Monday, December 22, 2008

ताबूत - एपिसोड 32

ताबूत : अब तक की कहानी
तीन दोस्त देवीसिंह (प्रोफ़ेसर), रामसिंह और शमशेर सिंह खजाने की तलाश में मिकिर पहाडियों में जा पहुंचते हैं. वहां पहुंचकर पता चलता है कि वे रास्ता भटक चुके है. पहाडियों के अन्दर बनी सुरंगों में चकराते हुए उन्हें एक जगह चार ताबूत दिखाई देते हैं. वे उन्हें खोलते हैं तो वहां चार लाशें दिखाई देती हैं. फ़िर वे लाशें जिंदा भी हो जाती हैं. पता चलता है कि प्राचीन समय के एक वैज्ञानिक महर्षि प्रयोगाचार्य ने उन्हें शीत निद्रा में सुलाकर उनकी आयु सैंकडों वर्ष बढ़ा दी थी. तीनों उनकी दास्ताँ सुनकर दंग रह जाते हैं.


अब आगे पढिये.....

जब प्रोफ़ेसर ने यह कहानी रामसिंह और शमशेर सिंह को सुनाई तो छूटते ही रामसिंह कहने लगा, "मैं तो पहले ही कह रहा था कि ये लोग भूत प्रेत हैं. भला कोई मनुष्य हजारों साल कैसे जिंदा रह सकता है. अब अच्छा यही होगा कि इन्हें यहीं छोड़कर किसी तरह भाग चलो. भाड़ में गया खजाना. घर चलकर आलू बेचने का धंधा कर लेंगे. थोड़ा बहुत पैसा तो मिल ही जायेगा."

"तुम लोग हमेशा गिरा हुआ ही सोचोगे." प्रोफ़ेसर ने उन्हें घूरा, "किस्मत ने कितना अच्छा मौका दिया है हमें. ये प्राचीन युगवासी अब हमारे दोस्त बन चुके हैं. हम अब इन्हें थोड़ा मक्खन और लगाते हैं तो ये हमें प्राचीन खजाने का पता ज़रूर बता देंगे."

एक बार फिर तीनों लालच में आकर प्राचीन युगवासियों के साथ रहने पर तैयार हो गए.
एक दिन बातों ही बातों में प्रोफ़ेसर ने सियाकरण से पूछा, "तुम लोगों के पास खजाना तो अवश्य होगा."
"खजाना किसको कहते हैं?" सियाकरण ने पूछा.
"खजाना मतलब ऐसी चीज़ें जिससे लोग अपनी ज़रूरत का सामान खरीदते हैं."
"ओह! खजाना तो है मेरे पास." कहते हुए सियाकरण ने अपने सफ़ेद लबादे के अन्दर हाथ डाला. प्रोफ़ेसर के साथ मौजूद रामसिंह और शमशेर सिंह उत्सुकता के साथ उसके करीब आ गए.
सियाकरण ने जेब से कुछ सिक्के निकालकर प्रोफ़ेसर के हाथ पर रख दिए.
"ये सिक्के तो तांबे के हैं." प्रोफ़ेसर ने उलट पलट कर देखते हुए कहा.
"हमारे पास तो यही खजाना है." सियाकरण ने कहा.
"ओह!" तीनों ने मायूसी से सर हिलाया.
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"ये लोग तो हमारी तरह फक्कड़ निकले. भला तांबे के सिक्कों में आजकल क्या मिलेगा." रामसिंह ने मायूसी से कहा. इस समय वे एक पगडण्डी पर चल रहे थे. प्राचीन युगवासी उनके पीछे काफी फासले पर चले आ रहे थे.
"अब तो अच्छा यही होगा कि हम लोग इन्हें यहीं छोड़कर निकल लें." शमशेर सिंह ने राय दी.
"अरे वो देखो!" प्रोफ़ेसर ने सामने इशारा किया. दोनों ने चौंक कर देखा, सामने एक रेलवे लाइन दिखाई दे रही थी.
"इसका मतलब कि हम लोग जंगल से बाहर आ चुके हैं." शमशेर सिंह ने कहा.
"यह क्या है?" पीछे मौजूद सियाकरण ने पूछा. अब तक प्राचीन युगवासी भी उनके पास आ चुके थे.
"यह पटरी है. जिसपर रेलगाडी चलती है." प्रोफ़ेसर ने बताया.
"रेलगाडी क्या होती है?" मारभट ने पूछा.
"रेलगाडी...यानी तुम्हारे ज़माने की यटिकम." प्रोफ़ेसर ने समझाया. चारों युगवासियों ने इस प्रकार अपना सर हिलाया मानो प्रोफ़ेसर की बात समझ गए हों.
"अगर हम लोग इस लाइन के साथ चलें तो किसी छोटे मोटे स्टेशन तक पहुँच सकते हैं." प्रोफ़ेसर ने राय दी और फ़िर सभी उसके पीछे पीछे रेलवे लाइन की बराबर में चलने लगे.
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1 comment:

Anonymous said...

'शीत निद्रा में सुला कर आयु सैकड़ों वर्ष बढ़ा दी थी.'-कहानी विज्ञान गल्प मालूम पड़ रही है,जिसकी हिन्दी साहित्य में बेहद कमी है. - साधुवाद. पुरानी पोस्ट पढ़ कर उन पर टिप्पणि दूंगा.