड़े एक व्यक्ति से प्रश्न किया, "क्या यहाँ खाने को कुछ मिल सकता है?"
सामने वाला ब्लैक में टिकट बेचने वाला था. उसने यही समझा कि ये लोग विदेशी हैं और शायद फ्रेंच बोल रहे हैं. साथ ही इनके हाथों में नोट देखकर उसकी ऑंखें फ़ैल गईं.
"इन लोगों को ठगना चाहिए," उसने अपने मन में कहा और बोला, "आप लोग ब्लैक में टिकट खरीदने के लिए एकदम सही व्यक्ति के पास आये है. मैं आपको बहुत सस्ते में टिकट दूँगा. एक टिकट के केवल पाँच सौ रुपये." उसने दो टिकट इनकी ओर बढ़ा दिए और एक हज़ार रुपये इनके हाथ से झटक लिए. उसके बाद उसने ऊँगली से हाल की ओर संकेत किया और रुपये लेकर चंपत हो गया."

चीन्तिलाल और चोटीराज हाल की ओर बढ़ने लागे.
"अजीब बातें हैं इस युग की. हमने जब भोजन के बारे में पूछा तो उसने हमें पत्ती पकड़ा दी. इसका हम लोग क्या करें?" चोटीराज ने पूछा.
"हाथ में लिए रहो. शायद इस युग में भोजन पत्तियों के साथ करते हैं. आओ अन्दर चलते हैं."
वे लोग गेट पर पहुँच गए जहाँ गेटकीपर लोगों के टिकट देख देखकर उन्हें उनके स्थान बता रहा था. लोगों की देखा देखी ये भी अपनी कुर्सियों के पास पहुंचे और उनपर बैठ गए. कुछ देर बाद हाल में अँधेरा छा गया.
"कमाल है, अभी तो यहाँ दिन था. अब एकदम से रात कैसे हो गई?" चीन्तिलाल ने आश्चर्य से कहा.
"रात नही हुई है. बल्कि यह चिराग जल रहे थे जो अब बुझा दिए गए हैं." चोटीराज ने स्पष्टीकरण किया.
"तो क्या इस युग के लोग अंधेरे में भोजन करते हैं?"
"वो अवश्य कोई अनोखा भोजन होगा."

लगभग दो तीन मिनट बाद परदे पर बैक्ग्राउन्ड म्यूजिक गूंजा और ये लोग उछल पड़े. उसके बाद उन्हें एक बार फ़िर उछलना पड़ा जब परदे पर चित्र आने लगे.
"इतने बड़े बड़े मनुष्य. ऐसे तो हमारे युग में भी नहीं थे."
"और ये लोग कितने जोरों से चिल्ला रहे हैं. मेरा तो इतने ज़ोर से बोलने पर गला ही ख़राब हो जायेगा."

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