फ़िर काफी मुश्किलों के बाद प्रोफ़ेसर वगैरह की समझ में आया की चारों ताबूतवासी इनके दुश्मन नहीं बल्कि दोस्त हैं. अब सात लोगों का ये काफिला उस पहाडीनुमा पिरामिड से बाहर आकर जंगल में धमाचौकडी मचा रहा था. धीरे धीरे प्रोफ़ेसर वगैरह को उन चारों के नाम भी मालूम हो गए. सबसे ज़्यादा तेज़ तर्रार लीडर टाइप का सियाकरण था. उसके साथ सहयोगी रूप में लगा रहने वाला मारभट था. बाकी दोनों जो थोड़ा कम सक्रिय दिखाई देते थे क्रमशः चोटीराज और चिन्तिलाल थे. अब तीनों का डर उन ताबूतवासियों के प्रति काफी कम हो गया था. ख़ास तौर से प्रोफ़ेसर तो पूरी तरह निश्चिंत हो गया था, और उनकी भाषा समझने की कोशिश का रहा था. जबकि रामसिंह और शमशेर सिंह अब भी उन ताबूतवासियों से दूर दूर और कटे कटे रहते थे.
यह ताबूतवासी कौन थे और कहाँ से आये थे, यह अभी भी एक रहस्य था.
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और इस रहस्य से परदा उठा एक महीने बाद. जब प्रोफ़ेसर और सियाकरण लगभग पूरी तरह एक दूसरे की भाषा समझने लगे थे. उस वक्त सियाकरण ने जो बताया वह प्रोफ़ेसर और उनके दोस्तों को भौंचक्का करने के लिए काफी था.
"आज से हजारों वर्ष पहले यहाँ एक बहुत बड़ी सभ्यता आबाद थी. विज्ञान की दृष्टि से भी बहुत उन्नत थी. सैंकडों वैज्ञानिक उस समय अनेक विकास कार्यों पर जुटे हुए थे. उनमें महर्षि प्रयोगाचार्य का नाम सबसे ऊपर था."
"एक मिनट!" प्रोफ़ेसर ने उसे टोका, "जब आपके प्रयोगाचार्य वैज्ञानिक थे तो वह ऋषि कहाँ से हो गए?"
"हमारे समय में वैज्ञानिकों को ऋषि कहा जाता था. और उच्च कोटि के वैज्ञानिक महर्षि कहलाते थे. और प्रयोगाचार्य जी तो महानतम ऋषि थे. जिनका आदर रजा भी करता था. हम चारों महर्षि के शिष्यों में शामिल थे. हमारे अलावा उनके सैंकडों शिष्य और थे. एक दिन प्रयोगाचार्य जी ने हम चारों को अलग बुलाया, शायद वह कोई खास बात करना चाहते थे.
"क्या बात है गुरूजी? आपने हम लोगों को क्यों बुलाया है?" मैंने पूछा.
"आज मैंने एक बहुत बड़ी उपलब्धि प्राप्त की है." महर्षि के चेहरे के रोम रोम से इस समय खुशी फूट रही थी. सदेव विद्यमान रहने वाली गंभीरता उनके मस्तक से गायब थी.
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"आज मैंने एक बहुत बड़ी उपलब्धि प्राप्त की है." महर्षि के चेहरे के रोम रोम से इस समय खुशी फूट रही थी. सदेव विद्यमान रहने वाली गंभीरता उनके मस्तक से गायब थी.
वो उपलब्धि के रही होगी, अब ये क्या राज है
regards
बहुत खूब।
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