Monday, December 29, 2008

ताबूत - एपिसोड 38

चारों प्राचीन युगवासी अब थाने से काफी दूर सड़क पर निकल आए थे. फ़िर उनकी दृष्टि बिना छत की एक स्पोर्ट्स कार पर पड़ी जो वहीँ खड़ी थी. यह वही कार थी जिसको उचक्के के पीछे भागने वाले व्यक्ति ने छोड़ा था.
"यह क्या है?" चोतिराज ने आश्चर्य से पूछा.
"मैं बताता हूँ. यह यटिकम है." सियाकरण ने कहा.
"यह तुम कैसे कह सकते हो? क्योंकि इसमें यल तो हैं नहीं." मारभट ने अपनी शंका प्रकट की.
"क्या तुमने सामने नहीं देखा. वहां कई लोग यटिकम में बैठकर यात्रा कर रहे हैं. सियाकरण ने सड़क की और संकेत किया. जहाँ समय समय पर कोई कार निकल जाती थी.
"तुम सही कह रहे हो. किंतु यह चलेगी कैसे?" मारभट एक बार फ़िर दुविधा में फंस गया.
"आओ हम लोग इसमें बैठते हैं. तभी कुछ पता चल पायेगा." सियाकरण ने कहा. फ़िर वे कार के अन्दर बैठ गए और उसका तियापांचा करने लगे. कभी वे लोग स्टीयरिंग घुमा रहे थे तो कभी डैश बोर्ड के साथ छेड़खानी कर रहे थे. काफ़ी देर प्रयत्न करने के बाद जब ये लोग थक हार कर उतरने की सोच रहे थे तभी चीन्तिलाल बोल उठा,

"तुम लोग अपनी बुद्धि मत गंवाओ . मुझे यटिकम चलाने की तरकीब समझ में आ गई है."
"तो फ़िर जल्दी बताओ." सियाकरण ने कहा.
"वो सामने देखो. वे लोग किस प्रकार यटिकम चला रहे हैं." चीन्तिलाल ने एक ओर संकेत किया और वे सभी उस दिशा में देखने लगे.
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"कमबख्त स्टार्ट ही नहीं हो रही है. कितनी बार मैंने मालिक से बैट्री चार्ज करवाने के लिए कहा. किंतु वे ध्यान ही नहीं देते." कार में बैठा व्यक्ति जो की उसका ड्राइवर था बडबडाया. एक बार फ़िर उसने कार स्टार्ट करने की कोशिश की किंतु कोई फायदा नहीं हुआ. आख़िर में उसने खिड़की से सर निकाल कर पुकारा, "भाइयों, ज़रा इसमें धक्का लगा दो, बड़ी मेहरबानी होगी."
फ़िर चार पाँच लोकसेवक वहां आ गए ओर कार में धक्का लगाने लगे. धक्का लगाते लगाते वे लोग दूसरी सड़क पर पहुंचकर उन प्राचीन युगवासियों की नज़रों से ओझल हो गए.
और फ़िर दूर कहीं जाकर कार स्टार्ट हो गई.
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"ओह! तो यह तरकीब थी यटिकम चलाने की. चीन्तिलाल तुम और चोटीराज पीछे से इसे धक्का दो. मैं पहले ही कह रहा था की यदि इस यटिकम को यल नहीं खींचते तो इसी विधि से यह चलनी चाहिए." सियाकरण ने कहा.
फ़िर सियाकरण और मारभट कार की अगली सीट पर बैठ गए और चीन्तिलाल और चोटीराज उसे धक्का लगाने लगे.
"बहुत अच्छी यटिकम है. कितने आराम से चल रही है." मारभट ने सीट से पीठ टिकाते हुए कहा.
"किंतु इसमें एक कमी है की यह मनुष्य द्बारा चलाई जाती है. यदि इसे यल चलाते तो बहुत अच्छा होता." सियाकरण ने कहा. तभी कार का स्टार्टिंग लीवर दब गया और वह स्टार्ट हो गई.
"यह तो बोल रही है." सियाकरण ने आश्चर्य से कहा. चोटीराज और चीन्तिलाल अभी तक कार को धक्का दिए जा रहे थे. मारभट जो कि स्टीयरिंग पर बैठा था अचानक उसका पैर एक्सीलरेटर पर पड़ गया और कर एक झटके के साथ आगे बढ़ गई.

चोटीराज और चीन्तिलाल धडाम से मुंह के बल आगे की ओर गिरे.
"क्या हम लोगों ने ज्यादा ज़ोर से धक्का लगा दिया?" चोटीराज उठकर अपना सर सहलाते हुए बोला.
"ऐसी कोई बात नहीं है. बल्कि वह अपने आप चलने लगी लगी." चीन्तिलाल इत्मीनान से बोला.
"अरे तो उसे पकडो. वरना हम बिछड़ जायेंगे." चोटीराज कार के पीछे दौड़ा. चीन्तिलाल ने उसका अनुसरण किया. किंतु वे कार का मुकाबला कहा कर पाते. कुछ ही देर में कार उनकी नज़रों से ओझल हो गई और वे हाथ मलते रह गए.
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1 comment:

seema gupta said...

यटिकम का किस्सा भी खुब रहा

regards